कभी जीवन को सरल बनाने के लिए ईजाद किया गया प्लास्टिक आज इंसानों की मुसीबत बन गया है। हवा, पानी और जमीन में मौजूद यह प्लास्टिक हमारी रगों तक पहुंच रहा है। इसके विषैले और कैंसरकारक तत्व जीवन दीमक की तरह चाट रहे हैं। यह समुद्री जीवों के पेट से निकल रहा है। धरती पर विचर रहे इंसानों और जानवरों के शरीर में पहुंच जा रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, घरों को आपूर्ति किए जाने वाले दुनिया के कई हिस्सों के पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए जा रहे हैं।
हर साल पांच लाख करोड़ सिंगल यूज प्लास्टिक बैग
हर मिनट दुनिया भर में दस लाख पेयजल के लिए प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं। हर साल दुनिया में पांच लाख करोड़ सिंगल यूज प्लास्टिक के बैग इस्तेमाल होते हैं। दुनिया में कुल जितना प्लास्टिक बनता है उसके आधे हिस्से का सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल हो पाता है। बाकी को कचरे के हवाले कर दिया जाता है। वर्ष 1950-70 के दौरान दुनिया भर में बहुत कम मात्र में प्लास्टिक का उत्पादन होता था जिससे इसके कचरे का तुलनात्मक प्रबंध आसान था। 1970-90 दो दशकों के दौरान प्लास्टिक उत्पादन तीन गुना बढ़ा। इसी अनुपात में इसके कचरे में भी बढ़ोतरी हुई।
हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा
आंकड़े बताते हैं कि हर साल 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है। यह वजन दुनिया की इंसानी आबादी के वजन के बराबर है। शोधकर्ताओं के अनुसार, 1950 के बाद से अब तक 8.3 अरब टन प्लास्टिक दुनिया में पैदा किया गया है। इसका 60 फीसद हिस्सा या तो लैंडफिल में जमा हुआ या फिर किसी प्राकृतिक स्थल को तबाह करने का काम किया। साल 2000 के बाद पहले ही दशक में जितना प्लास्टिक का उत्पादन हुआ वह पिछले चालीस साल के दौरान हुए उत्पादन से अधिक था। भारत की बात करें तो 25,940 टन प्लास्टिक कचरा हर रोज पैदा होता है। यह नौ हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है।
पर्यावरण के लिए घातक
प्लास्टिक को मिला लंबे जीवन का वरदान इंसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। लंबे समय तक टिकाऊ रहने के चलते इसका कचरा भी प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता है। अधिकतर प्लास्टिक खुद ब खुद नष्ट नहीं होते, वे खुद को छोटे से छोटे रूपों में तोड़ते रहते हैं। इन्हीं सूक्ष्म प्लास्टिक को जानवर और मछलियां चारे के भ्रम में खा लेते हैं। इस तरह प्लास्टिक हम लोगों के भोजन तक पहुंच जा रहा है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में घरों को नलों द्वारा की जा रही जलापूर्ति में भी ये प्लास्टिक के सूक्ष्म हिस्से मिलने की बात सामने आई है। नालों को जाम करके ये प्लास्टिक मच्छरों और कीटों को पनपने का अनुकूल माहौल देते हैं जिससे मच्छरजनित रोगों का प्रकोप बढ़ता है।
समस्या ही समाधान
महासागरों के प्रत्येक वर्ग किमी क्षेत्र में करीब 13 हजार प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद हैं। अगर कोई निर्माता प्लास्टिक की चार बोतलें बनाता है तो ये वायुमंडल में उतनी मात्र में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है जितनी औसत आकार की पेट्रोल कार से एक मील दूरी तय करने से होगा। 2014 में दुनिया में हर साल 31.1 करोड़ टन सालाना प्लास्टिक का उत्पादन होता था। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2050 तक इस उत्पादन में तीन गुना वृद्धि हो जाएगी। तब वैश्विक तेल खपत का 20 फीसद सिर्फ प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल होगा।