परिवार और पार्टी में अलग-थलग पड़ने के बाद चिराग पासवान लगातार ही LJP में अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटे हैं। इसके लिए वे लगातार नए दांव चल रहे हैं। बिहार विधानसभा की 2 सीटों तारापुर और कुशेश्वरस्थान के लिए होने वाले उप चुनाव में भी वह ऐसा ही एक दांव चलने की तैयारी में हैं, लेकिन आशंका इस बात की भी है कि उनका दांव कहीं उल्टा नहीं पड़ जाए। दरअसल अगर चिराग इस चुनाव में अपनी ओर से LJP का प्रत्याशी देने की कोशिश करते हैं तो इससे न सिर्फ इससे उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के दावे, बल्कि पार्टी में उनकी मौजूदा हैसियत का भी पता चल जाएगा।
दरअसल, LJP पर कब्जे की लड़ाई में चिराग पासवान के सामने अपने चाचा पशुपति पारस के मुकाबले विकल्प कम हैं। विधानसभा उप चुनाव में चिराग अगर LJP का प्रत्याशी देने की कोशिश करते हैं तो पार्टी का सिंबल आवंटित करने के मसले पर चाचा का गुट इसकी मुखालफत जरूर ही करेगा। इसके बाद मामला चुनाव आयोग के पाले में जा सकता है कि वह LJP का असली राष्ट्रीय अध्यक्ष किसे मानता है। इस परिदृश्य में जो दो संभावनाएं बनती हैं, उनमें चिराग के लिए पेंच अधिक है।
अगर चुनाव आयोग LJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति पारस को मान लेता है तो चिराग मुश्किल में पड़ सकते हैं, क्योंकि फिलहाल तकनीकी तौर पर वे और उनके चाचा दोनों एक ही पार्टी यानी LJP के सदस्य और सांसद हैं। स्थिति ऐसी है कि अगर आयोग LJP पर चिराग के दावे को सही मानता है तो इससे पशुपति पारस को कोई खास असर नहीं पड़ेगा। उनके साथ LJP के छह में से पांच सांसदों की ताकत है। इस पार्टी के पास कोई विधायक और विधान पार्षद है ही नहीं। ऐसे में अगर LJP पर चिराग का हक साबित होता है तो पशुपति के लिए अलग पार्टी बनाना मुश्किल नहीं होगा।
लोक जनशक्ति पार्टी का निर्वाचित प्रतिनिधित्व केवल लोकसभा में है और वे वहां आसानी से अलग गुट की मान्यता पा लेंगे। यूं भी चिराग ने खुद के अलावा पार्टी के बाकी सांसदों को पार्टी से निष्कासित कर रखा है। लेकिन अगर चुनाव आयोग LJP पर पशुपति पारस के दावे को सही मानता है तो चिराग के पास विकल्प सीमित रह जाएंगे। उनके लिए नई पार्टी बनाना भी आसान नहीं है, क्योंकि इससे दल-बदल कानून के तहत उनकी सांसदी जाने का खतरा पैदा हो सकता है। पशुपति पारस के गुट ने चिराग को अब तक पार्टी से निष्कासित नहीं किया है और वे उन्हें अपनी ही पार्टी का सांसद मानते हैं। इसकी उम्मीद नहीं है कि पशुपति पारस, आगे भी चिराग को पार्टी से निष्कासित करेंगे।
लोजपा के संस्थापक और पूर्व केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान ने जीवनकाल में ही अपने बेटे को चिराग पासवान को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया था, लेकिन उनके निधन के एक साल से भी कम समय में नजारा बदल गया। राम विलास के भाई पशुपति पारस के नेतृत्व में एकमात्र चिराग को छोड़कर बाकी सभी पार्टी सांसदों ने मिलकर अपना नया नेता चुन लिया। पशुपति पारस और उनके गुट के सभी सांसद अब खुद को LJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का दावा करते हैं तो चिराग अब भी खुद को ही असली अध्यक्ष बता रहे हैं। लोकसभा में LJPसंसदीय बोर्ड के पद से चिराग पासवान को आधिकारिक तौर पर बेदखल करते हुए चाचा पशुपति ने जगह पहले ही ले ली है।