चीन के वैश्विक प्रभुत्व को कम कर Britains हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। ब्रेक्जिट के बाद Britains में जॉनसन सरकार ने अपनी विदेश नीति की प्राथमिकताओं में बड़ा बदलाव किया है। Britains के विदेश मंत्रालय ने विदेश नीति की प्राथमिकताओं से जुड़ा एक दस्तावेज तैयार किया है, जिसमें इस कदम पर जोर दिया गया है। दस्तावेज में अमेरिका के साथ मजबूत संबंधों की हिमायत की गई है।
वहीं ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक नाभिकीय शस्त्रागार में वृद्धि के साथ ही रूस को प्रमुख खतरे के तौर पर नामित किया गया है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद Britains की विदेश और रक्षा नीति की समीक्षा यह बताएगी कि प्रधानमंत्री Boris Johnson सहयोग और मुक्त व्यापार पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में किस तरह अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। प्रस्तावित विदेश नीति में हिंद-प्रशांत क्षेत्र को दुनिया भू-राजनीतिक केंद्र बताया गया है। इसी के साथ सरकार ने इस क्षेत्र में विमानवाहक पोत की तैनाती की भी योजना बनाई है।
विदेश मंत्री डॉमिनिक रॉब ने स्वीकार किया कि ब्रिटेन ने बीजिंग के प्रभाव को कम करने के लिए जो भी कदम उठाए हैं, वह बहुत प्रभावी नहीं रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अन्य देशों के साथ सहयोग करके इसे बेहतर बनाया है। रॉब ने टाइम्स रेडियो को बताया कि चीन के प्रभाव को कम करने के लिए ना केवल यूरोपीय और अमेरिकी देशों को साथ लाया जाएगा बल्कि दूसरे अन्य देशों की भी मदद ली जाएगी। यह भी कहा गया है कि पूर्व में प्रधानमंत्री Boris Johnson की स्थगित की गई भारत यात्रा इस वर्ष अप्रैल में होगी।
2020 के मध्य में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ने अपनी इस नीति को तोड़ दिया और परमाणु हथियारों की सीमा को 260 तक कर दिया। अब इस सीमा को फिर 40% और बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। Britains ने कहा है कि सुरक्षा समीक्षा में उसे जोखिम बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। कुछ देशों के प्रायोजित परमाणु आंतकवाद से निबटने के लिए अब यह जरूरी हो गया है कि अपनी और सहयोगियों की सुरक्षा को मजबूत किया जाए। Britains ने कहा कि कुछ देश तेजी से परमाणु हथियार बढ़ाने और उसमें विविधता लाने में लगे हुए हैं।