बिहार का वो चुनाव जिसमें टीएन शेषन को उतारने पड़े कमांडो, लालू यादव हो गए थे आग- बबूला

शेषन ने पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने के लिए पंजाब से कमांडो हायर कर लिए और बिहार के तमाम पोलिंग बूथ पर तैनात कर दिया, खासकर जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम थे.

टीएन शेषन साल 1990 में भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त बने. अपनी साफ-सुथरी छवि और कड़क मिजाज के लिए मशहूर शेषन सिद्धांतों पर अडिग रहने वाले शख्स थे और मौका पड़ने पर प्रधानमंत्री तक से लड़ जाते. उन्होंने साफ कह दिया था कि उनके रहते किसी चुनाव में धांधली नहीं हो सकती है. साल 1995 में बिहार में विधानसभा चुनाव होने थे. तब तक बैलेट पेपर से ही चुनाव हुआ करता था और बिहार चुनाव को लेकर बदनाम था. हर चुनाव में बूथ कैप्चरिंग से लेकर बैलेट पेपर लूट की और मारपीट- हिंसा की खबरें सुर्खियां बनती तीं

बिहार से बुलवाए गए कमांडो

टीएन शेषन ने फैसला किया कि चाहे जो हो जाए, बिहार में किसी भी सूरत में पारदर्शी तरीके से चुनाव करवा कर दम लेंगे. मृत्युंजय शर्मा, वेस्टलैंड बुक्स (Westland Books) से प्रकाशित अपनी ताजा किताब “ब्रोकेन प्रॉमिसेजः कास्ट, क्राइम एंड पॉलिटिक्स इन बिहार” (Broken Promises: Caste, Crime and Politics in Bihar) में 1995 के उस चुनाव का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि शेषन ने पारदर्शी तरीके से चुनाव कराने के लिए पंजाब से कमांडो हायर कर लिए और बिहार के तमाम पोलिंग बूथ पर तैनात कर दिया, खासकर जो हिंसा और बूथ कैप्चरिंग के लिए बदनाम थे.

लालू यादव का गुस्सा

शेषन की इस कड़ाई से लालू यादव इतने नाराज हुए कि उनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने लगे और पागल सांड़ नाम रख दिया. मृत्युंजय शर्मा लिखते हैं कि “लालू यादव अक्सर सुबह अपने घर लगने वाले दरबार में और जनसभाओं में कहा करते थे कि शेषनवा पगला सांड़ जैसा कर रहा है… मालूम नहीं है कि हम रस्सी बांध के खटाल में बंद कर सकते हैं…”

प्रत्याशियों का मर्डर

1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में सिर्फ लालू यादव या विपक्षी ही टीएन शेषन के लिए चुनौती नहीं थे, बल्कि नक्सली और बाहुबली भी बड़ी चुनौती थे. चुनाव के दौरान एक के बाद एक मर्डर से राज्य हिल गया. कांग्रेस के गोपालगंज व तारापुर से उम्मीदवार और सीपीआईएमएल के उम्मीदवार की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. हिंसा का दौरान चुनाव नतीजों के बाद भी जारी रहा. जनता दल के बहुचर्चित नेता अशोक सिंह की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई.

मृत्युंजय शर्मा लिखते हैं किअशोक कुमार मशरख से विधायक थे और उनका आवास मुख्यमंत्री लालू के आवास से चंद कदम की दूरी पर था. वहां हमेशा हथियारबंद सुरक्षाकर्मी तैनात रहते थे, इसके बावजूद हत्यारे उनके घर में घुस गए और मौत के घाट उतार दिया. इस हत्याकांड में प्रभुनाथ सिंह का नाम आया, जो कभी अशोक सिंह के बहुत करीब थे और उनके पॉलिटिकल मेंटर कहे जाते थे.

लालू के सालों का उभार

1995 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव भारी-भरकम बहुमत से सत्ता में आए. इसके बाद उनके दोनों साले- साधु और सुभाष यादव आए दिन सुर्खियां बनने लगे. सत्ता के गलियारे में उन्हें S2 कहकर संबोधित किया जाने लगा. सरकार के तमाम अहम फैसले यही दोनों करने लगे. मृत्युंजय शर्मा अपनी किताब में लिखते हैं कि साधु यादव ने तो लालू के बड़े भाई महावीर राय के साथ हाथापाई की, जिन्होंने संघर्ष के दिनों में लालू का मजबूती से साथ दिया था. सुभाष यादव भी पीछे नहीं थे. उन्होंने 1995 के विधानसभा चुनाव में एक आईएएस अफसर की पत्नी को वोट डालने से रोकने की कोशिश की और मुकदमा दर्ज हुआ.

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