मध्य प्रदेश के युवाओं को ही प्रदेश की सरकारी नौकरियां में मौका मिले, इसके लिए सरकार कानूनी रास्ता तलाश रही है। इसमें यह भी देखा जा रहा है कि किस तरह दूसरे राज्यों के युवाओं को यहां नौकरी पाने से रोका जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की घोषणा के बाद सामान्य प्रशासन और विधि विभाग में बैठकों का दौर शुरू हो गया है। महाधिवक्ता से भी राय ली जाएगी। माना जा रहा है कि पूर्व के अनुभवों को देखते हुए तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए इस तरह के प्रावधान किए जा सकते हैं। कुछ राज्यों में ऐसी व्यवस्था है।
अन्य राज्यों से जुटाई जा रही जानकारी
सामान्य प्रशासन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रदेश के युवाओं को ही राज्य में सरकारी नौकरी मिले, इसके लिए सभी विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। अन्य राज्यों में इससे संबंधित प्रावधानों की अधिकृत जानकारी हासिल जा रही है। साथ ही यह भी देखा जा रहा है कि इसमें किसी तरह की कानूनी अड़चन आ सकती है क्या।
सभी पहलुओं पर होगा विचार
मध्य प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के हितों को सुरक्षित रखने के लिए जब अधिकतम आयु सीमा में संशोधन किया गया था, तब हाई कोर्ट ने उसे संविधान की मूलभावना के खिलाफ बताया था। इसके बाद सरकार को नियम बदलने पड़े थे। इस तरह की स्थितियां न बनें, इसलिए सभी पहलुओं का परीक्षण करने के बाद ही कानूनी प्रावधान करते हुए नियम बनाए जाएंगे। विभाग के अपर मुख्य सचिव विनोद कुमार का कहना है कि अभी परीक्षण किया जा रहा है। सभी दृष्टिकोण से चीजों को देखने के बाद सरकार के स्तर से नीति व नियम तय होंगे।
मध्य प्रदेश के सामान्य प्रशासन विभाग ने चार जुलाई 2019 को अधिकतम आयु सीमा में संशोधन कर यह प्रावधान कर दिया था कि सीधी भर्ती के लिए आवेदक का मध्य प्रदेश के रोजगार कार्यालय में पंजीयन होना चाहिए। हालांकि इसे बाद में हटा लिया गया।
सूत्रों के अनुसार पंजाब सहित कुछ अन्य राज्यों में रोजगार कार्यालय में पंजीयन होने का प्रावधान है। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों के लिए 8वीं और 10वीं का राज्य से उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। पंजाब ने 10वीं कक्षा में पंजाबी भाषा का ज्ञान होना अनिवार्य किया है। मध्य प्रदेश में भी राज्य से 10वीं और 12वीं उत्तीर्ण होना अनिवार्य किया जा सकता है।