कोरोना संकट काल दौरान भी देश में श्रमिकों को लेकर राजनीति हो रही है। बता दें गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन के बिना काम की अवधि को आठ घंटे प्रतिदिन से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है, इसके विरोध में देश के सात राजनीतिक दलों ने सरकार पर श्रम कानूनों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखा और इस मुद्दे पर अपना विरोध दर्ज कर राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की बात कही। विरोध कर राष्ट्रति को पत्र लिखने वाले नेताओं में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी राजा, CPI-ML महासचिव दिपांकर भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के महासचिव देबव्रत विश्वास, आरसपी के महासचिव मनोज भट्टाचार्य, RJD सांसद मनोज झा और वीसीके के अध्यक्ष थोल तिरूवमवलवन शामिल हैं। इन सभी का कहना है कि श्रम कानूनों को इस तरह से कमजोर करना संविधान का उल्लंघन है। इसके साथ ही इन सभी दलों की ओर से ये भी कहा गया है कि कोरोना वायरस महामारी के आने से पहले भारत की अर्थव्यवस्था मंदी की तरफ बढ़ रही थी। नही लॉकडाउन और कोरोना संकट की वजह से जिन्होंने अपनी आजीविक खोई है, सरकार उनकी मदद के लिए बहुत कम प्रयास कर रही है। ये बात भी कही गई कि कोरोना संकट को रोकने के लिए देश में जबसे लॉकडाउन की शुरुआत हुई है तब से 14 करोड़ लोग बेरोजगार हो चुके हैं।
बता दें देश में कोरोना संकट को रोकने के लिए मार्च के अंतिम सप्ताह से लगातार लॉकडाउन जारी है। जो 17 मई तक रहेगा। ऐसे में लाखों कामगार, मजदूर और रोज की कमाई पर परिवार पालने वाले बेरोजगार हो गए हैं।