Sawan Somvar Vrat 2022

Sawan Somvar Vrat 2022: आज सावन का पहला सोमवार, भूलकर भी न करें ये काम, महादेव हो सकते हैं नाराज

Sawan Somvar Vrat 2022: सावन का पहला सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) 18 जुलाई को है। सावन (Sawan 2022) का सोमवार व्रत मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए उत्तम माना जाता है। जो लोग सालभर सोमवार व्रत रखना चाहते हैं, सावन सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) से इसका प्रारंभ कर सकते हैं। सावन सोमवार के दिन व्रत और शिव पूजा का संकल्प करते हुए व्रत रखते हैं। श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभागाध्यक्ष डॉ मृत्युञ्जय तिवारी कहते हैं कि इस दिन शिव पूजा के समय सावन सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए या उसका श्रवण करना चाहिए। ऐसा करने से व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है और महत्व भी पता चलता है। आइए जानते हैं सावन सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) कथा के बारे में.

सावन सोमवार व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, अमरपुर नामक नगर में एक धनवान व्यापारी रहता था। वह शिव भक्त था। उसका व्यापार बड़ा था और उसकी समाज में प्रतिष्ठा थी। इनके सबके बाद भी वह दुखी था क्योंकि उसे कोई पुत्र नहीं था। उससे इस बात की चिंता थी कि उसके बाद व्यापार को कौन देखेगा? उसका वंश आगे कैसे बढ़ेगा? पुत्र की कामना से वह हर सोमवार का व्रत रखता था और प्रत्येक शाम को शिव मंदिर में घी का दीपक जलाता था।

ऐसा करते हुए काफी साल बीत गए। एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। आप उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद क्यों नहीं दे देते? शिव जी ने कहा कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। माता पार्वती नहीं मानीं और शिव जी को विवश कर दिया।

तब उस रात शिव जी व्यापारी को सपने में दर्शन दिया और पुत्र प्राप्ति का आशीष दिया। लेकिन यह भी कहा कि उसका पुत्र 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। अगली सुबह व्यापारी का परिवार बहुत खुश था, लेकिन पुत्र के अल्पायु होने से दुखी भी था। लेकिन व्यापारी हमेशा की तरह सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) और शिव भक्ति करता रहा।

शिव कृपा से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। उसका नाम अमर रखा गया। 12 साल की उम्र में उसे पढ़ने के लिए अपने मामा दीपचंद के साथ काशी भेज दिया गया। रास्ते में वे जहां भी रात्रि विश्राम करते थे, वहां पर यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को भोजन कराते थे।

एक दिन वे एक नगर में पहुंचे, जहां के राजा की पुत्री का विवाह हो रहा था। वर का पिता अपने बेटे के एक आंख से काने होने के कारण चिंतित था। उसे विवाह टूटने और बदनामी का भय सता रहा था।

वर के पिता ने अमर को देखा और उसे वर बनाने के लिए सोचा, ताकि विवाह के बाद उसे धन देकर विदा कर दे और बहु को घर ले जाए। लालच में दीपचंद ने वर के पिता की बात मन ली. राजकुमारी चंद्रिका से अमर का विवाह हो गया। अमर ने जाते समय राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया कि तुम्हारा विवाह मुझ से हुआ है, मैं काशी शिक्षा ग्रहण करने जा रहा हूं। अब तुम जिसकी पत्नी बनोगी, व​ह काना है।

यह जानकर राजकुमारी ने ससुराल जाने से इनकार कर दिया, दूसरी ओर अमर काशी में शिक्षा ग्रहण करने लगा। 16 वर्ष पूरे होने के समय अमर ने एक यज्ञ कराया. ब्राह्मणों को भोजन, दान और दक्षिणा से संतुष्ट किया। फिर शिव इच्छानुसार रात्रि के समय अमर के प्राण निकल गए।
अमर की मृत्यु की बात जानकर उसका मामा रोने लगा। आसपास के लोग एकत्र हो गए। भगवान शिव और पार्वती वहां से जा रहे थे। माता पार्वती ने दीपचंद के रोने की आवाज सुनी और शिव जी से कहा कि इसका कष्ट दूर कर दीजिए।

भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि यह उसी व्यापारी का पुत्र है, जो अल्पायु था। इसकी आयु पूरी हो गई है। पार्वती जी ने कहा कि आप इसे प्राण लौटा दें अन्य​था इसके मां बाप रो रोकर अपनी जान दे देंगे। माता पार्वती के बार बर आग्रह करने पर भगवान शिव ने अमर को फिर से जीवित कर दिया।

शिक्षा समाप्ति के बाद अमर मामा के साथ राजकुमारी के नगर में पहुंचा और वहां पर यज्ञ का आयोजन कराया। राजा ने अमर को पहचान लिया। राजा उसे घर ले गया और सेवा सत्कार के बाद पुत्री के साथ विदा कर दिया।

अमर जब घर पहुंचा, तो उसे जीवित देखकर व्यापारी का परिवार खुश हो गया। उसी रात भगवान शिव एक बार फिर व्यापारी के स्वप्न में आए और कहा कि तुम्हारे सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) करने और व्रत कथा सुनने से प्रसन्न होकर उन्होंने अमर को जीवनदान दिया है और उसे लंबी आयु दी है। व्यापारी यह सुनकर प्रसन्न हुआ। सोमवार व्रत (Sawan Somvar Vrat) रखने से व्यापारी का पूरा परिवार खुशीपूर्वक रहने लगा।

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