वोटों का बिखराव और ध्रुवीकरण ही होगा जीत का मंत्र

हजारीबाग विधानसभा झारखण्ड की चंद ऐतिहासिक सीटों मे से एक है, आजादी से पहले यह इलाका रामगढ़ राज परिवार की रियासत में थे। आजादी के बाद भी यहां की राजनीति में रामगढ़ राजघराने का दबदबा बना रहा। लोकसभा से लेकर विधानसभा तक में उन्हीं की पार्टी के लोग यहां से जीतते थे। राजा कामाख्या नारायण सिंह का रसूख ऐसा था कि कद्दावर नेता और बिहार सरकार में भू राजस्व मंत्री रहे कृष्ण बल्लभ सहाय को भी राजा की नीतियों का विरोध करने की वजह से यहां चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी।

कामाख्या नारायण सिंह के निधन के बाद अन्य पार्टियों ने यहां पांव जमाया। झारखंड गठन के बाद की बात करें तो 2005 और 2009 में रामगढ़ राज परिवार के ही कांग्रेस नेता सौरव नारायण सिंह यहां से दो बार विधायक रहे। 2014 में भाजपा के मनीष जायसवाल ने यह सीट उनसे छीन ली। दिलचस्प बात यह है की हजारीबाग के चुनाव प्रचार में पहली बार हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल भी राजा कामाख्या नारायण सिंह ने ही किया था।

पिछले कई सालों से ज़मीनी मुद्दों को उठाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी सचिदानंद पांडेय का आखरी वक़्त पर नामांकन रद्द कर देना भी एक चर्चा का विषय बना हुआ है। चर्चा इस बात को लेकर भी है की यहाँ के इतिहास में एहम भूमिका रखने वाले मंगल पांडेय जैसे देशभक्त क्रांतिकारी के वंशज सचिदानंद पांडेय को दूध में पड़ी मक्खी की तरह कांग्रेस द्वारा हटा दिया जाना। जबकी, आखरी समय तक कांग्रेस की टिकट का प्रबल दावेदार माना गया और ऐन मौके पर पैराशूट एंट्री करने वाले कार्यकर्ता को कमान सौंप देने से कांग्रेस की अंदरूनी कलह सतह पर आ गयी।
लंबे समय से यहां कांग्रेस और BJP के बीच ही सीधी लड़ाई होती रही है। हालांकि पिछले चुनाव में निर्दलीय प्रदीप प्रसाद ने BJP के मनीष जायसवाल को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार हजारीबाग में BJP प्रत्याशी विधायक मनीष जायसवाल को टक्कर देने कांग्रेस से डॉ. आरसी मेहता और JVM के मुन्ना सिंह मैदान में हैं। इस सीट पर मनीष जैस्वाल जी को सबसे ज्यादा खतरा निर्दलीयों से ही होने का डर है.

इस चुनाव में BJP समेत सभी प्रमुख प्रत्याशियों की पूरी रणनीति अपने वोट बैंक के ध्रुवीकरण और विरोधियों के वोटों के बिखराव पर टिकी है। उधर 2014 के चुनाव में अपनी जमानत जब्त करा चुकी कांग्रेस नए चेहरे के साथ मजबूती से चुनाव लडऩे की खोखली डींगे हाँकती प्रतीत हो रही है, वैसे भी आज कांग्रेस आपसी अंतर्कलह से उलझी नजर आती है। 29 नवंबर को प्रदेश चुनाव उपप्रभारी उमंग सिंघार के सामने ही कांग्रेस कार्यालय में कार्यकर्ताओं का आपस में भीड़ जाना भी पार्टी की काफी फजीहत करा गया। ऐसे में अपने वोटरों को साधने में कांग्रेस को काफी मेहनत करनी पड़ेगी। दूसरी तरफ 2 साल से प्रत्यक्ष रूप से क्षेत्र में सक्रिय मुन्ना सिंह मैदान में खूब पसीना बहा रहे हैं। उनकी रणनीति कांग्रेस के अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंधमारी के अलावा दूसरे वर्ग और सरकार विरोधी मतों को एकजुट बनाने में लगी है।

BJP वोट बैंक को एकजुट रखने और विपक्ष के वोटों के गणित को बिगाडऩे में लगी है। उधर BJP प्रत्याशी भी 5 साल की उपलब्धियां लेकर लोगों के बीच जा रहे है। सरकार और अपने कार्य को प्रमुखता से बता रहे हैं।

यहाँ के तीन बड़े मुद्दे हैं:-

1.पर्यटन स्थल का विकास:- हजारीबाग के पर्यटन स्थलों का अपेक्षित विकास नही हो पाया है। कनहरी हिल को लेकर कोई योजना नही बन पायी।

  1. हजारीबाग स्टेशन और रेल:- हजारीबाग में लंबी दूरी की ट्रेन नही मिलने से लोगों में निराशा है। स्टेशन व रेलखंड के उद्घाटन के बाद भी अब तक हजारीबाग को कोई लंबी दूरी की ट्रेन नही मिल सकी है।
  2. ट्रैफिक:- ट्रैफिक व्यवस्था फेल है। शहर के लोग जाम से हर दिन परेशान रहते हैं। शहर के अधिकांश मार्ग में ट्रैफिक जाम बड़ी समस्या बन गई है।

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