सोनिया, पटेल, पाटिल और नरसिम्हा राव… एम्स के वो 4 घंटे और अधजले शव का सच

PV Narasimha Rao Death Anniversary: हाशिए पर पड़े नरसिम्हा राव को 1991 में प्रधानमंत्री की कुर्सी अप्रत्याशित तरीके से मिली थी. उस दौर में वे दिल्ली छोड़ वापस हैदराबाद जाने की तैयारी में थे. 1996 में सत्ता गंवाने और फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद उन्हीं राव को 25 सितंबर 1996 को रखी अपनी टी पार्टी इसलिए रद्द करनी पड़ी थी, क्योंकि कोई कांग्रेसी साथी उसमें आने के लिए तैयार नहीं था.

वे गंभीर रूप से बीमार थे. उसके बाद तेरह दिन और जिए. लेकिन 10 दिसंबर 2004 को ही सोनिया के एक सहायक परिवार से यह पूछने एम्स पहुंच गए कि उनका दाह संस्कार कहां किया जाना चाहिए? उससे दो हफ्ते पहले अपनी बीमारियों से अजिज नरसिम्हा राव ने चौबीस घंटे तक कुछ नहीं खाया. परिवार वालों से कहा, ऐसे जीने से क्या फायदा? उस रात एम्स में उनसे मिलने वालों में सोनिया गांधी, शिवराज पाटिल और अहमद पटेल १ शामिल थे. पटेल ने उनकी ओर पानी का गिलास बढ़ाया. गुस्से में भरे राव ने कहा कि पहले आप लोगों ने मुझ पर मस्जिद तोड़ने का आरोप लगाया और अब आप मुझे पानी दे रहे हैं!

हाशिए पर पड़े नरसिम्हा राव को 1991 में प्रधानमंत्री की कुर्सी अप्रत्याशित तरीके से मिली थी. उस दौर में वे दिल्ली छोड़ वापस हैदराबाद जाने की तैयारी में थे. 1996 में सत्ता गंवाने और फिर कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफे के बाद उन्हीं राव को 25 सितंबर 1996 को रखी अपनी टी पार्टी इसलिए रद्द करनी पड़ी थी, क्योंकि कोई कांग्रेसी साथी उसमें आने के लिए तैयार नहीं था.

सत्ता रूठी, साथी छूटे

प्रधानमंत्री रहते राव ने सोनिया गांधी की नाराजगी मोल ले ली थी. सत्ता खोने के बाद वे दोहरे मोर्चे पर जूझे. लखुभाई पाठक, सेंट किट्स जालसाजी, शेयर दलाल हर्षद मेहता और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों को रिश्वत देकर वोट हासिल करने के मामले उनका पीछा कर रहे थे. पार्टी ने उन्हें अकेला छोड़ दिया था. एक मौका ऐसा भी आया कि वकीलों की फीस देने के लिए वे हैदराबाद का अपना मकान भी बेचने को सोचने लगे थे.

सोनिया के कहते ही इस्तीफे के लिए थे तैयार

राव को सोनिया गांधी ने ही प्रधानमंत्री बनाया था. फिर वह उनसे रूष्ट क्यों हुईं ? पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपनी किताब One Life Is Not Enough में लिखा है कि शुरुआत में उनके राव से संबंध सहज नहीं थे लेकिन दिसंबर 1994 तक गलतफहमियां दूर हो चुकी थीं. इसी दौरान राव के निमंत्रण पर नटवर सिंह उनके निवास 5 रेसकोर्स पहुंचे थे. राव उत्तेजित और बेचैन थे.

उनकी शिकायत थी कि सोनिया के कुछ सलाहकार उनके कान भरते हैं. राव का कहना था कि उन्होंने सोनिया को संतुष्ट रखने की हर मुमकिन कोशिश की है. उनकी हर इच्छा- जरूरत को तुरंत पूरा किया हैं. फिर भी उनका रवैय्या विद्वेषपूर्ण है. इसका मेरी सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है. यदि वे चाहती हैं कि मैं इस्तीफा दे दूं तो सिर्फ उनके कहने भर की देर है.”

सोनिया को मनाने की हर कोशिश नाकाम

नटवर सिंह के मुताबिक राव ने अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहा था कि अपने रास्ते से हट कर भी उन्होंने सोनिया को खुश रखने की कोशिश की. “वो जो चाहती हैं, वो हम करते हैं. वो मुझे कभी फोन नहीं करतीं. एक दिन मैंने प्रस्ताव किया कि आपके निवास 10 जनपथ पर रेक्स फोन लगा दिया जाए ताकि जब चाहें मुझसे बात कर लें. पहले उन्होंने हामी भरी लेकिन बाद में इनकार कर दिया.”

राजीव गांधी हत्याकांड मामले की धीमी गति राव से सोनिया की बड़ी वजह थी. सरकार की इस दिशा में सक्रियता की जानकारी देने के लिए राव ने पहले पी. चिदंबरम और फिर गृहमंत्री एस. बी. चव्हाण को फाइलों सहित सोनिया के पास भेजा. बाद में राव ने खुद उनसे मुलाकात कर इससे जुड़े पहलुओं की जानकारी दी. सोनिया ने उन्हें सुना लेकिन जवाब में कुछ नहीं कहा.

राहुल ने कहा- राव के कारण कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश खोया

क्या राव से सोनिया या उनके परिवार की इकलौती वजह राजीव हत्याकांड मामले में सरकार की कथित सुस्ती ही थी? शिकायतें और भी थीं. बाबरी विध्वंस के लिए अन्य सेक्युलर दलों के साथ ही कांग्रेस का बड़ा हिस्सा राव की मौन सहमति मानता था. राहुल गांधी ने तो सार्वजनिक तौर पर यहां तक कहा कि अगर 1992 में उनका परिवार सत्ता में होता तो बाबरी मस्जिद न गिरती.

विनय सीतापति ने राव पर केंद्रित अपनी किताब “Half Lion” में एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के हवाले से राहुल गांधी को उद्धृत किया, “वह व्यक्ति कांग्रेसी नहीं है. उसके कारण यूपी को हमने हमेशा के लिए खो दिया.”

असलियत में विपक्ष से ज्यादा गांधी परिवार और उनके भक्तों में हर कमी के लिए राव को जिम्मेदार ठहराने की होड़ थी और ये सिलसिला उनकी मौत के बाद भी नहीं थमा.

पढ़ते-लिखते अकेलापन बिताया

सोनिया ने राव को इसलिए प्रधानमंत्री चुना क्योंकि उनका कोई जनाधार नहीं था. सत्ता में रहते भले समर्थकों का एक समूह तैयार हुआ लेकिन इसके छिनते ही राव एक बार फिर अकेले थे. गांधी परिवार की नाराजगी ने रही – सही कसर और पूरी कर दी. डॉक्टर मनमोहन सिंह, प्रणव मुखर्जी और एम. एस. बिट्टा जैसे ही कुछ कांग्रेसी उनकी सुध लेते रहे. सांसद सच्चिदानंद स्वामी ने मुकदमों की पैरवी में उनके साथ जाने का साहस दिखाया. पार्टी ने उन्हें हाशिए पर डाल दिया. राजनीति में अप्रासंगिक हो गए राव ने अपना खाली समय अपनी अधूरी किताब The Other Half पूरी करने, मुकदमों की तैयारी के लिए कानूनी किताबों एवं अन्य तमाम अध्ययन में बिताया.

बीमारियों ने किया निराश

नवंबर 2004 में बीमार राव एम्स में भर्ती हुए. महीने के आखिरी दौर तक बीमारियों से जूझते राव का धैर्य जवाब दे गया था. उन्होंने कुछ न खाने का फैसला किया. लगातार चौबीस घंटों तक वे बिस्तर के बगल कुर्सी पर बैठे रहे. परिवार के सदस्यों से कहा कि ऐसी जिंदगी से क्या फायदा? क्यों इसे लंबा खींचना चाहते हो?

विनय सीतापति के अनुसार बाहर यह खबर फैलने पर शिवराज पाटिल का फोन आया. रात साढ़े दस बजे पाटिल, सोनिया गांधी और अहमद पटेल उनके पास अस्पताल पहुंचे. पटेल ने उनकी ओर पानी का गिलास बढ़ाया. गुस्से में भरे राव ने कहा कि पहले आप लोगों ने मुझ पर मस्जिद तोड़ने का आरोप लगाया और अब आप मुझे पानी दे रहे हैं! राव शिकायत करते रहे कि कांग्रेस उनके साथ कैसे पेश आई. मुझ पर उस काम का इल्जाम लगाया गया जो मैंने नहीं किया. लगभग चार घंटे लंबी इस मुलाकात में सोनिया लगातार चुप रहीं. 10 दिसंबर 2004 को ही सोनिया के एक सहायक परिवार से यह पूछने एम्स पहुंच गए कि उनका दाह संस्कार कहां किया जाना चाहिए ?

दिल्ली में अंतिम संस्कार न होने देने के लिए दबाव

23 दिसंबर 2004 को राव ने अंतिम सांस ली. गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने राव के छोटे बेटे प्रभाकर राव को हैदराबाद में अंतिम संस्कार की सलाह दी. प्रभाकर ने गुजरे तीस साल से अधिक वक्त के अपने पिता के दिल्ली से जुड़ाव का जिक्र किया. झल्लाते हुए पाटिल ने कहा कोई नहीं आएगा. गुलाम नबी आजाद भी यही सुझाव लेकर आए. शाम को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ सोनिया गांधी और प्रणव मुखर्जी अंतिम दर्शन को पहुंचे.

मनमोहन सिंह ने प्रभाकर राव से अंतिम संस्कार के स्थल के बारे में पूछा. प्रभाकर ने पिता की कर्मभूमि दिल्ली बताते हुए परिवार की इच्छा दोहरा दी. मनमोहन सिंह ने सिर हिला दिया. वहां मौजूद राव परिवार के नजदीकी पत्रकार संजय बारु से अहमद पटेल ने कहा, “शव को हैदराबाद ले जाना चाहिए. क्या आप उन्हें राजी कर सकते हैं?” तब तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाय. एस. चंद्रशेखर रेड्डी वहां पहुंच चुके थे. उन्होंने परिवार को शव हैदराबाद ले जाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई. रेड्डी ने भरोसा दिया, “हम वहां उनका भव्य स्मारक बनाएंगे.”

… अधजले शव का सच

राव का शव हैदराबाद ले जाए जाने के पहले कांग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड पहुंचा. पार्टी अध्यक्ष रहे नेताओं के शव को मुख्यालय के भीतर कांग्रेसजनों की श्रद्धांजलि के लिए ले जाने की परंपरा रही है. लेकिन परिवार के आग्रह और 30 मिनट के असहज इंतजार के बाद भी गेट नहीं खुला. हैदराबाद में हुसैन सागर झील के किनारे चार एकड़ क्षेत्र में अंतिम संस्कार की तैयारी की गई.

हैदराबाद में हवाई अड्डे पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और पूरा मंत्रिमंडल मौजूद था. अंतिम संस्कार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कई मंत्रियों के साथ ही विपक्ष के तमाम दिग्गज शामिल हुए. इस मौके पर सोनिया गांधी की अनुपस्थिति ने लोगों का ध्यान खींचा. उस रात टीवी चैनलों ने राव के अधजले शव के दृश्य दिखाए, जिनमें उनका सिर दिख रहा था और आवारा कुत्ते चिता पर झपट रहे थे.

इस मुद्दे पर विनय सीतापति ने राव के लम्बे समय तक सहयोगी रहे पी. वी. आर. के. प्रसाद को उद्धृत किया है, “शव पूरी तौर पर जल चुका था लेकिन राख के कारण बाहरी रूपरेखा दिख रही थी. यह बात बस लोगों के दिमाग में थी. वे जानते थे कि शव जबरदस्ती हैदराबाद लाया गया… शव को कांग्रेस मुख्यालय के भीतर नहीं ले जाने दिया गया. असलियत में अधजले शव की कहानी राव के अपमान पर लोगों के गुस्से की अभिव्यक्ति थी.”

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