एक ही मंडप में हुई मां और बेटी की शादी

झारखंड की राजधानी रांची में रविवार को बड़ा ही सुखद नजारा दिखा। जब यहां एक ही मंडप में मां और उसकी सगी बेटी की शादी हुई। मंडप में मां और बेटी को परिणय सूत्र में बंधते देखने के लिए आसपास के इलाकों से हुजूम जुटा था। इस अनोखी शादी के गवाह बने लोगों ने मां और बेटी को उनके आने वाले जीवन के लिए शुभकामनाएं दीं।

कांके प्रखंड के सांगा गांव निवासी सुदेश्वर गोप औप परमी गोप तथा उसकी बेटी कलावती गोप व दामाद प्रताप गोप की शादी रविवार को एक ही मंडप में हुई। इस शादी का गवाह कलावती का ढाई साल का नन्हा बेटा गोपाल भी बना। दो पीढिय़ों की एक साथ शादी और तीसरी पीढ़ी के आयोजन का गवाह बनने का दुर्लभ नजारा देख सबकी नजरें ठिठकीं। सुदेश्वर गोप (55) व परमी (50) पिछले 30 सालों से बगैर शादी के पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे थे। इस दौरान 4 बच्चों का जन्म हो गया।

सुदेश्वर ईंट भट्ठा पर मजदूरी करते हैं। उन्होंने बताया कि शादी के आयोजन का खर्च उठाने लायक पैसों का जुगाड़ कभी हो नहीं पाया। परंपरा है कि शादी के बाद गांव वालों को भोज देना है, तभी शादी की मान्यता मिलती है। न कभी भोज के पैसे हुए न शादी कर पाए। यही नहीं सुदेश्वर की बेटी भी 6 साल से लिव इन में रह रही थी। उसकी शादी भी रविवार को साथ ही हुई। शादी संपन्न होने के बाद दोनों दंपत्ति ने एक दूसरे को बधाई दी।

निमित्त संस्था की ओर से रविवार को आयोजित सामूहिक शादी में 150 जोड़ों ने 7 फेरे लेकर एक दूसरे के साथ जीवन जीने की कसमें खाईं। यहां कई ऐसे जोड़े थे जो वर्षों से लिवइन रिलेशन में एक साथ रह रहे थे। लेकिन, पैसे के अभाव मे शादी नहीं कर पाये। मंडप में बैठे अधेड़ दूल्हा-दुल्हनों के चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा रही थी।

इस वैवाहिक समारोह में सबकी नजरें रांची के कांके प्रखंड के सांगा गांव निवासी मां-बेटी पर थी। मां परमी (50) और बेटी कलावती यहां एक ही मंडप में वैवाहिक बंधन में बंधी। मौके पर सांगा गांव के 12 जोड़ों की शादी हुई। इस समारोह में मंगल बंधन में बंधनेवाले सभी जोड़े अलग-अलग धर्म से जुड़े थे। सबकी शादियां अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुरूप हुई। शादी के बाद नव दंपत्ति को लोगों ने शुभकामनाएं व उपहार दिये। इस मौके पर सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

वैवाहिक समारोह में एक ओर अग्नि के समक्ष 7 फेरे लिये जा रहे थे। वहीं दूसरी ओर पाहन की देखरेख में सरना विधि-विधान से शादी हो रही थी। चर्च से आए फादर ने भी बाइबिल की उक्तियां पढ़कर जोड़ों की शादी की रस्‍म अदायगी की। समाजिक कार्यकर्ता जयंती देवी के अनुसार अधेड़ उम्र के अधिकतर ऐसे लोग हैं जो मजदूर हैं। इनमें प्राय: ईंट भट्ठा में काम करते हैं। बताया गया कि जिन वरों ने अपनी पसंद की लड़की तो चुन ली, लेकिन शादी नहीं कर पाये, उनके लिए यह खास आयोजन किया गया था।

वेलेंटाइन सप्ताह के साथ कदमताल करते हुए अपनी पूरी रवानी पर आ पहुंचा बसंत रविवार को वर्षों से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे झारखंड के 137 जोड़ों के जीवन में नई बहार लेकर आया। ये जोड़े गरीबी व अन्य सामाजिक-व्यवहारिक दिक्कतों की वजह से बगैर शादी के वर्षों से साथ रह रहे थे। इनमें कई ऐसे है, जिनके बच्चों के भी बच्चे हो गए है। निमित्त संस्था और लायंस क्लब ने रांची के मोरहाबादी में इन जोड़ों की समारोहपूर्वक शादी कराई और इनके रिश्तों को नाम दिया। इस खास सामूहिक विवाह समारोह में विभिन्न धर्मों के 137 जोड़े विवाह के बंधन में बंधे।

इस अनूठी शादी में वर-वधू के परिजन के साथ बड़ी संख्या में उनके गांव वाले भी शरीक हुए। इसमें कई ऐसे भी जोड़े थे जो दशकों से साथ रह रहे थे, लेकिन अपने रिश्ते को अब तक नाम न दे सके थे। विवाह के आयोजन का खर्च न उठा पाने की मजबूरियों से लेकर अन्य कारण आड़े आ रहे थे। वहीं सामाजिक मान्यता न मिल पाने के कारण ये उपेक्षा भी झेल रहे थे। निमित्त संस्था ने लिव इन में रह रहे ऐसे जोड़ों को ढूंढ़ कर इनकी शादी कराई। इनमें ङ्क्षहदू धर्म के 72, सरना समाज के 53 व इसाई समाज के 10 जोड़े शामिल थे। सबकी शादियां अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुरूप हुई। शादी के बाद नव दंपत्ति को लोगों ने शुभकामनाएं व उपहार दिये। इस मौके पर सामूहिक भोज का भी आयोजन किया गया।

इस खास शादी समारोह में अलग-अलग संस्कृति के रंग देखने को मिले। एक ओर पंडित हवन करा रहे थे तो दूसरी ओर से ईसाई धर्मगुरु जोड़ों को बाइबिल का पाठ रहे थे। एक हिस्से में सरना माता और धरम-करम की कहानी के साथ जीवन जीने की कसमें खिलाई जा रही थीं। वहीं दूसरी ओर वाद्य यंत्र पर विभिन्न धर्मों की शुभ मंगल ध्वनि मिश्रित रूप से परिसर में गूंज रही थी।

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