Ravi Kumar Dahiya Silver Medal

जानिए टोक्यो ओलिंपिक के सिल्वर मेडलिस्ट रवि कुमार दहिया को क्यों कहा जाता है शांत तूफान

अगर आप विराट कोहली के हाव-भाव से परिचित हैं तो यह बताने की जरूरत नहीं कि खिलाड़ी जीतने और हारने पर किस तरह की प्रतिक्रियाएं देते हैं लेकिन Tokyo में रजत पदक जीतने वाले पहलवान Ravi Kumar Dahiya न जीतने पर बहुत ज्यादा खुश होते हैं और न ही हारने पर दुखी। दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में उनके साथी उन्हें शांत तूफान के नाम से बुलाते हैं।

23 साल के रवि Tokyo में पदक के दावेदारों में शामिल नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने पहले ही Olympics में रजत जीतकर सभी को चौंका दिया। हालांकि वह 57 किग्रा भारवर्ग के फाइनल में देश के सबसे युवा ओलिंपिक चैंपियन बनने से चूक गए। रूसी Olympics समिति (आरओसी) के मौजूदा विश्व चैंपियन जावुर युवुगेव ने उन्हें 7-4 से हरा दिया। इससे पहले युवुगेव ने 2019 में विश्व चैंपियनशिप में भी उन्हें हराया था।

सिल्वर मेडल जीतने वाले पहलवान Ravi Kumar Dahiya ने कहा, “मैं रजत के लिए टोक्यो नहीं आया था। इससे मुझे संतुष्टि नहीं मिलेगी। शायद इस बार मैं रजत का ही हकदार था क्योंकि विपक्षी पहलवान बेहतर था। उसकी शैली बहुत अच्छी थी। मैं अपने हिसाब से कुश्ती नहीं लड़ पाया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या कर सकता हूं। उसने बहुत चतुरता से कुश्ती लड़ी।”

रवि 12 साल की उम्र में सोनीपत के गांव नाहरी से निकलकर दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम आए। रवि के मौजूदा कोच प्रवीण दहिया ने बताया, “उन्हें स्टेडियम में एक छोटा सा कमरा मिला हुआ था और उनके साथ दो पहलवान और भी थे। पहलवानों की कुल संख्या के अनुसार यहां पर कमरे दिए जाते हैं। हालांकि अब उन्हें अलग कमरा मिल जाएगा क्योंकि उन्होंने Olympics में पदक जीता है। वह हमेशा से शांत ही रहता है। जब वह मिट्टी की कुश्ती में भी लड़ता था तब भी शांत रहता था। हम बोलते थे कि बेटा थोड़ा हंसना भी सीख ले।”
रवि जब छत्रसाल आए थे तब से वह अपने गुरु सतपाल और पूर्व कोच वीरेंद्र कुमार के मार्गदर्शन में ट्रेनिंग करते रहे। Tokyo Olympics से कुछ महीने पहले वीरेंद्र का छत्रसाल से ट्रांसफर हो गया, लेकिन रवि छत्रसाल में ही रहे। फिर वह सतपाल, 2 बार के Olympics पदक विजेता सुशील कुमार और कोच प्रवीण दहिया के साथ अभ्यास करते रहे।

सतपाल बोले, अलग से होती थी ट्रेनिंग

सतपाल ने बताया कि वह टोक्यो के लिए क्वालीफाई कर चुका था, लेकिन हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि उसे अखाड़े में अभ्यास के दौरान चोट नहीं लगे और Corona से भी बचा रहे। हमने उसे गांव नहीं जाने दिया। मैं और सुशील उसके दांव पेच के बारे में बताते रहे और सिर्फ उसको ही अलग से दिन में छह से आठ घंटे तक अभ्यास कराते थे। सुशील ने उन्हें अभ्यास के लिए उनके वजन और वजन से ज्यादा के भी पहलवान अभ्यास के लिए दिए थे। जब वह छत्रसाल आया था तब मैंने ही उसका चयन किया था क्योंकि मुझे पता था कि यह लड़का Olympics में पदक जीतेगा। टोक्यो जाने से पहले मैंने उससे कहा था कि कोई भी दबाव नहीं लेना है। उम्मीदें तो होती ही हैं, लेकिन तुझे बस अपने खेल पर ध्यान देना है।

कोच प्रवीण ने कहा कि उसके पिता राकेश 60 किलोमीटर दूर अपने गांव से अखाड़े में दूध और दही देने आते थे। वह लगभग 12 साल तक ऐसे ही करते रहे हैं। अब उनकी यह मेहनत रंग लाई।

दहिया ने 2015 में अंडर-23 विश्व चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था जिससे उनकी प्रतिभा की झलक दिखी थी। उन्होंने प्रो कुश्ती लीग में अंडर-23 यूरोपीय चैंपियन और संदीप तोमर को हराकर खुद को साबित किया। इसके बाद उन्होंने नूर सुल्तान में 2019 विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर Olympics के लिए क्वालीफाई किया था।

जब सुशील का 2008 बीजिंग Olympics में कांस्य पदक आया था तब उन्होंने इस खेल में नई जान फूंक दी थी। सुशील की हर जगह गूंज थी और वह उस समय के नए स्टार थे। उनकी कड़ी में नाम योगेश्वर दत्त का जुड़ा जिन्होंने 2012 लंदन ओलिंपिक में कांस्य पदक जीतकर अपना लोहा मनवाया था। कुश्ती की यह जोड़ी सब जगह हिट थी, लेकिन बाद में अलग हो गई। अब सुशील हत्या के मामले में जेल में हैं तो योगेश्वर नेता बन गए हैं। सुशील के बाद अब रवि का दौर शुरू हो गया है और अब हर जगह रवि के चर्चे हैं।


04 करोड़ रुपये की राशि Ravi Kumar Dahiya को हरियाणा सरकार से मिलेगी। इसके अलावा क्लास-1 नौकरी और रियायती दर पर हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण का एक प्लाट भी दिया जाएगा। रवि के गांव नाहरी में आधुनिक सुविधाओं से इंडोर कुश्ती स्टेडियम भी बनेगा

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