Bihar Politics: क्या गूंजेगा- ‘हम चिराग चाहते हैं’ का नारा? जगन मोहन रेड्डी से क्यों हो रही तुलना?

8 अक्टूबर 2020 को लोक जनशक्ति पार्टी (Lok Janshakti Party) के संस्थापक रामविलास पासवान (Ram vilas paswan) के निधन के महज 8 महीने बाद ही उनके छोटे भाई और हाजीपुर से लोजपा के सांसद पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumar Paras) ने अपनी ही पार्टी में फूट का ऐलान कर दिया. उन्होंने खुले तौर पर रामविलास पासवान के पुत्र और उनकी राजनीतिक विरासत को संभाल रहे चिराग पासवान (Chirag Paswan) को अपना नेता मानने से इनकार कर दिया. छह में से पांच सांसदों को लेकर लोजपा पर अपनी दावेदारी ठोक दी. यह मामला अब संविधान और कानून की हो गई है कि लोजपा का वास्तविक नेता कौन है. हालांकि, इन सबके बीच यह लड़ाई अब सड़क पर भी आने वाली है और चिराग पासवान ने खुला ऐलान किया है कि वे पूरे बिहार में ‘संघर्ष यात्रा’ निकालेंगे.

20 जून 2021 को लोजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद चिराग पासवान ने अपनी माता रीना पासवान के पैर छुए और दिवंगत पिता रामविलास पासवान की जयंती 5 जुलाई से शुरू होने वाली अपनी इस यात्रा को ‘आशीर्वाद यात्रा’ का नाम दिया. पार्टी सूत्रों के अनुसार इस ‘आशीर्वाद-संघर्ष यात्रा’ में चिराग पासवान लोगों के बीच जाकर रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी के तौर पर अपने लिए जनसमर्थन जुटाएंगे. माना जा रहा है कि उनकी यह यात्रा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की तर्ज की ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ की तरह होगी और इसके जरिये वे बिहार की जनता से अपने प्रति सहानुभूति के साथ ही सद्भावना बटोरने की कोशिश करने वाले हैं.

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि चिराग पासवान को यह लगता है कि उनके छह में से 5 सांसद तो चले गए, लेकिन उनको विश्वास है कि लोक जनशक्ति पार्टी उनकी ही रहेगी. अब सवाल उठता है कि आखिर बिहार के चिराग पासवान की आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी से तुलना क्यों हो रही है? दरअसल, जगन मोहन रेड्डी और चिराग पासवान की कहानी में पूरी तो नहीं, लेकिन कुछ हद तक समानता बताई जा रही है. बता दें कि पेशे से कारोबारी रहे जगन मोहन रेड्डी ने 2009 में राजनीति में कदम रखा था. इसके बाद जगन के जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आए. उनकी सफलता की पूरी यात्रा संघर्षों से भरी रही.

वर्ष 2009 में उनके राजनीति में प्रवेश करने के साथ ही उसी साल उनके पिता व कांग्रेस पार्टी के नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी की मृत्यु एक हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हो गई. तब उनके पिता अविभाजित आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. माना जा रहा था कि कांग्रेस जगन मोहन को ही पिता की विरासत सौंपेगी. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ. वाई एस राजशेखर रेड्डी के उत्तराधिकारी के तौर पर के रोसैया को आंध्र प्रदेश का सीएम बनाया गया. इसका बाद जगन मोहन रेड्डी का कांग्रेस के साथ विवाद का दौर शुरू हुआ. थोड़े ही महीनों में उन्होंने दूरी बना ली और वर्ष 2010 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया.

यहां यह बता दें कि अधिकतर लोग यही सोचते हैं कि वाईएसआर कांग्रेस जगन के पिता वाईएस राजशेखर रेड्डी के नाम पर था. लेकिन, वास्तविकता यह है कि वाईएसआर का अर्थ युवजन श्रमिक रायतू कांग्रेस पार्टी है. इसके बाद उनकी राजनीतिक यात्रा भी कई कई संघर्षों के दौर से गुजरा. उनके ऊपर कुछ केस भी किए गए थे इसलिए कुछ दिन जेल में भी बीते. बाहर आए तो वर्ष 2013 में आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ और तेलंगाना राज्य का गठन किया गया. इसके विरोध में उनकी मां विजयम्मा और उन्होंने भूख हड़ताल भी की और काफी तीव्र विरोध प्रदर्शन भी किए.

हालांकि इसके बाद वर्ष 2014 में विधानसभा चुनाव में उनकी हार हुई और 175 सीटों वाली विधानसभा में उनकी पार्टी को महज 67 सीटें मिलीं. आंध्र के सीएम चंद्राबाबू नायडू बन गए, लेकिन जगन ने विपक्ष की भूमिका में अपना काम बखूबी किया. फिर 6 नवंबर 2017 को उन्होंने ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ शुरू की और 40 दिनों की यात्रा में उन्होंने 13 जिलों की 125 विधानसभा सीटों की यात्रा तय की. 3648 किलोमीटर लंबी इस पैदल यात्रा में वे प्रतिदिन सैकड़ों लोगों से मिलते थे. 9 जनवरी 2019 को यह यात्रा समाप्त हो गई. इस यात्रा के दौरान ‘हम जगन चाहते हैं, जगन को आना चाहिए’ नारा गूंजा था.

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि उनकी संकल्प यात्रा के कारण ही वर्ष 2019 में YSR कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा और विधानसभा दोनों ही चुनावों में बेहतरीन प्रदर्शन किया. पार्टी ने राज्य में 175 विधानसभा सीटों में से 151 जीत लीं और वे 30 मई, 2019 को वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. यहां यह भी बता दें कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 25 सीटों में से 22 पर जीत हासिल की थी. राजनीतिक जानकारों की मानें तो सियासत में संघर्ष के बगैर कुछ प्राप्त नहीं होता. बिहार के सीएम नीतीश कुमार हों या पूर्व सीएम लालू प्रसाद या चिराग के पिता रामविलास पासवान, इन सभी की राजनीतिक यात्रा भी काफी संघर्षों भरी रही है.

राजनीतिक जानकारों का यह भी कहना है कि अब तक चिराग पासवान की छवि फिल्मी हीरो से पूरी तरह नहीं निकल पाई है. यह ठीक ऐसे ही है जब वर्ध 2014 तक जगन मोहन रेड्डी की छवि एक कारोबारी से अधिक नहीं निकल पाई थी. इसके बाद जगन मोहन ने संघर्ष का लंबा सफर तय किया और अपनी संकल्प यात्रा के जरिये जनता में अपनी पैठ बनाई और अपने नाम का भरोसा जगाया. जाहिर है चिराग के सामने भी अब संघर्ष का ही रास्ता बचा है, जैसा वे खुद भी कई बार कहते हैं. ऐसे में अब बारी चिराग पासवान की है कि अपनी ‘संघर्ष यात्रा’ के जरिये वह भी खुद को सीएम नीतीश कुमार के विकल्प के तौर पर स्थापित करें और बिहार का जगन मोहन रेड्डी बनकर दिखाएं.

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