वो दो मुद्दे जो नीतीश और बीजेपी के बीच बन रहे रोड़ा, कभी भी बन सकती है बात और पलट जाएंगे नीतीश?

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन से कभी भी पलटी मार सकते हैं. पिछले कुछ दिनों से बिहार की सियासत में जो कुछ भी देखने को मिला है उससे यही संकेत मिल रहे हैं कि इंडिया गठबंधन की बैठक के दौरान लालू यादव की चुप्पी नीतीश कुमार को पंसद नहीं आई है.

जेडीयू इंडिया गठबंधन से रास्ते अलग करने का लगभग मन बना चुकी है. नीतीश कुमार की पार्टी आए दिन अपनी हरकतों से आरजेडी को इस बात का अहसास लगातार करा रहे हैं. आलम यह है कि आरजेडी भी जेडीयू के रवैये को देखते हुए हथियार डाल चुकी है. इसलिए आरजेडी के नेता बिहार के हर जिले में घूमकर ‘पंद्रह साल बनाम पंद्रह महीने’ की आवाज बुलंद करने में जुट गए हैं.

आरजेडी नेताओं द्वारा ये प्रचारित किया जाने लगा है कि बिहार में नौकरियों की बरसात आरजेडी की वजह से हुआ है. कहा जा रहा है कि दो प्रमुख मुद्दे जेडीयू और बीजेपी के बीच रोड़े अटका रही है इसलिए उनके सुलझते ही जेडीयू औपचारिक तौर पर इंडिया गठबंधन से अलग होने का फैसला करने से परहेज नहीं करेगी.

इन दो मुद्दों के सुलझते ही जेडीयू इंडिया गठबंधन से किनारा कर लेगी

सूत्रों के मुताबिक जेडीयू चिराग पासवान के साथ किसी भी तरह के समझौते को लेकर तैयार नहीं है. जेडीयू चाहती है कि एनडीए के शीर्ष नेता चिराग पासवान और आरसीपी सिंह को एनडीए से अलग करें. वहीं बीजेपी चिराग के मसले पर फैसला लेने को लेकर ना-नुकुर कर रही है.

दरअसल चिराग पासवान लगातार अपने आप को पीएम मोदी का हनुमान बताते रहे हैं. वहीं बीजेपी चिराग पासवान के पांच फीसदी वोटों को हाथ से फिसलने देना नहीं चाहती है. बीजेपी की ओर से जेडीयू को समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि चिराग जेडीयू के लिए समस्या नहीं बनेंगे लेकिन जेडीयू अपनी शर्तों पर अड़ी हुई है. माना जा रहा है कि 30 जनवरी से पहले बीजेपी इस बाबत फैसला कर लेगी. इसलिए जेडीयू लगातार सीट शेयरिंग में देरी का मुद्दा उछाल कर इंडिया गठबंधन से अलग हटने को लेकर माहौल बनाने में जुट गई है.

चिराग पासवान को भी हो चुका अंदाजा

जेडीयू के हाल के रवैये का इल्म एलजेपी (रामविलास) के मुखिया चिराग पासवान को भी हो चुका है. इसलिए कल यानी सोमवार रात से चिराग पासवान ने भी नीतीश कुमार पर हमले तेज कर दिए हैं. चिराग पासवान ने साफ-साफ कहा है कि नीतीश पाला बदलने की तैयारी कर चुके हैं और वो कभी भी पाला बदल सकते हैं. चिराग ने नीतीश को अविश्वासी करार देकर जोरदार हमले किए हैं.

दरअसल चिराग को भी पता है कि नीतीश के एनडीए में आने के बाद चिराग के लिए एनडीए में बने रहना आसान नहीं रहने वाला है. चिराग पासवान और नीतीश कुमार के बेहद करीबी नेता अशोक चौधरी में जुबानी जंग शुरू हो चुकी है. चिराग के बयान के बाद जब अशोक चौधरी से प्रतिक्रिया मांगी गई तो अशोक चौधरी ने चिराग को गंभीरता से नहीं लेने की बात कह चिराग से तगड़ी नाराजगी की ओर इशारा साफ कर दिया.

सूत्रों के मुताबिक नीतीश कुमार की चाहत लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराने का है जिस पर बीजेपी पूरी तरह से हां करने से परहेज कर रही है. कहा जा रहा है कि इस बात को लेकर किसी भी दल के विधायक तैयार नहीं हैं. लेकिन नीतीश चाहते हैं कि लोकसभा के साथ ही चुनाव कराने का फायदा जेडीयू को मिलेगा. इसलिए जल्द से जल्द चुनाव कराकर बीजेपी के पक्ष में चल रहे माहौल का फायदा भरपूर उठाना चाहिए.

जेडीयू का क्यों हो गया है इंडिया गठबंधन से मोहभंग?

जेडीयू नेता और सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने सोमवार को एक बात साफ करते हुए कहा कि नीतीश कुमार मल्लिकार्जुन खरगे से सीनियर नेता हैं. ज़ाहिर है ये इस संदर्भ में दिया गया बयान है जब कांग्रेस मल्लिकार्जुन खरगे को चेयरपर्सन बनाने की बात इंडिया गठबंधन की पांचवीं बैठक में कर रही थी वहीं नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की मंशा जता रही थी. कांग्रेस ने नीतीश कुमार का नाम लेकर इसकी रजामंदी के लिए ममता बनर्जी से भी बात करने की बात कही जिस पर नीतीश कुमार ने मना कर अपने इरादे साफ जाहिर कर दिए.

जेडीयू के दूसरे दिग्गज नेता विजय चौधरी ने इसके जवाब में कहा है कि जेडीयू ने अपने नेता नीतीश कुमार को संयोजक बनाने के लिए कोई आवेदन नहीं दिया है. इसलिए कांग्रेस को सीट शेयरिंग के फॉर्मुले को जल्द तय करने पर विचार करना चाहिए जो सबसे महत्वपूर्ण है. जेडीयू सीट शेयरिंग के फॉर्मुले को लेकर होने वाली देरी को लगातार उठाकर नाराजगी ज़ाहिर करती रही है.

जेडीयू ने जैसा सोचा था, लालू ने उसका उल्टा किया

दरअसल जेडीयू कांग्रेस के रवैये से नाराज तो है ही वहीं जेडीयू की नाराजगी आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद से कहीं ज्यादा है. सूत्रों को मुताबिक जेडीयू चाहती थी कि नीतीश कुमार के नाम को लेकर प्रस्तावना लालू प्रसाद द्वारा दिया जाना चाहिए था, लेकिन लालू प्रसाद ने चुप्पी रखकर जेडीयू का साथ न देते हुए कांग्रेस की हां में हां मिलाने का काम किया है. जेडीयू इसे लालू प्रसाद की वादाखिलाफी मानती है. यही वजह है कि 3 नवंबर के बाद से ही नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच बातचीत का सिलसिला बंद हो चुका है.

पंद्रह जनवरी को लालू प्रसाद द्वारा दही और चूड़ा के भोज में आमंत्रण मिलने के बाद नीतीश कुमार लालू आवास पर भोज में शामिल होने तो गए लेकिन दस मिनट से भी कम समय बीताकर लालू प्रसाद के घर से वापस लौटकर नीतीश कुमार ने एक बार फिर अपनी नाराजगी ज़ाहिर बखूबी कर दी है. कहा जा रहा है कि दही-चूड़ा के भोज के दरमियान नीतीश कुमार से लालू प्रसाद की बातचीत एक मिनट भी नहीं हो सकी है वहीं नीतीश कुमार के स्वागत में राबड़ी देवी सहित मीसा भारती का अनुपस्थित रहना साल 2017 की याद दिला रही है जब राबड़ी और मीसा अपने हाथों से नीतीश कुमार के स्वागत में खड़ी दिखाई पड़ रही थीं.

नीतीश नहीं रहेंगे साथ ये आरजेडी को क्यों लगने लगा है?

राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुला आरजेडी और जेडीयू के बीच सेतु का काम करने वाले ललन सिंह को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया जाना आरजेडी के लिए पहला बड़ा इशारा था जिसे समझकर ही आरजेडी नेता और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने तत्काल विदेश यात्रा की योजना को कैंसिल कर दी थी. तेजस्वी यादव भी 10 दिसंबर से ही लगातार उस सरकारी कार्यक्रम में शिरकत नहीं कर रहे थे जिसमें नीतीश कुमार को बुलाया जा रहा था.

इन्वेस्टर्स मीट इसका बड़ा प्रमाण है जब उपमुख्यमंत्री, सीएम के साथ दिखने से परहेज करते दिखे थे. लेकिन जेडीयू द्वारा ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से किनारा किए जाने के बाद तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के साथ रिश्ते ठीक करने को लेकर पहल तो की लेकिन नीतीश कुमार एक के बाद दूसरे फैसले लेकर आरजेडी से दूरी बनाते देखे गए हैं. जेडीयू द्वारा 17 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने से लेकर साल 2019 में जीते हुए एक भी सीट को नहीं छोड़ने की बात लगातार करना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है.

सरकारी विज्ञापनों से गायब रहा तेजस्वी यादव का चेहरा

ताजा उदाहरण संयोजक पद के ऑफर को ठुकराने का है वहीं शिक्षकों की नियुक्तियों में तमाम सरकारी विज्ञापनों से तेजस्वी यादव का चेहरा गायब करना आरजेडी को उकसाने वाला फैसला माना जा रहा है. आरजेडी सरकार में बड़ी घटक दल है लेकिन सरकारी विज्ञापन में कहीं भी नीतीश कुमार शिक्षकों की बहाली का क्रेडिट अपने सिवा तेजस्वी यादव को देते नजर नहीं आए हैं.

जाहिर है आरजेडी अब मान चुकी है कि नीतीश अब साथ रहने वाले नहीं हैं. इसलिए आरजेडी ने अपनी नई रणनीति के तहत ये कहना शुरू कर दिया है कि सरकार साल 2020 में बनी थी लेकिन नौकरी बांटने का सिलसिला आरजेडी के सरकार में शामिल होने के बाद शुरू हो सका है. आरजेडी कह रही है कि पिछले पंद्रह सालों में इतनी नौकरियां नहीं बंटी हैं.

पंद्रह साल बनाम पंद्रह महीनों की बात कह क्रेडिट लेने की होड़

इसलिए आरजेडी पंद्रह साल बनाम पंद्रह महीनों की बात कह क्रेडिट लेने की होड़ में जुट गई है. कहा जा रहा है कि 24 को जेडीयू कर्पूरी जयंती की शताब्दी मनाकर अति पिछड़ों पर मजबूत पकड़ कायम रखने का शक्ति प्रदर्शन करेगी वहीं बीजेपी से बात आज कल में शत-प्रतिशत पटरी पर जाती दिखती है तो नीतीश अयोध्या के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी 22 जनवरी को जाकर साफ संदेश दे सकते हैं.

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1