पेगासस (Pegasus) मामले की जांच कर रही तकनीकी समिति ने गैर कानूनी जासूसी पर रोक लगाने और तंत्र को चाक चौबंद बनाने पर जनता से राय मांगी है। समिति ने 11 सवालों पर 31 मार्च तक जवाब देने को कहा है। लोग पेगासस (Pegasus) इंडिया इंवेस्टिगेशन साइट पर जाकर पूछ गए सवालों के आनलाइन ही जवाब दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए थे जांच के आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर 2021 को विवादित पेगासस जासूसी (Pegasus inquiry) मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश आरवी रवीन्द्रन की निगरानी में तीन सदस्यीय तकनीकी कमेटी गठित की थी। कोर्ट ने इजराइली स्पाईवेयर के जरिए भारतीय नागरिकों जिसमें पत्रकारों, राजनेताओं और जानमानी हस्तियां शामिल थीं, के फोन की टैपिंग और निगरानी किये जाने के बारे में मीडिया में आयी खबरों पर पूरे मामले की जांच कराए जाने की मांग स्वीकार करते हुए ये आदेश दिये थे। कोर्ट ने कमेटी से जल्दी से जल्दी जांच पूरी करके कोर्ट को रिपोर्ट सौंपने को कहा था।
तकनीकी समिति द्वारा जनता से पूछे गए सवाल इस प्रकार हैं:
अभी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा, भारत की रक्षा, पब्लिक आर्डर बनाए रखने और अपराधों की जांच के लिए नागरिकों के व्यक्तिगत और निजी बातचीत की निगरानी करती है। क्या इससे संबंधित कानून ठीक हैं या इसमें बदलाव की जरूरत है?
क्या टेलीग्राफ एक्ट और आइटी (IT) के तहत डिजिटल संवाद की निगरानी के लिए तय व्यवस्था, गैरकानूनी और अत्यधिक निगरानी को रोकने तथा दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त है ?
अगर मौजूदा व्यवस्था पर्याप्त नहीं है तो नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों और राष्ट्र की सुरक्षा तथा पब्लिक आर्डर के हित को संतुलित करते हुए और क्या ठोस सुरक्षात्मक उपाय करने की जरूरत है?
किस तरह से मौजूदा व्यवस्था को और ज्यादा सुदृढ़ और चाक चौबंद किया जा सकता है?
सरकार द्वारा किसी नागरिक के डाटा को निशाना बनाए जाने पर शिकायत निवारण का क्या तंत्र होना चाहिए। टारगेटेड सर्विलांस की शिकायत निवारण के लिए मंच क्या होना चाहिए?
क्या कुछ विशिष्ट श्रेणी के लोगों का सरकार द्वारा किये जाने वाले सर्विलांस के लिए कुछ विशेष सुरक्षा उपाय होने चाहिए। अगर हां तो किस तरह की श्रेणी के लोगों के लिए और किस हद तक ?
क्या राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की सुरक्षा में किए गए सर्विलांस को रिकार्ड करने या उजागर करने का सरकार का दायित्व बनता है। यदि हां तो किससे और किस तरह से ये खुलासा किया जाए ?
क्या एक निश्चित अवधि के बाद इससे संबंधित रिकार्ड सूचना के अधिकार के तहत उपलब्ध होने चाहिए या सार्वजनिक होने चाहिए ?
क्या आपके सुझाव भारतीय संवैधानिक व्यवस्था में व्यावहारिक और लागू किए जाने लायक हैं?
साइबर सुरक्षा को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए। नागरिकों को टारगेटेड सर्विलांस से सुरक्षित रखने के लिए किन कानूनी उपायों की जरूरत है?
साथ ही तकनीकी समिति ने इस मामले में और कोई राय होने पर उसकों बताने के लिए भी कहा है।