भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ बीते 10 महीनों से विरोध के सुर उठा रहे किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri ) मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के ‘संकटमोचक’ बनकर सामने आए हैं। सोमवार को ही उन्होंने यूपी सरकार की टीम के साथ एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, जिसके बाद उन्होंने समझौते का श्रेय यूपी सरकार की तरफ से भेजी गई उच्च स्तरीय टीम को दिया था। किसान आंदोलन को लेकर टिकैत राजधानी दिल्ली की गाजीपुर सीमा के बड़े हिस्से को रोके हुए हैं। इतना ही नहीं उन्होंने चुनावी राज्यों में पहुंचकर बीजेपी (BJP) के विरोध में प्रचार किया था। हालांकि, इस कांड में उनकी भूमिका से कई लोग हैरान हैं।
मंगलवार को टिकैत (Tikait) और सरकार के बीच समझौता तब टूटने की कगार पर पहुंच गया, जब मृतकों के परिवारों ने शवों का अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया। वे टिकैत(Tikait) ही थे, जिन्होंने परिवारों से मुलाकात करने और उन्हें मनाने का जिम्मा उठाया। टिकैत के दखल के बाद किसान गुरविंदर सिंह को छोड़कर मंगलवार को अन्य तीनों किसानों का अंतिम संस्कार हो गया। सिंह के परिवार ने आशंका जताई है कि किसान को गोली मारी गई थी। इसके चलते अब दूसरी बार ऑटोप्सी की जानी है। टिकैत ने मारे गए पत्रकार रमन कश्यप के परिवार से भी मुलाकात की थी और कहा था कश्यम भी ‘किसान था।’ सोमवार को टिकैत (Tikait) ने यूपी के शीर्ष पुलिस अधिकारी प्रशांत कुमार के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता की थी।
बातचीत में विपक्ष के एक नेता ने कहा, ‘टिकैत (Tikait) की तरफ से निभाई गई भूमिका अजीब है। यूपी सरकार की तरफ से केवल उन्हें ही लखीमपुर जाने दिया गया। यह बहुत चौंकाने वाली बात है कि परिवार 45 लाख रुपये के मुआवजे के लिए मान गए और केंद्रीय मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी के लिए दबाव बनाए बगैर पोस्ट मॉर्टम की अनुमति दे दी। परिवारों के साथ हमारी बातचीत बताती है कि उन्होंने केवल टिकैत की बात सुनी है।’ एक अन्य विपक्षी नेता ने यूपी के ‘डायल 122’ में तैनात नोएडा के पूर्व एसएसपी और IPS अधिकारी अजय पाल शर्मा के ‘मध्यस्थ’ वाली भूमिका की ओर इशारा किया है। संपर्कों के मद्देनजर उन्हें लखीमपुर भेजा गया था।
टिकैत ने क्या किया
यूपी सरकार की टीम के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता करने के बाद सोमवार को टिकैत (Tikait) ने कहा था, ‘यूपी सरकार ने इतनी उच्च स्तरीय टीम भेजी, तो समझौता हो गया।’ इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में टिकैत ने 4 मृतक किसानों के परिवारों की तरफ से 45 लाख रुपये का मुआवजा, सरकारी नौकरी का वादा, उच्च स्तरीय जांच और आरोपी के खिलाफ FIR की मांग को स्वीकार कर लिया। इन मांगों को लेकर टिकैत, परिवारों और सरकार के बीच कई बार चर्चाएं हुई थी। परिवार इससे पहले मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी और केंद्रीय मंत्री को निष्कासित करने की मांग कर रहे थे, लेकिन अंत में उन्होंने जोर नहीं दिया और ऑटोप्सी के लिए तैयार हो गए थे। जब सभी राजनेताओं को रोक दिया गया था, तब टिकैत को रविवार देर रात को लखीमपुर पहुंचने की अनुमति दी गई थी।
हालांकि, मंगलवार को जब परिवारों ने शवों का अंतिम संस्कार से इनकार कर दिया, तो समझौता टूटता हुआ नजर आने लगा था। इससे एक रात पहले RLD नेता जयंत चौधरी परिवारों से मुलाकात करने में सफल हो गए थे। जबकि, कहा जाता है कि प्रियंका गांधी वाड्रा और अखिलेश यादव ने परिवारों से फोन पर बात की थी। मंगलवार को परिवारों ने मांग की थी कि पहले मंत्री के बेटे को गिरफ्तार किया जाए और सभी शवों को दोबारा ऑटोप्सी कराई जाए, क्योंकि पहली ऑटोप्सी में उनके शरीर पर गोलियों के निशान नहीं दिख रहे थे। दोपहर तक सुष्मिता देव और डोला सेन का तृणमूल कांग्रेस का प्रतिनिधिमंडल भी परिवारों तक पहुंचा था।
यहां टिकैत की दोबारा एंट्री हुई। वे दिन में सभी चारों परिवारों से मिले और उनके साथ दोबारा बात की, जिसके बाद परिवार शाम को अंतिम संस्कार के लिए तैयार हो गए। सरकार के लिए यह बड़ी राहत की बात थी। गुरविंदर सिंह का परिवार पहले राजी नहीं हो रहा था, लेकिन टिकैत की दखल के बाद यह सुनिश्चित किया गया कि पीजीआई से डॉक्टरों की एक टीम बहराइच आएगी और शव की दूसरी बार ऑटोप्सी करेगी, क्योंकि परिवार ने गोली मारे जाने की आशंका जताई है। 2 किसान परिवारों ने मंगलवार शाम को सरकारों से 45-45 लाख रुपये के चैक भी स्वीकार कर लिए हैं।
इधर, मंत्री के खिलाफ टिकैत के सुर बुलंद रहे और वे उनके और उनके बेटे के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे। उन्होंने यह भी कहा कि चार परिवारों का शोक पूरा होने के बाद किसान आंदोलन की नई रणनीति पर काम करेंगे। फिलहाल, लखीमपुर में टिकैत की भूमिका एक बहस का मुद्दा बना हुआ है।