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2022 में ‘पांचों किलों’ को जीतना भाजपा के लिए होगा मुश्किल, जानें कैसे होगी नैया पार

साल 2022 चुनावी साल है। देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस के लिए सभी पांच राज्य अहम हैं। जिस तरह से देखा जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी चुनावी राज्यों में अंतर्कलह से जूझ रही है। जिसे लेकर आगामी कुछ दिनों में कांग्रेस वर्किंग कमेटी की अहम बैठक होनी है। लेकिन, भाजपा में भी हालात ठीक नहीं है। चुनावी राज्यों में भाजपा कई परेशानी का सामना कर रही है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तरप्रदेश का लखीमपुर खीरी बड़ी चिंता है। जिस तरह 3 अक्टूबर को लखीमपुर में किसानों की मौत के बाद बवाल ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियां लखीमपुर को छोड़ने के मूड में नहीं है। ऐसे में यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए ये बड़ी परेशानी साबित हो सकती है। वहीं, पंजाब से लेकर छत्तीसगढ़ राज्यों में कांग्रेस के माथे पर शिकन है। आइए, राज्यवार जानते हैं कि विधानसभा चुनाव में कौन-कौन से मुद्दे हैं जो भाजपा और कांग्रेस को परेशान कर सकते हैं।

सबसे पहले बात उत्तरप्रदेश की। यहां योगी आदित्यनाथ सरकार 3 अक्टूबर से पहले फ्रंच फुट पर थी, लेकिन लखीमपुर खीरी कांड ने बीजेपी को बैकफुट में कर दिया है। अब कांग्रेस पार्टी का हर मंच पर विरोध करना दिखाता है कि वह इस मुद्दे को विधानसभा चुनाव में भुनाना चाहती है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव होने में मुश्किल से पांच महीने बचे हैं। ऐसे में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे का किसानों की मौत से जुड़ना बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है। 3 अक्टूबर को हुए लखीपुर कांड में चार किसानों समेत आठ लोगों की मौत हुई थी।

लखीमपुर खीरी हिंसा गोरखपुर में एक पुलिस छापे के कुछ दिनों के भीतर हुई, जहां कानपुर में एक व्यापारी की मौत हो गई। दोनों घटनाओं में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुआवजा राशि और जांच का ऐलान करके तेज प्रतिक्रिया तो दी, लेकिन सीएम योगी का ये ऐलान कितना सफल होगा, चुनाव के बाद पता लगेगा।

लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर बीजेपी को विपक्ष की आक्रामकता का सामना करना पड़ रहा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है। हालांकि बीजेपी के लिए राहत की बात यह है कि विपक्ष बंटा हुआ है और एक दूसरे से ही लड़ रहा है।

मणिपुर की बात करें तो यहां भाजपा शासन कर रही है लेकिन राज्य इकाई में गंभीर अंदरूनी कलह चल रहे हैं। गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को दो दिवसीय दौरे पर मणिपुर जाना पड़ा।

नड्डा की मणिपुर यात्रा प्रदेश के मुखिया एन बीरेन सिंह, मंत्री विश्वजीत सिंह और मणिपुर भाजपा प्रमुख ए शारदा देवी को दिल्ली बुलाने के बाद हुई है। चुनाव से कुछ ही महीने पहले मणिपुर भाजपा के भीतर बीरेन सिंह के खिलाफ असंतोष बढ़ने की खबरें आ रही हैं।

उत्तराखंड में भी भाजपा के लिए शिकन कम नहीं है। यहां हैरत की बात ये है कि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 सीटें जीती, लेकिन जिस तरह से भाजपा हाई कमान ने तीन महीने के भीतर प्रदेश में तीन मुख्यमंत्री बदल दिए, उससे भाजपा के अंतर्कलह की कलई खुलती है। पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत, फिर तीरथ सिंह रावत और अब पुष्कर सिंह धामी प्रदेश की कमान संभाल रहे हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ पार्टी विधायकों ने ही विरोध के सुर बुलंद कर दिए थे। बात तो ये भी उड़ी कि कई विधायकों ने दिल्ली की परेड की और त्रिवेंद्र सिंह रावत की हाई कमान के पास कंप्लेन कर दी थी। यहां बात कांग्रेस पार्टी की करें तो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व पीसीसी चीफ प्रीतम सिंह अलग-अलग धड़े में बंटे हैं।

उत्तराखंड भाजपा इकाई में असंतोष की खबरों के बीच ऐसी अटकलें हैं कि भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में अपने आधे विधायकों को मैदान में नहीं उतारेगी। इन्हीं खबरों के बीच आज कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य ने अपने विधायक बेटे के साथ घर वापसी करते हुए कांग्रेस में री एंट्री ली। रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा के उत्तराखंड प्रभारी दुष्यंत गौतम और महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के आंकलन में लगभग 25 विधायकों को चुनाव में नहीं उतारने की तैयारी है। इससे निसंदेह कांग्रेस फायदा ले सकती है।

उधर, पंजाब में कांग्रेस का हाल तो जगजाहिर है। लेकिन भाजपा के लिए जश्न मनाने जैसा कुछ माहौल नहीं है। भाजपा अपने पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बिना पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ेगी, जिसने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन किया है। कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल भाजपा से नाराज चल रही है। जिसके विरोध में हरसिमरत कौर ने केंद्रीय मंत्री पद तक छोड़ दिया था। किसान बाहुल्य प्रदेश पंजाब में भाजपा की राह बेहद कठिन है।

उधर, सत्तारूढ़ कांग्रेस को भी यहां संकट का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह सीएम पद छोड़ने के बाद घोषणा कर चुके हैं कि वे अब कांग्रेस के साथ आगे नहीं रहेंगे। वहीं, नवजोत सिंह सिद्धू अपनी बयानबाजी से कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।

2017 के गोवा विधानसभा चुनावों में भाजपा दूसरे स्थान पर रही थी। लेकिन अपनी ताकत दिखाते हुए गोवा में सरकार बना ली। पिछले चुनाव में गोवा की 40 सदस्यीय विधानसभा में से भाजपा ने 13 सीटें जीती थीं। गोवा में जहां कांग्रेस कमजोर हुई है, वहीं बीजेपी को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने नई चुनौती दी। टीएमसी इस बार गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है।

इस वक्त भाजपा को देश की सबसे मजबूत संगठन वाली पार्टी माना जाता है। लेकिन किसानों के विरोध, गुजरात और कर्नाटक राज्यों में असंतोष और राज्य में काफी पैठ बनाने के बावजूद पश्चिम बंगाल में हार की छाप बीजेपी के लिए 2022 की चुनावी राह मुश्किल करने के लिए काफी है।

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