देश आज पंडित दीन दयाल उपाध्याय की 103वीं जयंती मना रहा है, एकात्म मानववाद और अंत्योदय जैसे दर्शन देने वाले प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 1916 में उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में हुआ था। पं. दीन दयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता थे, वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। 1965 में जनसंघ द्वारा अधिकारिक रूप से जिस एकात्म मानवतावाद के सिद्धांत को अपनाया गया वो पं. दीन दयाल उपाध्याय की ही देन था।पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने भारतीय जनसंघ की उत्तर प्रदेश शाखा व अखिल भारतीय स्तर पर 15 साल तक महासचिव का पद संभाला।
आज पं. दीन दयाल उपाध्याय की जयंती पूरा देश उन्हें याद कर रहा है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनको नमन किया है।
पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने राजनीति में प्रवेश वर्ष 1963 में किया उनकी सियासी कर्मभूमि जौनपुर रही। हालांकि राजनीति में उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली और कांग्रेस नेता ठाकुर राजदेव सिंह से उन्हें शिकस्त झेलनी पड़ी, मगर हार कर भी उन्होनें लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली। बता दें कि जौनपुर का वो चुनाव इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने खुद पं. दीन दयाल उपाध्याय के लिए चुनाव की कमान संभाली थी। हार के बाद 1963 का ये चुनाव उनके जीवन का पहला और आखिरी चुनाव बना।
सादगी व अनुशासन के प्रतीक पंडित दीन दयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और अंत्योदय के दर्शन को आज बीजेपी ने अपनाया है, और उसी सिद्धांत को मूल मंत्र मानकर चल रही है।
बेहद सादगी के जीवन गुजारने वाले दीन दयाल उपाध्याय के बारे में कहा जाता है कि वह कार्यकर्ताओं को सादा जीवन-उच्च विचार के लिए प्रेरित करते थे, अक्सर जब लोग उनसे मिलते थे तो वो कहते थे कि दो धोती, दो कुर्ते और दो वक्त का भोजन ही मेरी संपूर्ण आवश्यकता है, इससे अधिक का मुझे मोह नहीं।
दीन दयाल उपाध्याय का बचपन संघर्षों में बीता, बचपन में ही माता-पिता की छत्र-छाया से वंचित हो गए इसके बावजूद भी 1937 में इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास किए जिसमें सभी विषयों में विशेष योग्यता के साथ वो सफल रहे।
राजनीति से इतर पंडित दीनदयाल उपाध्याय को साहित्य में गहरी रुचि थी, उन्होनें राष्ट्रधर्म (मासिक), पांचजन्य (साप्ताहिक), स्वदेश (दैनिक) के साथ साहित्य का सृजन भी किया
जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत आज भी एक रहस्य बनी हुई है, उनकी मौत एक प्राकृतिक मौत थी या फिर हत्या आज तक कोई भी सरकार इस गुत्थी को सुलझा नहीं पायी। हालांकि उस वक्त इसी जांच भी कराई गयी। लेकिन इस रहस्य को नहीं सुलझाया जा सका है। गौरतलब है कि दीनदयाल जी की मृत्यु 10 फरवरी 1968 को मुगलसराय स्टेशन के आस-पास उस वक्त हुई थी जब वो सियालदह एक्सप्रेस ट्रेन से लखनऊ से पटना जा रहे थे।