गांधी परिवार की अजेय नेता, जिसे कभी नहीं मिली चुनावी मात, राज्यसभा के जरिए अब सियासत

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी अब राज्यसभा में नजर आएंगी. वह आज यानी बुधवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर में राज्यसभा के लिए नामांकन करेंगी. एक वक्त ऐसा भी था जब सोनिया ने खुद को और बच्चों को राजनीति से दूर रखने का फैसला किया था. लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. वो न सिर्फ राजनीति में आईं बल्कि अपने सियासी सफर में उन्होंने गर्त में जा रही कांग्रेस को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया. वो उन नेताओं में शुमार हैं जिन्हें कभी शिकस्त नहीं मिली.

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी अब राज्यसभा के जरिए सियासत करती हुई नजर आएंगी. राजस्थान से बुधवार को वो नामांकन दाखिल करेंगी. इस दौरान सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी भी उपस्थित रहेंगी. पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद गांधी परिवार से सोनिया गांधी राज्यसभा में जाने वाली दूसरी महिला होंगी. ऐसे में साफ है कि सोनिया गांधी अब 2024 में लोकसभा चुनाव रायबरेली सीट से नहीं लड़ेंगी.

सोनिया गांधी को सियासत में कदम रखे हुए करीब ढाई दशक हो चुके हैं. इस दौरान सोनिया गांधी ने करीब दो दशकों तक कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाले रखा. सोनिया ने अध्यक्ष रहते हुए पार्टी को करिश्माई नेतृत्व दिया और पार्टी की सत्ता में वापसी कराई. गांधी परिवार की अजेय मानी जाने वाली इकलौती नेता सोनिया हैं, जिन्हें कभी चुनावी मात नहीं खानी पड़ी जबकि संजय गांधी से लेकर इंदिरा गांधी, मेनका गांधी, अरुण नेहरू और राहुल गांधी तक को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. सोनिया गांधी अब चुनावी सक्रियता यानि लोकसभा से रिटायरमेंट ले रही हैं और अब राज्यसभा की सियासत करेंगी.

सोनिया गांधी का सियासी सफर

सोनिया गांधी के सियासी सफर पर नजर डालें तो हमें कई उतार चढ़ाव देखने को मिलेंगे. पूर्व पीएम राजीव गांधी की मौत के बाद सोनिया गांधी ने राजनीति में न आने की कसम खाई थी, लेकिन कांग्रेस की बिगड़ती हालत और पार्टी नेताओं के दबाव में उन्होंने सियासत में कदम रखा. 20वीं सदी के आखिरी सालों में पतन के गर्त में जाती दिख रही कांग्रेस में दोबारा जान फूंककर उसे लगातार 10 साल तक देश की सत्ता में बैठाने का श्रेय सोनिया गांधी को जाता है.

सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसंबर 1946 को इटली में हुआ. उनके पिता का नाम स्टाफेनो मेनो था. राजीव गांधी से शादी करके ऐसे देश आई थीं, जहां के माहौल और भाषा से वो पूरी तरह अनजान थी. शादी के कुछ साल ही गुजरे थे कि 1991 में उनकी मांग का सिंदूर उजड़ गया. राजीव गांधी की हत्या कर दी गई. राजीव अपने पीछे सोनिया और दो मासूम बच्चे छोड़ गए थे.

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पति राजीव गांधी और सास इंदिरा गांधी की मौत के बाद सियासत में न आने की कसम खा ली थी. इसके चलते वो खुद को राजनीति से अलग-थलग कर लेती हैं और शोक में डूब जाती हैं. सोनिया गांधी खुद को और अपने बच्चों को राजनीति से दूर रखना चाहती थीं, लेकिन वक्त और सियासत ने ऐसी करवट ली कि उन्हें मुश्किल हालात में कांग्रेस की कमान अपने हाथों में लेना पड़ता है. सियासत में उनकी भागीदारी धीरे-धीरे शुरू हुई.

पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे प्रणब मुखर्जी अपने संस्मरण में लिखते हैं कि सोनिया को कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय करने के लिए पार्टी के कई नेता मनाने में लगे थे. उन्हें समझाने की कोशिश की जा रही थी कि उनके बगैर कांग्रेस खेमों में बंटती जाएगी और बीजेपी का विस्तार होता जाएगा. वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि सोनिया कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार 1997 में गईं. उन्होंने पद लेने के बजाए पार्टी के लिए प्रचार से अपना राजनीतिक करियर शुरू किया. इसके बाद 1998 में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद पार्टी को मजबूत किया.

सोनिया गांधी ने सियासत में कदम रखा तो वो न तो बहुत ही अच्छे से हिंदी बोलती थीं और न ही राजनीति के दांवपेच से बहुत ज्यादा वाकिफ थीं. यही नहीं जब पद संभाला तब देश की सियासत में बीजेपी अपने सियासी बुलंदी की तरफ बढ़ रही थी. अटल बिहारी वाजपेयी- लालकृष्ण आडवाणी की जोड़ी तूफान मचाए हुई थी. तीसरा मोर्चे की राजनीति भी अपने सियासी उफान पर थी. कांग्रेस बेबस नजर आ रही थी. ऐसी हालत में सोनिया गांधी ने नेतृत्व संभालकर कांग्रेस को नई संजीवनी दी और उसे फिर से राजनीति के शीर्ष पर पहुंचाया.

1997 में सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की और 62 दिन बाद वे पार्टी की अध्यक्ष बनीं. तब से 2017 तक वे पार्टी की अध्यक्ष बनी रहीं. कांग्रेस पार्टी में इतने लंबे समय तक कोई अध्यक्ष नहीं रहा. सोनिया पहली बार 1999 के लोकसभा चुनाव में लड़ीं. उन्होंने बेल्लारी (कर्नाटक) और अमेठी (उत्तरप्रदेश) से चुनाव लड़ा और दोनों जगह चुनाव जीता. इसके बाद उन्होंने बेल्लारी की सीट छोड़ दी और अमेठी को बनाए रखा.

सोनिया गांधी खुद अपनी सीटें जीतने में सफल रही, लेकिन पार्टी को मुंह की खानी पड़ी. इसके पीछे वजह यह थी कि वाजपेयी की अगुवाई वाली बीजेपी को उस चुनाव में करगिल युद्ध और पोखरण परमाणु विस्फोट का सियासी लाभ मिला था. पांच साल तक विपक्ष में रहने बाद सोनिया गांधी ने ऐसी सियासी बिसात बिछाई की बीजेपी चारो खाने चित हो गई. सोनिया ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी के हाथों से सत्ता छीनकर कांग्रेस की वापसी कराई थी.

2004 में सोनिया ने अमेठी सीट से अपने बेटे राहुल को चुनाव लड़वाया और खुद रायबरेली सीट पर शिफ्ट हो गईं, जहां से अभी तक सांसद रहीं. सोनिया की अगुवाई में छह साल के संघर्ष के बाद पार्टी ने 2004 में सत्ता में वापसी की. सोनिया के प्रधानमंत्री बनने की चर्चा जोरों पर थी, पर उन्होंने पीएम पद की कुर्सी ठुकरा दी थी. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. 2009 के आम चुनावों में सोनिया के नेतृत्व में कांग्रेस ने 1991 के बाद पहली बार 200 से ज्यादा सीटें जीतीं और सत्ता में वापसी की. इस बार भी मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाया गया.

गांधी परिवार में अजेय सोनिया गांधी

मोदी लहर में भी सोनिया गांधी 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने में सफल रही हैं. इस तरह सोनिया गांधी 1999 से लेकर 2019 तक लगातार लोकसभा का चुनाव जीतने में सफल रहीं. इस दौरान ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर सोनिया ने 2006 में संसदीय सीट से इस्तीफा दिया और उपचुनाव जीती.

सोनिया गांधी अपने राजनीतिक जीवन में कभी भी चुनाव नहीं हारी जबकि उनके बेटे राहुल गांधी, सास इंदिरा गांधी और देवर संजय गांधी तक को हार का सामना करना पड़ा है.

इंदिरा गांधी आपातकाल के बाद 1977 में रायबरेली सीट पर समाजवादी नेता राजनारायण के हाथों हार गई थीं. कांग्रेस और इंदिरा गांधी के लिए यह बहुत बड़ा झटका था. 1977 में संजय गांधी पहली बार चुनावी मैदान में अमेठी से उतरे थे और उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा था. संजय गांधी के निधन के बाद अमेठी सीट पर उनकी पत्नि मेनका गांधी भी चुनावी मैदान में उतरी थीं, लेकिन राजीव गांधी के सामने जीत नहीं सकीं.

2004 में अमेठी लोकसभा सीट से राहुल गांधी ने अपने सियासी पारी का आगाज किया और लगातार तीन बार चुनाव जीतने में सफल रहे, लेकिन 2019 चुनाव में मोदी लहर में अपनी सीट नहीं जीत सके. 2019 में राहुल गांधी अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से भी चुनावी मैदान में उतरे थे. वायनाड से जीतने में सफल रहे, लेकिन अमेठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी के हाथों उन्हें हार का मूंह देखना पड़ा. इस तरह नेहरू-गांधी परिवार में पंडित जवाहर लाल नेहरू राजीव गांधी और सोनिय गांधी अजेय रही हैं, जिन्हें कभी चुनावी मात नहीं मिली.

इंदिरा गांधी के बाद सोनिया राज्यसभा

नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य लोकसभा के जरिए ही सियासत करते नजर आए हैं. नेहरु से लेकर राहुल गांधी तक लोकसभा के जरिए चुने जाते रहे हैं. सोनिया गांधी 1999 से लेकर अभी तक लोकसभा के जरिए ही सांसद चुनी जाती रही हैं, लेकिन अब उच्च सदन का रास्ता अपनाया है. यह पहली बार होगा कि सोनिया गांधी संसद के उच्च सदन में जाएंगी. वह पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बाद राज्यसभा में प्रवेश करने वाली गांधी परिवार की दूसरी सदस्य होंगी. इंदिरा गांधी अगस्त, 1964 से फरवरी 1967 तक उच्च सदन की सदस्य थीं. इंदिरा गांधी ने संसदीय राजनीति की शुरुआत ही राज्यसभा के जरिए की थी जबकि सोनिया गांधी जब अपनी राजनीतिक पारी के अंतिम पढ़ाव पर हैं, उसके लिए राज्यसभा का रास्ता चुना है.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1