आत्मविश्वास का अंतरिम बजटः क्यों अति विश्वास में है मोदी सरकार? क्या हैं राजनीतिक संकेत

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी और अंतरिम बजट पेश कर दिया है. बजट में सरकार की ओर से कोई बड़ा ऐलान नहीं किया गया है. मोदी सरकार ने अंतरिम बजट के जरिए बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. वित्त मंत्री ने आगामी लोकसभा चुनाव जीतकर जुलाई में बजट पेश करने का भी दावा कर दिया है.

लोकसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी और अंतरिम बजट पेश कर दिया है. बजट में मोदी सरकार ने डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स में कोई बदलाव नहीं किया है. बजट को सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल के रिपोर्ट कार्ड की तरह पेश किय देश में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी की उम्मीद जाहिर करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि जुलाई में पूर्ण बजट में हमारी सरकार विकसित भारत के टारगेट का विस्तृत रोडमैप प्रस्तुत करेगी. वहीं, पीएम मोदी ने कहा कि यह देश के भविष्य के निर्माण का बजट है. ये विकसित भारत के लिए समर्पित बजट है.

देश में दो महीने के बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के चलते उम्मीद की जा रही थी कि मोदी सरकार बजट के जरिए लोक लुभावने वादे करके सियासी समीकरण को साधने का दांव चलेगी, लेकिन वित्त मंत्री की ओर से ऐसा कुछ नहीं किया गया. ठीक 11 बजे सीतारमण ने बजट स्पीच पढ़नी शुरू की और फिर देखते ही देखते उनकी बात कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करते हुए सीतारमण कोई भी बड़ा ऐलान करने से बचीं

वित्त मंत्री निर्मला ने लोक लुभावने वादों से परहेज किया. साथ ही मोदी सरकार न ही किसी तरह की कोई बड़ी घोषणाएं की और न ही किसी तरह के बड़े नीतिगत फैसले लिए. चुनावी साल होने के चलते लोगों ने मोदी सरकार से जो आस लगाए बैठे थे, वह अधूरी ही रह गई. वित्त मंत्री ने 2024 में चुनाव जीतकर जुलाई में पूर्ण बजट पेश करने का भी दावा कर दिया. यह आत्मविश्वास तभी आता है जब चुनाव जीतने और फिर से सरकार बनाने का पूरा विश्वास हो. ऐसे में सवाल उठता है कि मोदी सरकार ने जिस तरह पूरे कॉन्फिडेंस के साथ अंतरिम बजट पेश किया है इसके पीछे क्या राजनीतिक संकेत है?

मोदी सरकार का आत्मविश्वास?

मोदी सरकार पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरी हुई है, जिसके चलते ही अंतरिम बजट में किसी तरह कीलोक लुभावने वादें करने से बची है. सरकार का पूरा जोर दस साल के सरकार की उपलब्धियां गिनाने पर ज्यादा रहा. वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने जरूर रेलवे से लेकर अन्य सेक्टर में प्रोजेक्ट को लेकर मोदी सरकार ने अपना विजन रखा है. वित्त मंत्री ने निर्मला सीतारमण ने अपना छठा बजट पेश करते हुए चौंका दिया, क्योंकि यह उनका अब तक का सबसे छोटा बजट भाषण था. अंतरिम बजट में सीतारमण ने सस्टेनेबल ग्रोथ पर फोकस किया. वह किसी बड़ी जनकल्याणकारी योजना का ऐलान करने से बचीं.

लोकसभा चुनाव के चलते लोगों को उम्मीद थी कि सीतारमण अंतरिम बजट में कुछ बड़ा धमाका करेंगी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. मोदी सरकार ने अंतरिम बजट के जरिए बड़ा सियासी संदेश देने की कोशिश की है. लोकसभा चुनाव जीतने के लिए वो लोगों को लुभाने के लिए बजट के जरिए चुनावी हथकंडा अपनाने का दांव नहीं चलेगी. इस तरह यह भी संदेश देने की कोशिश की गई है कि जनकल्याणकारी और लोकलुभावनी स्कीमों का ऐलान करने के लिए मोदी सरकार अंतरिम बजट के मंच का इस्तेमाल नहीं करेगी बल्कि लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटने के बाद जुलाई में जब पूर्ण बजट पेश करेगी तो तब अपना रोडमैप रखेगी. उस समय सरकार अपना विजन रखेंगी.

मोदी सरकार के कॉन्फिडेंस के पीछे?

मोदी सरकार को देश की मौजूदा सियासी हालात में अपनी सत्ता में वापसी की पूरी उम्मीदें दिख रही है, जिसके चलते सरकार आत्मविश्वास से भरी हुई है. पीएम मोदी के सियासी कद का विपक्षी खेमे के पास कोई नेता नहीं है. अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार हो रहा है, जिसे लेकर देशभर में अलग तरह का माहौल है. माना जा रहा है कि राम मंदिर का सियासी असर अप्रैल में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी दिखेगा, जिसका फायदा बीजेपी को मिलने की उम्मीद है. इन दिनों देश के गांव- गांव, गली-गली और शहर-शहर में अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का मुद्दा छाया हुआ है. राम मंदिर के इर्द- गिर्द बीजेपी 2024 का चुनावी एजेंडा सेट कर रही और हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की बिसात बिछाने में जुटी है.

राम मंदिर अयोध्या में भव्य तरीके से बन कर तैयार हो रहा, जिसका उद्घाटन पीएम मोदी ने कर दिया है. अब ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष को बड़ी सफलता हाथ लगी है. जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में स्थिति व्यास जी तहखाने में 31 साल के बाद पूजा की अनुमति दे दी है, जिसके बाद देर रात ही प्रशासन ने पूजा शुरू करा दी है. ज्ञानवापी का सर्वे भी पूरा हो चुका है और मामला अदालत में है. ऐसे में राम मंदिर और अब काशी के ज्ञानवापी का सियासी प्रभाव 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत के राज्यों में पड़ेगा, जिसका लाभ बीजेपी को मिलने की उम्मीद है. जातियों के सहारे लोकसभा चुनाव की नैया पार करने की प्लानिंग कर रहे विपक्षी गठबंधन को बीजेपी के राम मंदिर और ज्ञानवापी के जूझना होगा.

मोदी सरकार की अपनी सोशल इंजीनियरिंग है, जिसके जरिए मजबूत सियासी समीकरण बना रखा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते रहे हैं कि उनके लिए सिर्फ यही चार जातियां हैं, जो गरीब, युवा, महिला और किसान हैं. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए इन चार ‘जातियों’ पर ही अपना फोकस रखा. सीतारमण ने गांवों, किसानों और महिलाओं के लिए कई घोषणाएं कीं. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार गरीब, महिलाएं, युवा और अन्नदाता पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है. उनका जीवन अच्छा बनाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही गरीब का कल्याण ही देश का कल्याण है और हम गरीबों के लिए काफी काम कर रहे हैं. महिलाएं और युवा मतदाता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष समर्थक वर्ग के रूप में उभरा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के जीत में महिला और युवा वोटरों की भूमिका अहम रही है.

विपक्ष बिखरा, नीतीश ने छोड़ा साथ

मोदी सरकार के आत्मविश्वास के पीछे वजह यह है कि विपक्ष पूरी तरह से बिखरा हुआ है. बीजेपी से 2024 के चुनाव में मुकाबला करने के लिए विपक्षी दल एकजुट होकर इंडिया गठबंधन बनाया, जिसमें 28 दल शामिल थे. बसपा प्रमुख मायावती, बीआरएस के अध्यक्ष केसीआर, बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक, वाईएसआर के प्रमुख जगनमोहन रेड्डी, असदुद्दीन ओवैसी और सुखवीर बादल जैसे छत्रप पहले से ही इंडिया गठबंधन के साथ नहीं लेकिन अब ममता बनर्जी के किनारे होने के बाद नीतीश कुमार ने भी नाता तोड़ लिया है. नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के शिल्पकार थे, जो अब बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के साथ हैं. विपक्षी गठबंधन के लिए बड़ा सियासी झटका है जो बीजेपी के कॉन्फिडेंस में इजाफा कर रहा है. बिखरा हुआ विपक्ष मौजूदा समय में बीजेपी से मुकाबला नहीं कर सकता है?

इंडिया गठबंधन में कुछ तय नहीं?

बीजेपी से मुकाबला के लिए बने विपक्षी INDIA गठबंधन में अभी तक कुछ तय नहीं है. न ही गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग हो सकी है और न ही एजेंडा तय है. इतना ही नहीं विपक्षी गठबंधन की संयक्त रैली की रूपरेखा अभी तक नहीं बन सकी. विपक्षी गठबंधन का चेहरा कौन होगा और किसके नेतृत्व में यह चुनावी मैदान में उतरेगी, उस पर भी सहमति नहीं बन पा रही है. गठबंधन में शामिल दल अलग-अलग सुर में बात कर रहे हैं. सपा अलग राह पर है तो केजरीवाल की भाषा बदली हुई नजर आ रही है. इस तरह गठबंधन में सिर्फ कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन दिख रहा है, कोई सॉल्यूशन नहीं दिख रहा है. वहीं, बीजेपी पूरी तरह से चुनावी मोड में उतर चुकी है और करीब डेढ़ सौ सीट पर जल्द ही अपने कैंडिडेट के नामों का ऐलान भी कर देगी. पीएम मोदी देश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियां करके सियासी माहौल बनाना शुरू कर दिया है.

बीजेपी के पुराने सहयोगी लौट रहे

बीजेपी के पुराने सहयोगी दोबारा से लौट रहे हैं. नीतीश कुमार विपक्षी खेमे से वापस एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं. आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के साथ भी बातचीत का सिलसिला जारी है. माना जा रहा है कि उनकी भी एनडीए में वापसी हो सकती है. इसी तरह से पंजाब में अकाली दल को लेकर भी चर्चा है. यूपी से लेकर कर्नाटक और बिहार में एनडीए का कुनबा पहले से ही काफी बड़ा है. नीतीश कुमार के आने से बीजेपी बिहार में इस आत्मविश्वास के साथ खड़ी है कि वो सभी 40 सीटें जीतने में सफल रहेगी. बीजेपी ने यूपी में सभी 80 सीटें जीतने की लक्ष्य तय कर रखा है. इस तरह बीजेपी ने 2024 में 400 पार के नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी है, जिसके लिए पीएम मोदी नॉर्थ से साउथ तक रैली कर सियासी माहौल बना रहे हैं.

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