Kajari Teej Vrat Katha 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर कजरी तीज का व्रत (Kajari Teej Vrat) रखा जाता है। इस बार यह व्रत 14 अगस्त दिन रविवार को मनाया जाएगा। अलग-अलग स्थान पर इस व्रत को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। जैसे कजरी तीज, कजली तीज, बूढ़ी तीज और सातूड़ी तीज आदि. इस व्रत को सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत के रूप में रखती हैं।
कजरी तीज (Kajari Teej) पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और नीमड़ी माता की पूजा आराधना करती हैं। कजरी तीज का व्रत (Kajari Teej Vrat) भाद्र पद मास की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है। ये तीज सुहागिन महिलाएं रखती हैं और चांद को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस व्रत के पूर्ण लाभ के लिए कथा का पाठ भी किया जाता है। मान्यता है कि इस कथा के पाठ से तीज माता का आशीर्वाद मिलता है। आइए जानते हैं क्या है।
कजरी तीज की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण दंपति रहते थे। भाद्रपद महीने की कजली तीज (Kajari Teej) आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा. ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ.ब्राह्मण बोला, सातु कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ.रात्रि का समय था। ब्राह्मण एक साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा, लेकिन तभी आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया।
इस पर ब्राह्मण ने कहा कि मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं.मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ नहीं मिला। साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे… कजली माता की कृपा सब पर हो।