दुनिया में किस देश के पास कितनी परमाणु पनडुब्बी, भारत से कितना आगे है चीन?

अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए AUKUS समझौते ने दुनिया में एक बार फिर परमाणु पनडुब्बियों की जरूरत पर बहस छेड़ दी है। ये पडुब्बियां न केवल ज्यादा तबाही मचा सकती हैं, बल्कि इनका रखरखाव भी कम होता है। इतना ही नहीं, परमाणु शक्ति से संचालित पनडुब्बी किसी परंपरागत या डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी की तुलना में ज्यादा दिनों तक पानी के नीचे तैनात रह सकती है। AUKUS समझौते के तहत अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को परमाणु शक्ति संपन्न पनडुब्बियों को बनाने की तकनीक प्रदान करेगा। अमेरिका ने इस तरह का समझौता अभी तक सिर्फ ब्रिटेन के साथ ही किया है।

जब वैज्ञानिकों ने परमाणु को विभाजित किया तब उन्हें यह महसूस हुआ कि हम इसका बम बनाने के अलावा भी किसी काम में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसका उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जा सकता था। ये परमाणु रिएक्टर पिछले 70 वर्षों से दुनिया भर के घरों और उद्योगों को बिजली दे रहे हैं। परमाणु पनडुब्बियां भी इसी समान तकनीक से काम करती हैं। प्रत्येक परमाणु पनडुब्बी में एक छोटा न्यूक्लियर रिएक्टर होता है। जिसमें ईंधन के रूप में अत्यधिक समृद्ध यूरेनियम का उपयोग करते हुए बिजली पैदा की जाती है। इससे पूरी पनडुब्बी को पावर की सप्लाई की जाती है।

एक पारंपरिक पनडुब्बी या डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी बैटरी चार्ज करने के लिए डीजल जनरेटर का उपयोग करती है। इस बैटरी में स्टोर हुई बिजली का का उपयोग मोटर चलाने के लिए किया जाता है। किसी दूसरी बैटरी की तरह इसे रीचार्ज करने के लिए स्नॉर्कलिंग प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पनडुब्बियों को सतह पर आना पड़ता है। कोई भी पनडुब्बी सबसे अधिक खतरे में तब होती है, जब उसे पानी की गहराई से निकलकर सतह पर आना होता है। ऐसे में दुश्मन देश के पनडुब्बी खोजी विमान या युद्धपोत उन्हें आसानी से देख सकते हैं।

2019 की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने रूस के साथ परमाणु पनडुब्बियों की खरीद को लेकर एक सीक्रेट डील की थी। इस डील की कुल लागत तब 3 बिलियन डॉलर बताई गई थी। इसके तहत 2025 में भारत को रूस से एक परमाणु पनडुब्बी मिलेगी, जिसे आईएनएस चक्र III के नाम से जाना जाएगा। यह पनडुब्बी भी आईएनएस चक्र की तरह भारतीय नौसेना में अगले 10 साल तक सेवा देगी। भारत को जो पनडुब्बी मिलने वाली है वह रूस की अकूला II क्लास की K-322 Kashalot है। इसमें इंट्रीग्रेडेड सोनार सिस्टम लगा हुआ है, जो काफी दूर से बिना किसी हलचल के दुश्मन की लोकेशन के बारे में पता लगा लेता है। भारत के आईएनएस अरिहंत में भी ऐसा ही सिस्टम लगाया गया है।

रूसी नौसेना की K-322 Kashalot पनडुब्बी को भारत को सौंपने के पहले ओवरहॉल किया जाएगा। इससे पनडुब्बी की सर्विस लाइफ बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं, इस पनडुब्बी को भारतीय उपमहाद्वीप के लायक भी बनाया जाएगा। बताया जा रहा है कि ओवरहॉलिंग का काम सेवेरोडविंस्क में स्थित एक रूसी नौसैनिक शिपयार्ड में किया जाएगा। दावा यह भी किया जा रहा है कि इस पनडुब्बी में भारतीय नौसेना की कई स्वदेशी तकनीकियों को भी शामिल किया जाएगा। इसमें भारत में बनी हुई कम्यूनिकेशन सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे किसी भी दूसरे देश को इसकी बातचीत इंटरसेप्ट करने में आसानी नहीं होगी। दरअसल पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत उनके पानी के नीचे छिपे रहने की होती है। अगर कोई भी बातचीत पकड़ी जाती है तो इससे पनडुब्बी की लोकेशन का आसानी से पता चल सकता है।

रूस की अकूला II क्लास की पनडुब्बियां बेहद शक्तिशाली मानी जाती हैं। इस क्लास की पनडुब्बियां 8,140 टन वजनी होती हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि आईएनएस चक्र III का वजन भी इतना ही होगा। यह पनडुब्बी समुद्र में 530 मीटर की गहराई में 30 समुद्री मील (55 किमी) प्रति घंटे की रफ्तार से चलने में सक्षम है। इस परमाणु पनडुब्बी में चार 650-मिलीमीटर और चार 533-मिलीमीटर की मिसाइल लॉन्च ट्यूब्स लगे हुए हैं। इनसे रूसी-निर्मित टाइप 65 और टाइप 53 टॉरपीडो को फायर किया जा सकता है। प्रपल्शन या ताकत के लिए इस पनडुब्बी में 190 मेगावाट के परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है।

परमाणु क्षमता से संपन्न पहली पनडुब्बी का नाम भी चक्र था। यह पनडुब्बी तत्कालीन सोवियत संघ से 1988 में 3 साल के पट्टे पर ली गई थी। यह पनडुब्बी रूस के प्रोजेक्ट 670 स्काट-क्लास की थी। इसके बाद अकुला-2 क्लास सबमरीन आईएनएस चक्र-II को 4 अप्रैल 2012 को इंडियन नेवी में शामिल किया गया था। यह पनडुब्बी भी अकूला क्लास नेरपा थी जिसको प्रोजेक्ट 971 के तहत बनाया गया था। इसे पूर्वी नौसेना कमान के साथ तैनात किया गया था। भारत और रूस इस पनडुब्बी की लीज को पांच साल और बढ़ाने पर भी बातचीत कर रहे थे, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

परमाणु पनडुब्बी बनाने का विचार सबसे पहले 1939 में अमेरिका के नेवल रिसर्च लेबरोटरी के वैज्ञानिक रॉस गन ने प्रस्तुत किया था। जिसके बाद से करीब एक दशक बाद जुलाई 1951 में अमेरिकी कांग्रेस ने पहली बार परमाणु पनडुब्बी के निर्माण के लिए अपनी मंजूरी दी थी। परमाणु पनडुब्बी का रिएक्टर बनाने का काम वेस्टिंगहाउस कॉर्पोरेशन को सौंपा गया। जिसके बाद 30 सितंबर 1954 यूएसएस नॉटिलस (SSN-571) नाम की पहली परमाणु पनडुब्बी को अमेरिकी नौसेना में कमीशन किया गया।

भारतीय नौसेना की परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र के वापस रूस लौटने के बाद नई पनडुब्बी को फिर से लीज पर लेने की अटकलें लगाई जा रही हैं।2019 की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत ने रूस के साथ परमाणु पनडुब्बियों की खरीद को लेकर एक सीक्रेट डील की थी। इस डील की कुल लागत तब 3 बिलियन डॉलर बताई गई थी। इसके तहत 2025 में भारत को रूस से एक परमाणु पनडुब्बी मिलेगी, जिसे आईएनएस चक्र III के नाम से जाना जाएगा। यह पनडुब्बी भी आईएनएस चक्र की तरह भारतीय नौसेना में अगले 10 साल तक सेवा देगी। भारत को जो पनडुब्बी मिलने वाली है वह रूस की अकूला II क्लास की K-322 Kashalot है। इसमें इंट्रीग्रेडेड सोनार सिस्टम लगा हुआ है, जो काफी दूर से बिना किसी हलचल के दुश्मन की लोकेशन के बारे में पता लगा लेता है। भारत के आईएनएस अरिहंत में भी ऐसा ही सिस्टम लगाया गया है।

रूसी नौसेना की K-322 Kashalot पनडुब्बी को भारत को सौंपने के पहले ओवरहॉल किया जाएगा। इससे पनडुब्बी की सर्विस लाइफ बढ़ जाएगी। इतना ही नहीं, इस पनडुब्बी को भारतीय उपमहाद्वीप के लायक भी बनाया जाएगा। बताया जा रहा है कि ओवरहॉलिंग का काम सेवेरोडविंस्क में स्थित एक रूसी नौसैनिक शिपयार्ड में किया जाएगा। दावा यह भी किया जा रहा है कि इस पनडुब्बी में भारतीय नौसेना की कई स्वदेशी तकनीकियों को भी शामिल किया जाएगा। इसमें भारत में बनी हुई कम्यूनिकेशन सिस्टम लगाया जाएगा, जिससे किसी भी दूसरे देश को इसकी बातचीत इंटरसेप्ट करने में आसानी नहीं होगी। दरअसल पनडुब्बियों की सबसे बड़ी ताकत उनके पानी के नीचे छिपे रहने की होती है। अगर कोई भी बातचीत पकड़ी जाती है तो इससे पनडुब्बी की लोकेशन का आसानी से पता चल सकता है।

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