हरियाणा में समझें बीजेपी का राजनीतिक समीकरण

हरियाणा विधानसभा चुनाव  (Haryana assembly election) में क्षेत्रीय दलों से लेकर राष्ट्रीय दल अपनी-अपनी सरकारें बनाने का दावा कर रहे हैं। पंजाब से हरियाणा के बनने के बाद से शासन-सत्ता तीन राजनेताओं के आस-पास घूमती रही। यह तीन राजनेता चौधरी बंशीलाल, चौधरी भजनलाल और चौधरी देवीलाल जाट राजनीति का केंद्रबिंदु रहे हैं। समय के साथ हरियाणा की राजनीति ने भी परिवर्तन किया। जिसके बाद स्थायी और मजबूत सरकारों का दौर आया, लेकिन धीरे-धीरे हरियाणा के तीनों राजनीतिज्ञों का वर्चस्व खोता रहा। वर्तमान में राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों वाले राज्य की चुनावी चर्चा देशभर में है। यहां 21 अक्टूबर को नई सरकार बनाने के लिए मतदान होना है ऐसे में बीजेपी की टक्कर में विक्षप की समीक्षाएं की जा रही हैं।

बीजेपी में बल, विपक्ष धरासायी

विधानसभा चुनाव में बीजेपी की मेन पॉवर मोदी और शाह से है, लेकिन उससे ज्यादा मजबूती बीजेपी को विपक्ष के एकजुट नहीं होने से है। कांग्रेस का गृहयुद्ध की वजह से वैसे ही खस्ताहाल है वहीं क्षेत्रीय दलों में इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) (INLD)की स्थिति और भी नाजुक है। कोई समय था जब चौधरी देवी लाल हरियाणा की राजनीति के महानायक समझे जाते थे। उनके बाद हरियाणा की राजनीति में उभरे चौधरी ओमप्रकाश चौटाला ने राजनीतिक विरासत संभालते हुए वजूद कायम किया। लेकिन उनके जेल जाने के बाद से पार्टी पारिवारिक कलह की वजह से विघटित हो चुकी है। ओम प्रकाश चौटाला के पोतों ने इनेलो के बंदरबांट से प्रभाव को कम कर दिया है। जिसकी वजह से बीजेपी को सीधे लाभ मिल रहा है।

बीजेपी ने मुद्दों को बनाया प्रभावी

हरियाणा में लाचार विपक्ष का फायदा उठाते हुए बीजेपी खुद ही लुभाने मुद्दे तय कर रही है। बीजेपी को जिस भी मुद्दे से जनता को अपने पक्ष में करने का मौका मिलता है उसी को हाइलाइट कर रही है। कश्मीर मुद्दे पर धारा-370 को खत्म किए जाने को लेकर पाकिस्तान का आतंकवाद जोड़कर चुनावी अभियान को हवा दे दी है। इस मुद्दे के खिलाफ विपक्ष बोलने की स्थिति में नहीं है। विपक्ष की इस मुद्दे पर कमजोरी को लेकर चुनावी सभाओं में मोदी-शाह कहते हैं कि ‘अगर कांग्रेस को लगता है कि हमने 370 को हटाकर गलती की है तो वह कहे कि जब वह सत्ता में आएगी तो इसे फिर से लागू कर देगी।’

योजनाओं का बखान, कुछ मुद्दों से बीजेपी का किनारा

हरियाणा के बीजेपी नेता राज्य में रसोई गैस सुलभ उपलब्धता, अंत्योदय योजनाओं समेत भर्ती-बदली सीएलयू में पारदर्शिता का विषय भी अपनी सभाओं में जिक्र कर रहे हैं। लेकिन बेरोजगारी, किसानों को फसलों में लागत से अधिक मूल्य मिलने, सांप्रदायिक भावना सरीके मुद्दों से बचाव कर रही है, जबकि इन मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए थी।

क्षेत्रवाद पर राष्ट्रवाद भारी

राज्य में चुनावी सभाओं में क्षेत्रीय मुद्दों की तुलना में राष्ट्रीय मुद्दों का प्रभाव अधिक देखा जा रहा है। पाकिस्तान की हालत, कश्मीर से धारा 370, देश में तीन तलाक, हरियाणा के किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने पर पाकिस्तान से जोड़ा जाता है कि झेलम नदी के पाकिस्तान जा रहे पानी को हरियाणा की नहरों में लाने की हर संभव कोशिश की जाएगी।


कलह से कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में

इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति इसलिए और नाजुक हो गई है क्योंकि कांग्रेसी नेता विरोधियों से ज्यादा पार्टी के अंदर गृहयुद्ध में दिलचस्पी ले रहे हैं। चुनाव से पहले पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने धमकीपूर्ण पार्टी से अपनी शर्त पूरी करा ली, लेकिन वहीं पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के पार्टी से बाहर हो जाने से बड़ा नुकसान होता दिख रहा है। हरियाणा में कांग्रेस की जो नाजुक स्थिति देखी जा सकती है वैसी देश के किसी राज्य में नहीं है।

हरियाणा कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाट समुदाय को एकजुट करने की कोशिश में लगे हैं। हुड्डा का कहना है कि इस बार अगर मनोहर लाल खट्टर दोबारा सत्ता में आते हैं तो जाट समुदाय का वजूद खो जाएगा। इसलिए जाटों को एकजुट होकर राजनीतिक ताकत को हासिल करना होगा। वहीं गैर जाट समुदाय खट्टर के शासनकाल में खुद को सम्मानजनक स्थिति में पाते हैं और बीजेपी के पक्ष में एकजुट हो रहे है। स्थिति जो भी हो 21 अक्टूबर के बाद स्पष्ट हो जाएगी।

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