Lok Sabha Chunav 2024: बहुत देर कर दी हुजूर आते-आते! ‘इंडिया’ में रहना नीतीश की मजबूरी?

Lok Sabha Chunav 2024: कहा जा रहा है कि नाराजगी के बावजूद नीतीश कुमार के पास ‘इंडिया’ के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। नीतीश कुमार और बीजेपी में अब समझौता संभव नहीं है। वैसे, राजनीति के बारे में अनुमान लगाना कई बार मुश्किल होता है। सत्ता सबको चाहिए और उसके किए कोई भी कुछ भी करने को तैयार रहता है। उसकी एक ही वसूल है कि ‘कैलकुलेशन’ फिट बैठना चाहिए।

तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे बिहार में कांग्रेस और जदयू के लिए रियलिटी चेक साबित हुए हैं। आखिरकार इसने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एकजुट होने के लिए मजबूर कर दिया है। पटना, बेंगलुरु और मुंबई में इंडिया ब्लॉक की तीन बैठकों के बाद स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस का पलड़ा भारी है। अन्य दलों के नेता सोच रहे थे कि लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे की बातचीत में कांग्रेस का दबदबा रहेगा। इसी बीच तीन राज्यों में हार ने कांग्रेस की स्थिति कमजोर कर दी है।

…तो इस वजह से संयोजक नहीं बनाए गए नीतीश?

जेडीयू के लिए नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव तक कम से कम इंडिया ब्लॉक के संयोजक पद की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन बिहार विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान महिला और दलित विरोधी बयान उनके खिलाफ चले गए। 19 दिसंबर को नई दिल्ली में हुई चौथी बैठक से वो खाली हाथ वापस लौट गए।

आम धारणा है कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के अनुसार अपना लक्ष्य बदल लेते हैं। लेकिन, इस बार उनके लिए बहुत देर हो चुकी है। उन्हें कम से कम लोकसभा चुनाव तक इंडिया गुट के साथ रहना होगा। ये वास्तव में जद (यू) और कांग्रेस पार्टी के लिए बिहार में भाजपा को चुनौती देने के लिए ‘एक सीट, एक उम्मीदवार’ फॉर्मूले के साथ जाने के लिए एक आदर्श स्थिति है।

राहुल के ‘कॉल’ वाली बात को मानेंगे नीतीश?

जेडी (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा कि नई दिल्ली में इंडिया ब्लॉक की बैठक सफल रही और हम तीन सप्ताह के भीतर सभी राज्यों में सीट बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दे देंगे। काम प्रगति पर है और हम ऐसे उम्मीदवारों का चयन करेंगे, जो लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को हराने में सक्षम होंगे। बीजेपी नेता कह रहे हैं कि इंडिया ब्लॉक ने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नीतीश कुमार का नाम प्रस्तावित नहीं किया है, मैं बीजेपी से पूछना चाहता हूं कि क्या नीतीश कुमार ने आपको बताया था कि वो प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। वे बिना किसी आधार के बात करते हैं।

हालांकि, सियासी जानकारों को स्पष्ट है कि नीतीश कुमार अभी भी मानते हैं कि उन्हें इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक से वांछित परिणाम नहीं मिला, वो राजद और कांग्रेस के साथ कड़ी सौदेबाजी करेंगे। सूत्रों ने कहा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने इंडिया ब्लॉक की चौथी बैठक के बाद नीतीश कुमार से फोन पर बात की। लेकिन, बातचीत का विषय सामने नहीं आया। इसी बीच आम धारणा ये है कि उन्होंने नीतीश कुमार को पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ने के लिए मनाने की कोशिश की, जैसा उन्होंने 2015 के विधानसभा चुनाव में किया था।

ऐसे सुलझेगा बिहार में सीट बंटवारा का पेंच

बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं। जदयू और राजद बिहार की अधिकतम सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। जदयू और राजद नेताओं ने तो कुछ नहीं कहा है। लेकिन, सूत्रों का कहना है कि जदयू बिहार में 17 से 18 सीटें चाहती है और राजद नेता भी यही सोच रहे हैं। इन दोनों पार्टियों के नेता 2015 के विधानसभा चुनाव का फॉर्मूला अपना सकते हैं, जब उन्होंने 100-100 सीटों पर चुनाव लड़ा था और बाकी 43 सीटें कांग्रेस पार्टी को दी थी। इस बार वे 17 से 18 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं और बाकी 6 या 4 सीटें कांग्रेस और वाम दलों को देना चाहते हैं।

ऐसी भी संभावना है कि लोकसभा में 16 सांसदों वाली जद (यू) 16 सीटों पर सहमत हो सकती है और राजद को 16 सीटें मिलेंगी और शेष 8 सीटें कांग्रेस और वाम दलों के बीच वितरित की जाएंगी।

बिहार में एक अकेला कुछ नहीं कर सकता

बिहार में तीन राजनीतिक ताकतें हैं, राजद, जद (यू) और भाजपा। हर कोई जानता है कि जब भी दो ताकतें एक तरफ होती हैं तो वे चुनाव जीतती हैं, जब तक कि कोई कमजोर प्रदर्शन न करे या भाजपा के लिए बल्लेबाजी न करे, जैसा कि एलजेपी ने बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में किया था। 2015 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने भाजपा को आसानी से हरा दिया था, जब जदयू और राजद कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन सहयोगी थे।

उस वक्त मोदी लहर अब से कहीं ज्यादा मजबूत थी। इसी तरह जब 2020 के विधानसभा चुनाव में जद (यू) और भाजपा एक साथ थे, तो उन्होंने इसमें जोरदार जीत हासिल की। 2019 का लोकसभा चुनाव भी इसका उदाहरण था, जब जेडीयू और बीजेपी ने एलजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी और बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी।

बीजेपी के पास वही सिर्फ रटे-रटाए मुद्दे

हालांकि, तीन विधानसभा चुनावों में प्रचंड जीत के बाद भाजपा का मनोबल ऊंचा है, लेकिन उसे 2024 से पहले खासकर बिहार में सतर्क रहने की जरूरत है। भाजपा हमेशा भ्रम पैदा करने के लिए विपक्षी खेमे में कमियां ढूंढना पसंद करती है। अगर, राजद और जद (यू) 2015 के विधानसभा चुनाव की तरह एक साथ लड़ेंगे, तो भाजपा को यहां संघर्ष करना पड़ सकता है।

भाजपा बिहार में शराबबंदी की विफलता के कारण बढ़ते अपराध और जहरीली शराब की घटनाओं का मुद्दा उठा रही है और कह रही है कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य में ‘जंगल राज’ लौट आया है। बिहार भाजपा अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार के शासन में, न केवल आम आदमी बल्कि पुलिस भी अपराधियों के निशाने पर है। बेगूसराय में एक एएसआई की हत्या इसका प्रमुख उदाहरण है। शराब माफिया ने उन्हें ड्यूटी के दौरान कुचल दिया।

कास्ट कैलकुलेशन में भारी लालू-नीतीश

बिहार जैसे अविकसित राज्य में, जाति ही एकमात्र ऐसी चीज है, जिसे मतदाता किसी भी चुनाव के दौरान ध्यान में रखते हैं और अन्य मुद्दे जैसे नौकरियां, औद्योगीकरण, किसान और अन्य समस्याएं गौण हैं। यही कारण है कि राजद आरामदायक स्थिति में है क्योंकि सभी जानते हैं कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव किसी भी कीमत पर भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे।

लालू प्रसाद ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कभी भी भाजपा और आरएसएस से समझौता नहीं किया। यही कारण हो सकता है कि हाल में संपन्न जाति सर्वेक्षण के अनुसार मुसलमानों और यादवों (मुस्लिम 17.7 प्रतिशत और यादव 14 प्रतिशत) का वोट निर्णायक तौर पर राजद के साथ जाएगा। अगर बिहार में 4.21 फीसदी वोटर वाले कोइरी और 2.87 फीसदी वोटर वाले कुर्मी (लव-कुश) एक हो जाएं तो बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है।

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