बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के मद्देनज़र कम से कम एक बात तो तय है- संभावना वाले किसी भी दल में अकेले चुनाव लडऩे की हिम्मत नहीं है। सबको सहारे की जरूरत है, लेकिन कुछ दलों को छोड़ दें तो बाकी में दोस्ती के बारे में ढंग से बातचीत नहीं हो रही है। इसमें सबसे बड़ी बाधा 2015 का विधानसभा चुनाव है। उसमें सीटों का जिस ढंग से बंटवारा हुआ था, अधिसंख्य दल वही तरीका इस चुनाव में भी आजमाना चाहते हैं। किसी दल को उस चुनाव की तुलना में कम सीट नहीं चाहिए। पेंच यहीं आकर फंस जाता है।
पिछले चुनाव में महागठबंधन (Mahagathbandhan) को समग्रता में बड़ी कामयाबी मिली थी। 243 में से 178 सीटों पर उसकी जीत हुई थी, फिर भी जनता दल यूनाइटेड (JDU) को वास्तविक जीत का मजा नहीं आया। 2010 की तुलना में उसे ठीक 44 सीटों का घाटा हुआ था। 2010 में उसके विधायकों की संख्या 115 थी। वह 2015 में 71 हो गई। 2020 के चुनाव में JDU उस क्षति की भरपाई करना चाहता है। इसके लिए उसे कम से कम 122 सीटें चाहिए। उसकी यह मांग लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) को मंजूर नहीं है।
2015 की सीटों की संख्या भारतीय जनता पार्टी (BJP) को भी कम सीटों पर लडऩे से रोक रही है। सवाल है कि अगर 100 के आसपास सीटें मिलें तो उसके बाकी 57 उम्मीदवार कहां जाएंगे, जो बीते चुनाव में खड़े हुए थे। किसी-किसी सीट पर मामूली वोटों से उनकी हार हुई थी। BJP को भी मलाल है। अधिक सीटों पर लडऩे के बावजूद 2015 में उसके सिर्फ 53 उम्मीदवार जीत पाए थे। 2010 में उसके 91 विधायक थे। हालांकि, अकेले में BJP को रिकार्ड 24.4% वोट मिले थे।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) फिर भी इत्मीनान में हो सकता है। उसके घटक दल JDU और BJP में अपेक्षाकृत अनुशासन है। नाराज लोगों को समझाने या उन्हें मुआवजे के तौर पर कुछ देने का भरोसा देकर संतुष्ट करने की क्षमता है, लेकिन यही क्षमता LJP में नहीं है। वह एक सीमा से कम सीटों पर राजी नहीं होगी। NDA में सिर्फ यही समस्या है कि वह LJP को राजी कर ले। वैसे JDU-BJP में सीटों को लेकर होने वाला कोई भी मतभेद सलट सकता है। दोनों के बीच सीटों के साथ उम्मीदवारों की भी अदला-बदली होती रही है।
महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सामने भी JDU वाला ही संकट है। 2015 में वह सबसे कम 101 सीटों पर लड़ा था। बेशक उसे शानदार जीत हासिल हुई थी। 2010 से तुलना करें तो उसे विधानसभा की 68 सीटों का लाभ हुआ था। सो, वह भी इस बार अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लडऩा चाह रहा है। सूत्र बताते हैं कि उसने दूसरी बड़ी सहयोगी कांग्रेस (Congress) को बता दिया है कि 150 से कम सीटों पर हम नहीं लड़ेंगे। इसका मतलब हुआ कि वह कांग्रेस सहित अन्य सहयोगी दलों के लिए सिर्फ 93 सीटें छोड़ रहा है। इसी में वाम दलों (Left parties), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP), विकासशील इंसान पार्टी (VIP) आदि का हिस्सा है।
कांग्रेस 2015 की तुलना में अधिक सीटों पर लडऩा चाहती है। पार्टी की अंदरूनी बैठक में तय किया गया है कि सभी लोकसभा सीटों की दो-दो विधानसभा सीटों पर लड़ा जाए। यह हिसाब 80 सीटों का है। 2015 में 41 में से 27 सीटों पर जीत हुई थी। 2010 से तुलना करें तो उसे 23 सीटों का लाभ मिला था। कांग्रेस को उम्मीद थी कि RJD पर दबाव देकर वह अधिक सीट ले लेगी। इधर RJD ने उसे ही पंच बनाकर धर्म संकट में डाल दिया हैै। वह समझे कि 94 में से कितनी सीटें वह बांटेगी और कितनी अपने पास रखेगी।