हाशिये पर रहकर भी सियासत की धुरी- लालू, नजरअंदाज करना मुश्किल

राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) 73वें साल में प्रवेश कर रहे हैं। तमाम उतार चढाव के बावजूद पिछले 30 सालों से वे बिहार के सियासी कुरुक्षेत्र (Political Battle) के केंद्र में बने हुए हैं। उनका विरोध हो सकता है या समर्थन, किंतु उन्हें नजरअंदाज (Ignore) करना बहुत मुश्किल है। चारा घोटाले (Fodder Scam) के जुर्म में पिछले करीब ढाई साल से ज्यादा समय से जेल में रहते हुए भी वे बिहार में विपक्ष की राजनीति (Opposition Politics) की धुरी बने हुए हैं। आगामी विधानसभा चुनाव (Assembly Election) में आज भी लालू के नाम पर ही राजनीति हो रही है।

पिछले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) में लालू की पार्टी RJD शून्य पर आउट हो गई। उनके समर्थकों को नेता प्रतिपक्ष (Leader of Opposition) तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के नेतृत्व में लड़ा गया पहला चुनाव बुरे सपने की तरह दशकों तक याद रहेगा। लालू की तीन दशक की राजनीति में उनके कुनबे की पहली बार ऐसी करारी हार हुई, जिसमें पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल सकी। लोकसभा चुनाव में यह हालत विपक्षी महागठबंधन (Grand Alliance) में RJD के सहयोगी दलों की भी रही। उन्‍हें भी कोई खास सफलता नहीं मिल पाई। एकमात्र सीट जीतकर कांग्रेस (Congress) जैसे-तैसे अपनी प्रतिष्ठा बचा सकी।

लोकसभा चुनाव में ऐसी करारी हार के बावजूद लालू प्रसाद यादव विपक्ष की राजनीति की धुरी बने रहे हैं। सत्‍ता पक्ष उन्‍हें नजरआंदाज नहीं कर रहा। हाल की बात करें तो 7 जून के भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा आयोजित अमित शाह (Amit Shah) के वर्चुअल जनसंवाद (Virtual Jan Samvad) में लालू-राबड़ी के कार्यकाल (Lalu-Rabri Period) से राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के कार्यकाल की तुलना की गई। जनता दल यूनाइटेड (JDU) सुप्रीमो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बूथ स्तरीय पदाधिकारियों से बातचीत के जारी कार्यक्रम में भी चर्चा की शुरुआत लालू-राबड़ी के कार्यकाल से ही हो रही है और अंत भी वहीं आकर होता है।

समर्थक तो सकारात्मक हैं ही, विरोधी भी लालू के नकारात्मक मॉडल (Negative Model) की चर्चा इस तरह करते हैं, जैसे उनके बिना काम नहीं चल सकता है। मतदाताओं (Voters) को आज भी लालू-राबड़ी शासन के लौट आने के नाम से ही डराया जा रहा है।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में पहली बार 2005 के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2005) में हारकर बिहार की सत्ता से आउट होने के बाद लालू प्रसाद यादव का अबकी सातवां चुनाव आने वाला है। तीन विधानसभा और तीन लोकसभा के चुनाव हो चुके हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव को अपवाद माना जा सकता है, जिसमें JDU व कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लालू ने नीतीश की अगुवाई में चुनाव लड़ा था और शानदार जीत भी हासिल की थी। किंतु बाकी पांच चुनावों में लालू के नेतृत्व को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है। लालू भले ही जेल में हैं तथा सत्‍ता से आउट हो चुके हैं, लेकिन राजनीति से आउट नहीं हुए हैं।

बहरहाल, आने वाले विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) का परिणाम चाहे जो हो, किंतु सच्चाई यह है कि लगातार इतने चुनाव हारकर भी लालू को बिहार की राजनीति में जिंदा हैं, उन्‍हें एकदम से आउट नहीं किया जा सका है।

Leave a Comment

Your email address will not be published.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1