पेपर गायब, आपस में ही फूट… राहुल गांधी के सबसे बड़े मिशन पर कांग्रेसी ही लगा रहे ब्रेक!

कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी मुसीबत में पड़ती दिख रही है. एक ओर जातिगत सर्वेक्षण कराने की मांग को लेकर राहुल गांधी राज्य दर राज्य मुखरता से अपनी बात रख रहे हैं लेकिन कांग्रेस में उनकी पार्टी इस पर बंटी हुई नजर आ रही है. जातिगत सर्वे की रिपोर्ट कब तक जारी होगी, इस पर कयास कम होते नहीं दिख रहे हैं. राज्य के दो सबसे प्रमुख समुदाय वोक्कालिगा और लिंगायत खुलकर इस सर्वे का विरोध कर रहे हैं.

बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई वाली महागठबंधन की सरकार ने जातिगत सर्वे कराकर आरक्षण के दायरे को बढ़ाकर कानूनी अमलीजामा पहना दिया है. राहुल गांधी जातिगत जनगणना मुद्दे को लेकर मुखर हैं और सामाजिक न्याय के आधार पर आबादी के हिसाब के भागीदारी देने बात कर रहे हैं. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार पर सिद्धारमैया के पिछले कार्यकाल में हुए जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने और उसे लागू करने का दबाव बढ़ रहा है, लेकिन इसे लेकर पार्टी अपने ही दांव में उलझ गई है. ऐसे में जातिगत सर्वे की रिपोर्ट को लेकर एक बार फिर से सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार आमने-सामने हैं.

2018 की रिपोर्ट अब तक नहीं हुई सार्वजनिक

2013-2018 के दौरान जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी. तब तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2015 में जातिगत सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया था. 170 करोड़ रूपये सिद्धारमैया की सरकार ने इसके लिए आवंटित किया था और एच कंथाराज को रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया था. कहते हैं कि सर्वेक्षण का काम 2018 में ही पूरा हो गया था, लेकिन इसे ना तो स्वीकार किया गया और ना ही सार्वजनिक. रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को लेकर नए सिरे से मांग अब जब उठ रही है, सिद्धारमैया सरकार भारी दबाव में है. कहां तो रिपोर्ट इसी महीने सौंपना था लेकिन अब रिपोर्ट तैयार कर रहे के. जयप्रकाश हेगड़े का कार्यकाल कुछ महीनों के लिए बढ़ा दिया है. उधर कांग्रेस पार्टी के भीतर से भी इस मसले पर बगावती सुर सुनाई देने लगे हैं.

डीके शिवकुमार ने क्यों किया विरोध ?

सिद्धारमैया सरकार को रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले ही कांग्रेस के भीतर का मतभेद खुल कर आ गया है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को एक मेमोरेंडम सौंपा गया है जिस पर कई विधायकों ने साइन किया है. साइन करने वालों में सबसे अहम राज्य के उप-मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार का कहना है कि इस रिपोर्ट को तभी पब्लिक किया जाए जब अलग-अलग समुदायों की साइंटिफिक राय उस पर ले ली जाए. साथ ही, रिपोर्ट के कुछ शुरुआती पन्नों के भी गायब होने की भी बात कही जा रही है.

पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी किया विरोध

मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर करने वाले सिर्फ कांग्रेस के नेता नहीं हैं. शिवकुमार के अलावा पूर्व प्रधान मंत्री और जनता दल सेक्युलर के नेता एच डी देवेगौड़ा, पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी, पूर्व मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा, पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता डी वी सदानंद गौड़ा, केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे, और विपक्ष के नेता आर अशोक जैसे राजनीतिक दिग्गजों ने मुख्यमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन पर साइन किया है. मेमोरेंडम पर साइन करने वाले अधिकतर नेता वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं.

वोक्कालिगा ही नहीं लिंगायत समुदाय भी है नाराज

कर्नाटक की राजनीति में हमेशा ही से वोक्कालिगा और लिंगायत समुदाय का बोलबाला रहा है. जातिगत सर्वे की रिपोर्ट से न सिर्फ वोक्कालिगा बल्कि लिंगायत समुदाय के लोग भी नाराज है. अखिल भारतीय वीरशैव महासभा, जो वीरशैव लिंगायतों की सर्वोच्च संस्था है, उसने इस रिपोर्ट को अवैज्ञानिक बताया है और नए सिरे से सर्वेक्षण कराने की मांग की है.

कर्नाटक में लिंगायत की आबादी 17 प्रतिशत जबकि वोक्कालिगा समुदाय की आबादी लगभग 12 फीसदी है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के लिए जातिगत सर्वे को सार्वजनिक करने को लेकर फैसला करना और सबको संतुष्ट करना काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है. राज्य के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया बार-बार कह चुके हैं कि वह रिपोर्ट को किसी भी कीमत पर लागू करेंगे लेकिन जब तक रिपोर्ट सरकार को मिल न जाए, किसी भी तरह के कयासबाजी से बचना चाहिए.

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