कोरोनावायरस महामारी (Covid-19 pandemic) की दूसरी लहर ने देश में कोहराम मचा रखा है। कोरोना संक्रमितों की संख्या रोज नए रेकॉर्ड बना रही है। एसबीआई रिसर्च (SBI Research) की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक देश में कोरोना की दूसरी लहर अब से 20 दिन बाद यानी मई के मध्य में पीक पर पहुंचेगी। तब देश में कोरोना के एक्टिव मामले 36 लाख के आसपास पहुंच जाएंगे। कई राज्यों में आंशिक लॉकडाउन को देखते हुए बैंक ने वित्त वर्ष 2022 के लिए जीडीपी की वृद्धि दर के अनुमान को संशोधित कर 10.4 फीसदी कर दिया है।
बिजनसटुडे के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे देशों के अनुभवों के आधार पर भारत में कोरोना की दूसरी लहर तब पीक पर होगी जब रिकवरी रेट 77.8 फीसदी होगा। एसबीआई रिसर्च ने अपनी रिपोर्ट ‘The Power of Vaccination’ में कहा है कि रिकवरी रेट में एक फीसदी की कमी 4.5 दिन में हो रही है। यानी इसमें करीब 20 दिन लगेंगे। हमारे अनुमान के मुताबिक रिकवरी रेट में 1 फीसदी कमी से एक्टिव मामले 1.85 लाख बढ़ जाते हैं।
भारत का केस पॉजिटिविटी रेट 20.5 फीसदी हो गया है जो दुनिया में सबसे कम में से एक है। साथ ही देश में रिकवरी रेट भी 82.5 फीसदी रह गया है। पिछले एक हफ्ते से देश में रोजाना कोरोना के 3 लाख से अधिक नए मामले आ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को दूसरी लहर के पीक पर पहुंचने पर आत्ममुग्धता से बचना चाहिए क्योंकि इससे व्यापक स्तर पर संक्रमण का खतरा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कई राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर उसी दौरान पीक पर होगी जब यह पूरे देश में चरम पर पहुंचेगी। रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई है कि इसका सबसे बुरा दौर मई के तीसरे हफ्ते में खत्म हो चुका होगा।
कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी के लिए चुनावी रैलियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण के ज्यादा मामले महाराष्ट्र, दिल्ली और छत्तीसगढ़ में सामने आ रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर में हुई कुल मौतों में 50 साल से कम आयु के लोगों की संख्या 13.6 फीसदी है। इससे साबित होता है कि म्यूटेंट वायरस उन लोगों के लिए घातक साबित हो रहा है जिन पर अभी तक वैक्सीन नहीं लगी है।
वैक्सीन की कीमतों को लेकर चल रहे विवाद के बारे में रिपोर्ट में कहा गया है कि दो फैक्टर वैक्सीन की कीमत तय करेंगे। इसमें पहला है वॉल्यूम ऑफ प्रॉडक्शन। वैक्सीन प्रॉडक्शन की अधिकांश लागत फिक्स है। छोटे बैच की तुलना में बड़े बैच तैयार करना सस्ता पड़ता है। दूसरा फैक्टर है प्रॉडक्ट लाइफसाइकल। जब कोई प्रॉडक्ट नया होता है तो उसकी कीमत ज्यादा होती है ताकि रिसर्च एंड डेवलपमेंट तथा प्रॉडक्शन फैसिलिटीज में किए गए निवेश का भुगतान करने के साथ-साथ प्रॉफिट भी कमाना होता है।
कीमतों में अंतर से विदेशी वैक्सीन मैन्युफैक्चरर्स को भी भारत आने का मोह होगा। फाइजर जैसी कंपनियों ने इसके संकेत दिए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैक्सीनेशन के लिए क्लस्टर बेस्ड अप्रोच ही एकमात्र रास्ता है। भारत जैसे देश में जहां हर राज्य, हर शहर की डेमोग्राफी अलग है, वहां एक डिसेंट्रेलाइज्ड अप्रोच ही सबसे अधिक तर्कसंगत लगती है।