अखिलेश से यादव वोटर्स तोड़ने का प्लान! लोकसभा चुनाव से पहले BJP चल रही ये चाल

उत्तर प्रदेश में लगातार चार चुनाव हार चुकी समाजवादी पार्टी के यादव वोटर्स का एक वर्ग बेचैन है. वो किसी तरह से सत्ता के साथ बना रहना चाहता है. बीजेपी के लिए यहीं से उम्मीदों का रास्ता खुलता है. पार्टी का फोकस अच्छे दिन की आस लगाए यादव वोटर्स पर है. बीजेपी इन मौकों को भुनाने में लग गई है.

लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) इन दिनों मुसलमानों पर भी डोरे डाल रही है. साथ ही यादवों को भी अपना बनाने के मिशन पर लगी हुई है. काम है तो बड़ा कठिन. पर मोदी है तो मुमकिन है. इसी भाव से पार्टी MY (मुस्लिम-यादव) के समीकरण को तोड़ने में जुटी है. राजनीति परसेप्शन से बनती और बिगड़ती है. बीजेपी कभी ब्राह्मण और बनियों की पार्टी कही जाती थी. अब उसके पास OBC वोटर्स का व्यापक जन समर्थन है. क्या पता यादव और मुसलमानों का मन भी बदलने लगे. इसीलिए पार्टी दोनों का मन जीतने में लगी है.

पिछले महीने मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया है. अब बीजेपी की नजर बिहार और उत्तर प्रदेश के यादव वोट पर है. मोहन यादव 18 और 19 जनवरी को बिहार जा रहे हैं. कृष्ण चेतना मंच ने उन्हें बुलाया है. बीजेपी उनके चेहरे को आगे कर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगाड़ में है. देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में भी बीजेपी खेल कर रही है. पर चिमटे वाली दूरी से. यादव मंच नाम से एक संगठन तैयार है. पिछले ही महीने इसे तैयार किया गया है.

UP में यादव मंच के पीछे बीजेपी

मनीष यादव इस यादव मंच के अध्यक्ष हैं. लेकिन कहते हैं कि इसके पीछे बीजेपी का दिमाग है. लखनऊ के एक होटल में इस मंच का कार्यक्रम हुआ. मंच पर लिखा था ‘यादव समाज की बात, सरकार के साथ’. इसी मंच से यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने अखिलेश यादव पर तंज भी कसे. उन्होंने कहा, ‘जो राम का नहीं हुआ, वो कृष्ण का कैसे हो सकता है. और जो कृष्ण का नहीं हुआ, वो यदुवंशी कैसे हो सकता है.’ समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने को यदुवंशी कहते रहे हैं.

पहले मुलायम सिंह और फिर अखिलेश यादव को यादव समाज का नैचुरल नेता कहा जाता है. सवाल यूपी के 10 से 11 प्रतिशत यादव वोटर्स का है. अगर इसमें टूट हो गई तो फिर बीजेपी के लिए 50% वोट हासिल करने का मिशन पूरा हो सकता है. अखिल भारतीय यादव महासभा पर दशकों तक समाजवादी पार्टी की छाप रही है. अब यादव महासभा इस इमेज से निकलने को बेताब है. मुलायम सिंह यादव के दोस्त हरमोहन सिंह यादव लंबे समय तक इसके अध्यक्ष रहे. फिर उनके बेटे सुखराम सिंह यादव इसके सर्वेसर्वा बने.

यादव नेताओं को अब BJP का साथ पसंद

मुलायम सिंह ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया था. पर बाद में उन्हें बीजेपी अच्छी लगने लगी. कानपुर में 2022 में यादव महासभा के कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी भी जुड़े. उन्होंने वर्चुअल मीडियम से सभा में आए यादव समाज को संबोधित किया. यादव महासभा के अध्यक्ष रहे हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर ये प्रोग्राम हुआ था. पीएम मोदी ने हरमोहन सिंह की जमकर तारीफ की.

मुलायम सिंह यादव को नेताजी बनाने में उनका बड़ा रोल था. कानपुर से लेकर बदायूं तक यादव समाज में हरमोहन सिंह का बड़ा प्रभाव दिखा. कई बार विधायक और सांसद रहे हरमोहन ने समाजवादी पार्टी बनाने में भी मुलायम की मदद की थी. हरमोहन के बेटे सुखराम सिंह यादव भी महासभा के अध्यक्ष बने. अब उनके बेटे अरुण यादव इस महासभा के यूपी अध्यक्ष हैं. लेकिन वे अब बीजेपी में हैं.

SP के लगातार हार से यादव वोटर्स बेचैन

यादव महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष श्याम सिंह यादव हैं. वे जौनपुर से बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के लोकसभा सांसद हैं. वे अखिलेश यादव से भी मिलते रहे हैं. लेकिन इन दिनों उनका उठना बैठना बीजेपी के लोगों के संग है. मौका मिलने पर वे भी बीजेपी के यादव समाज को जोड़ने के मिशन में जुड़ सकते हैं. यादव महासभा के अध्यक्ष रह चुके कई नेता मुलायम सिंह से लेकर अखिलेश यादव के लिए काम करते रहे. इसके अध्यक्ष रहे उदय प्रताप सिंह को अखिलेश अंकल कहते हैं. इनके पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं.

यूपी में लगातार चार चुनाव हार चुकी समाजवादी पार्टी के यादव वोटर्स का एक वर्ग बेचैन है. वो सत्ता के साथ बना रहना चाहता है. बीजेपी के लिए यहीं से उम्मीदों का रास्ता खुलता है. पार्टी का फोकस अच्छे दिन की आस लगाए यादव वोटर्स पर है. असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि यादव को जब समाजवादी पार्टी का यादव नहीं मिलता है तो वो बीजेपी का यादव चुन लेता है. यूपी चुनाव के दौरान अयोध्या में उन्होंने ऐसा कहा था. उस विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम उम्मीदवार दिया था और बीजेपी ने यादव. जीत बीजेपी के नेता रामचंद्र यादव की हुई थी.

यादव मंच बनाने वाले मनीष यादव कहते हैं कि अखिलेश यादव, यादव समाज को मुसलमान बनाना चाहते हैं. हमारा विरोध इसी बात से है. वे दो बार अखिलेश यादव को चिट्ठी लिख चुके हैं. चिट्ठी में उन्होंने सवाल पूछा कि ‘आप मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर कब जाएंगे.’

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