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RJD का दावा- पिछड़े, अतिपिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक जनगणना का बहिष्कार करेंगे! बढ़ा सियासी बवाल

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गत 20 जुलाई को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Union Minister of State for Home Nityanand Rai) ने कहा था कि 2021 की जनगणना (2021 Census) में केंद्र सरकार केवल अनुसूचित जाति और जनजाति की ही गिनती कराने के पक्ष में है. इस स्पष्टीकरण के बाद से ही बिहार में जातिगत जनगणना (Caste Census) की मांग ने सियासी रंग ले लिया है. अब इस मुद्दे पर जहां सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) एक साथ नजर आ रहे हैं वहीं, भाजपा (BJP) अकेली पड़ती नजर आ रही है. यहां तक की NDA के सहयोगी जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) का हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM)और मुकेश सहनी (Mukesh Sahni) की विकासशील इंसान पार्टी (VIP) का भी समर्थन लालू-नीतीश के साथ है. अब इस मुद्दे को लेकर लगी सियासी आग में राजद ने घी डालने का काम कर दिया है. दरअसल पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है कि अगर जातिगत जनगणना नहीं होगी तो देश के पिछड़े, दलित व अल्पसंख्यक जनगणना का बहिष्कार कर सकते हैं.

RJD ने अपने आधिकारिक ट्वीट में लिखा, ‘अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े-अतिपिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते हैं. जनगणना के जिन आँकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होता हो, तो फिर जानवरों की गणना वाले आँकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे?’

इससे पहले RJD नेता व बिहार विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट करते हुए लिखा, ‘पिछड़ा/अतिपिछड़ा विरोधी मोदी सरकार देश की पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों की गणना कराने से क्यों डर रही है? क्या इसलिए कि हज़ारों पिछड़ी जातियों की जनगणना से यह ज्ञात हो जाएगा कि कैसे चंद मुट्ठी भर लोग युगों से सत्ता प्रतिष्ठानों एवं देश के संस्थानों व संसाधनों पर कुंडली मार बैठे हैं?’

राजद के ट्वीट को हास्यास्पद बताते हुए भाजपा के प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा है कि जातीय जनगणना की मांग के बहाने लालू यादव इमोशनल कार्ड खेलना चाहते हैं. आरजेडी की डूबती नैया को बचाने का उनका प्रयास है. अगर जातीय जनगणना को लेकर लालू जी इतने सजग हैं तो सबसे पहले उन्हें कांग्रेस से सवाल पूछना चाहिए कि 2011 पार्लियामेंट के रिजोल्यूशन के बाद जब सहमति बन गई थी तो कांग्रेस ने क्यों नहीं कराया.

कांग्रेस ने कास्ट सेंसस को सेंसस एक्ट से अलग कर दिया और जाति जनगणना के नाम पर सिर्फ सैंपल सर्वे किया बल्कि कास्ट सेंसज को अलग से कराने में कांग्रेस ने ₹5000 खर्च किए. प्राइवेट एजेंसी और एनजीओ को इसका जिम्मा देकर पैसों का बंदरबांट किया. अगर तब कास्ट सेंसस हो गया रहता तो आज सभी राज्यों के पास आंकड़े होते. आज आंकड़े देने की स्थिति नहीं है क्योंकि इसमें लाखों त्रुटियां हैं. कांग्रेस ने इस बहाने देश को हजारों रुपए का चूना लगाया.

बता दें कि देश में अंतिम बार 1931 में जातिगत जनगणना हुई थी. 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया. 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन OBC और दूसरी जातियों का नहीं.साल 1990 में मंडल आयोग की सिफारिश लागू कर दी जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण मिलने लगा. इसके साथ ही कमोबेश पूरे देश की राजनीति की दिशा भी बदल गई.

हालांकि भारत में ओबीसी आबादी कितनी प्रतिशत है, इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन मंडल आयोग के अनुसार तब भारत में ओबीसी आबादी 52% थी. यहां यह बता दें कि मंडल कमीशन ने साल 1931 की जनगणना को ही आधार माना था. इसके बाद 2011 में सोशियो इकोनॉमिक कास्ट सेंसस (SECC) यानी सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना आधारित डेटा जुटाया गया था. चार हजार करोड़ से अधिक खर्च किए गए. वर्ष 2016 में SECC के सभी आंकड़े प्रकाशित किए गए, लेकिन जातिगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए.

हालांकि, यह जानकारी सामने आई कि जाति आधारित डेटा सामाजिक कल्याण मंत्रालय को सौंप दिया गया, जिसके बाद एक एक्सपर्ट ग्रुप बना. हालांकि इसके बाद सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना यानी SECC आंकड़ों का क्या हुआ, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई. बहरहाल माना जाता है कि SECC 2011 में जाति आधारित डेटा जुटाने का निर्णय तब की UPA सरकार ने राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव और समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव के दवाब में ही लिया था. एक बार फिर लालू प्रसाद यादव इसको लेकर मुखर हैं और सीएम नीतीश का भी साथ मिल रहा है.

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