nitish kumar in dilemma

नीतीश को खामोश करने के लिए BJP का ‘L&T प्लान’, JDU को सेंटर में रखकर चाल चल रहे नेता!

एक समय था जब देश के तमाम राजनीतिक दल बीजेपी को अछूत माना करते थे। वक्त बदलता गया और बीजेपी के साथ कई दल जुड़ते चले गए। अब एक बार फिर से देश की ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियां, बीजेपी को अछूत बनाने के लिए कांग्रेस और वामदलों के साथ मिलकर 2024 लोकसभा चुनाव में उसके खिलाफ उतरना चाहती है। बीजेपी के साथ मिलकर 2020 का विधानसभा चुनाव लड़कर 43 सीट हासिल करने वाले नीतीश कुमार ने सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन 20 महीने बाद ही नीतीश कुमार ने भाजपा से दामन छुड़ा कर अपने घोर विरोधी आरजेडी और कांग्रेस के साथ हाथ मिला लिया और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाकर आठवीं बार मुख्यमंत्री की गद्दी पर काबिज हो गए। इस बार महागठबंधन में नीतीश कुमार के साथ सात दल शामिल हैं। जिनमें कांग्रेस, लेफ्ट की पार्टियां, आरजेडी, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा शामिल हैं। यानी बिहार में बीजेपी के साथ सिर्फ रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी के दो धड़ में एक पशुपतिनाथ पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोक जनशक्ति है।

बीजेपी ने राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर पर बदली रणनीति
विपक्ष को जवाब देने के लिए बीजेपी ने देश और बिहार के लिए अलग-अलग रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। एक तरफ जहां बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जहां दूसरे या तीसरे पोजीशन पर रही थी, उन सीटों पर जीत हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। वहीं बिहार जैसे प्रदेश में अपने दम पर सत्ता में आने के लिए नीतीश कुमार पर प्रहार करना शुरू कर दिया है।

घटती रही नीतीश की सीटें लेकिन बनते रहे मुख्यमंत्री
2014 लोकसभा और 2015 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से अलग होकर लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरे नीतीश कुमार को महज 2 सीटें हासिल हुई थी। वहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले नीतीश को 70 सीटें हासिल हुई थी। जबकि 2010 में भाजपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार को 115 सीटें हासिल हुई थी। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी नीतीश कुमार की जेडीयू महज 43 सीटों पर ही जीत हासिल कर सकी थी। लेकिन यह विडंबना ही है कि नीतीश की पार्टी से बड़े दल के नेता उपमुख्यमंत्री और छोटी पार्टी होने के बावजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होते चले गए।

बीजेपी के निशाने पर लालू तेजस्वी नहीं सिर्फ नीतीश हैं
बीजेपी ने बिहार को लेकर इस बार खास रणनीति तैयार की है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस बार बीजेपी बिहार में पशुपति पारस और चिराग पासवान की पार्टी को साथ लेकर अपने दम पर विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना चुकी है। बीजेपी को पता है कि बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी के वोट बैंक को तोड़ना आसान नहीं है। लिहाजा बीजेपी ने जेडीयू के वोट बैंक को तोड़ने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि बीजेपी की ओर से लालू प्रसाद यादव या तेजस्वी यादव या उनकी पार्टी आरजेडी पर वार करने के बजाए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधा जा रहा है।

नीतीश कुमार क्यों हैं बीजेपी के निशाने पर
बीजेपी अच्छी तरह से जानती है कि बिहार के बाहर लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव या आरजेडी की कोई बिसात नहीं है। बीजेपी यह मानकर चल रही है कि देश और बिहार की जनता को आरजेडी के शासनकाल और लालू प्रसाद यादव परिवार के भ्रष्टाचार मामले में फंसे होने की पूरी कहानी पता है। लिहाजा राष्ट्रीय स्तर पर लालू प्रसाद यादव की पार्टी से बीजेपी को कोई खतरा नहीं है।

दूसरी तरफ वर्तमान समय तक नीतीश कुमार को बेदाग छवि के नेता के तौर पर देखे जाते हैं। बीजेपी की रणनीति यह है कि वह जनता के बीच यह प्रचारित कर सकें कि महज कुर्सी के चक्कर में नीतीश कुमार ने उन भ्रष्टाचारियों के साथ हाथ मिला लिया, जिसके खिलाफ खुद नीतीश कुमार ने कभी लंबी लड़ाई लड़ी थी। बीजेपी जनता के सामने यह बात भी रखेगी कि किस तरह 2015 में लालू यादव के साथ महागठबंधन की सरकार चला रहे नीतीश कुमार ने यह कह कर पलट दिया था कि उन्हें भ्रष्टाचारियों के साथ सरकार चलाने में घुटन महसूस हो रही है और अब एक बार फिर उन्ही भ्रष्टाचारियो के साथ मिलकर नीतीश कुमार को सरकार चलाने में घुटन महसूस नहीं हो रही। यानी बीजेपी की कोशिश यह है कि जनता के मन में यह बिठा दिया जाए कि कुर्सी के लिए नीतीश कुमार कुछ भी कर सकते हैं।

नीतीश को लोहिया-जेपी के गैर कांग्रेसवाद से नहीं, अब केवल सत्ता से मतलब : सुशील मोदी
पूर्व उपमुख्यमंत्री और बीजेपी से राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जब बिहार बाढ और सूखे की दोहरी मार झेल रहा है, तब नीतीश कुमार केवल सुर्खियों में रहने के लिए दिल्ली के राजनीतिक पर्यटन पर हैं। सुशील मोदी ने कहा कि 1960 के दशक में डॉ लोहिया और 1974-77 के बीच जेपी ने जिस कांग्रेस के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी, उसके नेतृत्व की सबसे नकारा पीढ़ी के आगे लालू प्रसाद के बाद नीतीश कुमार का नतमस्तक होना अत्यंत दुखद है। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार उन दलों को कांग्रेस के साथ लाने के असंभव अभियान ( मिशन इम्पॉसिबल) पर हैं, जो विभिन्न राज्यों में कांग्रेस से लड़ कर ही सत्ता में हैं। केरल, पश्चिम बंगाल, दिल्ली इसके प्रमाण हैं।

देश को एक दशक में 6 पीएम देने वाले दौर में लौटना चाहता है विपक्ष : सुशील मोदी
सुशील मोदी ने कहा नीतीश कुमार का पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा से मिलना इस बात का संकेत है कि वे केंद्र में अस्थिर और कमजोर सरकारों वाला दौर लौटाकर देश के पुराने शत्रुओं की मदद करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में देवगौड़ा-गुजराल सहित 6 प्रधानमंत्री हुए थे। नीतीश कुमार उस दौर से बाहर नहीं निकल पाए, जबकि 2014 के बाद देश बहुत आगे निकल चुका है। मोदी ने यह भी कहा कि नीतीश कुमार उस कांग्रेस से मिल रहे हैं, जो केवल दो राज्यों में सिमट चुकी है। वे उन वाम दलों को भी जोड़ना चाहते हैं, जिनका वजूद खत्म हो रहा है। उन्होंने कहा कि जदयू का नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में भेजना एक मनोरंजक प्रयोग है-“दिल बहलाने को गालिब ये खयाल अच्छा है..।”

नीतीश की ‘छटपटाहट’ और ‘उछलकूद’ उनके राजनीतिक दिये की ‘आखरी भभक’ है : संजय जायसवाल
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि एक कहावत है ; जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, खुद उसमें गिर जाता है। नीतीश जी ने अपने राजनीतिक जीवन में दूसरों के लिए इतने गड्ढे खोदें हैं कि कब उनके सलाहकारों ने उनका पैर उन्हीं ‘गड्ढों’ में डाल दिया, यह उन्हें खुद भी पता नहीं चला। यह सलाहकार कोई और नहीं बल्कि वहीं नेतागण हैं जो कभी इनके ‘आंत में दांत’ गिनते थे तो कभी इनका ‘राजनीतिक अंत’ करने की कसम खाते थे। इन्हीं लोगों ने ‘पूरे प्लान के’ तहत इन्हें पीएम बनने की झाड़ पर चढ़ाया और आज यह गिरोह इनका राजनीतिक विध्वंस करने के अपने लक्ष्य के लगभग करीब पहुंच चुका है। दूसरों के लिए साजिशों का जाल बुनते-बुनते नीतीश कुमार कब इनके बुने जाल में फंस गये, यह उन्हें पता तक नहीं चला। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार कुर्सी के लोभ में अपनी राजनीतिक विश्वसनीयता पूरी तरह खो चुके हैं। यही वजह है कि विपक्ष का कोई नेता नीतीश से मिलना नहीं चाहते थे लेकिन लालू यादव के रहमोकरम की वजह से वे विपक्ष के नेताओं से मिल सके। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार अब ‘नीतियों’ के नहीं बल्कि ‘कुनीति’ के प्रतीक बन चुके हैं। संजय जायसवाल ने यह भी कहा कि उन्होंने लिखा कि हमने बचपन से ही पढ़ा है कि लोभ-लालच के फेर में पड़ कर इंसान अपना सर्वनाश कर लेता है। सुशासन बाबू से ‘रबर स्टैंप’ सीएम तक की नीतीश कुमार जी की यात्रा इसी बात का जीवंत उदहारण है।

दिल्ली में दर-दर भटक रहे हैं दिनकट्टू सीएम पलटू कुमार: सम्राट चौधरी
बिहार विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार अपने शासन काल के अंतिम दौर में हैं। जिसके चलते कभी राजगीर तो कभी दिल्ली में दिन काट रहे हैं। प्रधानमंत्री बनने की हसरत पाल बैठे देश के पल्टू मुख्यमंत्री को उनके ही सहयोगियों की ओर से भाव नहीं मिल रहा है। विपक्षी एकजुटता के नाम पर दिल्ली में बिहार का पैसा बर्बाद करने के लिए 3 दिन तक डेरा डालने वाले मुख्य़मंत्री की भारी फजीहत हो गई है। विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने नीतीश कुमार की गलतफहमी दूर कर दी है।

विधानसभा उपचुनाव में तीनों सीट पर महागठबंधन को माकूल जवाब देगी जनताः मंगल पांडेय
बिहार पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने कहा कि जनादेश के अपमान को लेकर आगामी विधानसभा उपचुनाव में क्षेत्र की जनता तथाकथित महागठबंधन को माकूल जवाब देगी। मंगल पांडेय ने कहा कि मोकामा, गोपालगंज और खाली होने वाली कुढ़नी विस उपचुनाव का परिणाम का सीधा असर 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगा। महागठबंधन के नेता जनादेश का अपमान कर देश पर कब्जा करने का जो दिवास्वप्न देख रहे हैं, वह कभी पूरा नहीं होने वाला है। राज्य की जनता एनडीए पर ही भरोसा जताएगी।

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