पाकिस्तानी सेना ने प्रधानमंत्री इमरान खान (PM Imran Khan) के नेतृत्व वाली पाकिस्तान (Paksitan) तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) की निर्वाचित सरकार को किनारे लगाने के लिए कट्टरपंथी इस्लामी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) से समझौता कर लिया है।
अगस्त, 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान के काबिज होने के बाद पाकिस्तानी सेना ने फिर से छद्म युद्ध के लिए अपने मददगारों को सेट कर दिया है। इन धार्मिक संगठनों का घरेलू राजनीति में दखल बढ़ने से पाकिस्तानी सेना की अपनी मनमानी करने की मंशा पूरी हो जाएगी। इन कट्टरपंथी संगठनों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ने से पाकिस्तान (Paksitan) में सैन्य शासन का बहाना मिल जाएगा।
इंटरनेशनल सिक्योरिटी स्टडीज प्रोग्राम ‘गेटअवे हाउस’ में समीर पाटिल के एक लेख के अनुसार टीएलपी (TLP) ने 2021 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में तब जमकर प्रदर्शन किए जब खुफिया एजेंसी आइएसआइ के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर हुआ विवाद सबके सामने आ गया। इस मुद्दे पर इमरान खान (Imran Khan) और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच की दरार जगजाहिर हो गई।
देर-सबेर भुगतने होंगे राजनीतिक परिणाम
इसीलिए सेना ने टीएलपी (TLP) के प्रदर्शनों का ध्यान भटकाने के लिए इस्तेमाल किया। साथ ही नागरिक शासक को संदेश देने के लिए टीएलपी (TLP) से समझौता किया ताकि वह कभी न भूलें कि देर-सबेर उन्हें राजनीतिक परिणाम भुगतने होंगे।
इमरान खान (Imran Khan) पर विपक्षी दलों खासकर पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पाकिस्तान (Pakistan) वापसी की संभावना का भी दबाव बढ़ता जा रहा है। इसलिए इमरान की पार्टी पीटीआइ (PTI) अब चिंता में है। चूंकि वर्ष 2023 में होने वाले आम चुनावों में उसे हर हाल में इसका खामियाजा भुगतना होगा, जबकि इस बार उसे पाकिस्तानी सेना की छतरी भी हासिल होने के आसार बहुत कम हैं।