NITISH MAY PROVIDE BENEFIT TO MODI

जाति गणना के बाद आरक्षण का मुद्दा? बिहार के कास्ट सेंसस का 2024 कनेक्शन, गजब की टाइमिंग

बिहार में जाति गणना की मांग के साथ शुरू हुई राजनीति, कास्ट सर्वे के शुरू होने के बाद भी जारी है। सवाल ये उठता है कि क्या जाति आधारित गणना का काम पूरा होने के बाद कमजोर जातियों की ओर से आरक्षण का मामला उठाया जाएगा? क्या आगामी लोकसभा चुनाव के पहले देश में फिर से आरक्षण का मामला उठाने की राजनीति हो रही है? बिहार में जाति गणना शुरू होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये कह कर चौंका दिया कि इस गणना में उपजातियों को शामिल नहीं किया जा रहा बल्कि जाति को शामिल किया गया है।

जाति गणना पर जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बीजेपी को दी नसीहत
जनता दल यूनाईटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर जाति गणना की मांग को केंद्र सरकार ने ठुकरा दिया था। इसके 6 महीने बाद बिहार सरकार को अपने खर्च पर कास्ट सर्वे कराने की अनुमति दी। अब जबकि 7 जनवरी से गणना का काम शुरू हो चुका है तो साजिश कर बीजेपी इसे सुप्रीम कोर्ट के बहाने रुकवाने पर तुली है। बीजेपी के नेता हमेशा ये कहते हैं कि वो जातीय गणना के पक्षधर हैं। उन्होंने बीजेपी को नसीहत देते हुए कहा कि अगर वो वास्तव में जातीय गणना के पक्षधर हैं तो सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका के खिलाफ भारत के अटॉर्नी जनरल को खड़ा करें। दोहरा चरित्र रखने वाली बीजेपी के लिए देश की जनता के सामने एक ही विकल्प है कि 2024 लोकसभा चुनाव में बड़का झुट्ठा पार्टी (BJP) से भारत को मुक्त करे।

नीतीश के गृह जिले के निवासी ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
बिहार में 7 जनवरी से शुरू हुई जातीय गणना के खिलाफ नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा के अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। दायर याचिका में कहा गया है कि जातीय गणना संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है। इसके अलावे इसकी अधिसूचना भेदभाव पूर्ण होने के साथ असंवैधानिक भी है। दायर याचिका में ये भी मांग की गई है कि चल रहे जातीय गणना के कार्य को रद्द किया जाए क्योंकि, ये नोटिफिकेशन संविधान की धारा 14 का उल्लंघन करती है। सुप्रीम कोर्ट ने नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की याचिका को स्वीकार कर लिया है और 13 जनवरी 2023 यानी शुक्रवार को कोर्ट में इस पर सुनवाई होगी।

क्या जातीय जनगणना के बाद आरक्षण का मामला उठेगा?
भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर तमाम राजनीतिक दल देशव्यापी जातीय जनगणना कराए जाने के पक्षधर हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार के कामकाज ने देश में जाति आधारित राजनीति को काफी हद तक कम कर दिया है। बीजेपी को समाज के हर वर्ग के लोगों का वोट मिलता है। ऐसे में जाति आधारित राजनीति करने वाली राज्य की क्षत्रप पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट मंडराने लगा है।

जानकारों का कहना है कि समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, बहुजन समाज पार्टी या अन्य क्षेत्रीय दल कुछ जाति के सहारे ही सत्ता हासिल करने में कामयाब रहीं हैं। लेकिन 2014 के बाद देश में ये स्थिति लगभग बदल चुकी है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद देश में ही नहीं बल्कि राज्यों में भी राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का मुद्दा हावी हो चुका है। क्षेत्रीय पार्टियों को ये लगता है कि बीजेपी के पक्ष में हिंदू एकजुट हो रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि अगर पार्टी का अस्तित्व बचाना है तो एक बार फिर जातीय आधारित राजनीति को बढ़ावा देना होगा। इसलिए ये संभव है कि 2024 लोकसभा चुनाव के पहले जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की जाए। इसके बाद आरक्षण का मामला उठाकर 2024 का लोकसभा चुनाव जातीय आधारित हो इसकी कवायद में भी बीजेपी विरोधी पार्टियां जोर-शोर से तैयारी में लगी हैं।

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