रूस, चीन अमेरिका, पाकिस्तान, ईरान के साथ भारत भी इस इलाके की शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप का पार्ट होगा। हालांकि, अमेरिकी फैसले से पाकिस्तान, रूस और चीन की चिंता बढ़ गई है। खासकर पाकिस्तान, भारत को अफगान शांति वार्ता से दूर रखने का हिमायती था, लेकिन एक बार उसकी गंदी चाल नाकाम रही है। भारत की सफल और प्रभावशाली कूटनीति के चलते पाकिस्तान अपने अभियान में विफल रहा। आइए, जानते हैं कि अफगान शांति वार्ता में भारत की हिस्सेदारी क्यों थी जरूरी और उपयोगी।
- दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को खारिज नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया में किसी भी अंतरराष्ट्रीय हलचल और फैसले में उसके रोल की अवहेलना नहीं की जा सकती है। भारत ने सदैव से विश्व शांति में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया है। लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने वाला भारत दक्षिण एशिया में एक सक्षम देश है। दक्षिण एशिया की राजनीति का वह केंद्र बिंदू है। उसकी यही छवि पाकिस्तान और चीन को अखरती है।
- अभी तक अफगान शांति वार्ता में भारत को उस तरह का तवज्जो नहीं मिल सका है, जिसका वह हकदार है। शांति वार्ता में अब तक पाकिस्तान ही अहम स्टेकहोल्डर माना जाता था। पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की पहल पर शांति वार्ता में दूसरे क्षेत्रीय मुल्कों को इसमें शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि भारत, अफगान शांति वार्ता में इस भूमिका का हकदार है। इस मंच का हिस्सा बनकर ही भारत आतंकवाद, हिंसा और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ी अपनी बातों और शर्तों को आगे करने में कितना कारगर रहेगा ।