जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के सरकार के निर्णय के बाद राज्य में लगाये गये प्रतिबंधों के खिलाफ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इंटरनेट का अधिकार, अभिव्यक्ति के अधिकार के तहत आता है और यह भी मूलभूत अधिकार हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इंटरनेट एक्सेस को संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मौलिक अधिकार करार देते हुए जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस केंद्र शासित प्रदेश में जारी पाबंदियों की समीक्षा एक सप्ताह के भीतर करने का आदेश दिया है।
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने जम्मू-कश्मीर से संबंधित अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों एवं अनुच्छेद 35 ए को निरस्त किये जाने के बाद इंटरनेट निलंबन आदेश की तत्काल समीक्षा का भी आदेश दिया। पीठ की ओर से न्यायमूर्ति रमन ने ‘कश्मीर टाइम्स’ की सम्पादक अनुराधा भसीन और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जम्मू-कश्मीर में लगायी गयी अन्य सभी पाबंदियों की समीक्षा एक सप्ताह के भीतर करने का आदेश दिया है।
न्यायालय ने सरकारी और स्थानीय निकायों की उन वेबसाइटों को बहाल करने का आदेश दिया जहां इंटरनेट के दुरुपयोग की आशंका कम है। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान सहित आवश्यक सेवा उपलब्ध कराने वाले सभी संस्थानों की इंटरनेट सेवाएं बहाल करने का निर्देश दिया।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि इंटरनेट पर अनिश्चित काल के लिए पाबंदी लगाया जाना दूरसंचार नियमों का भी उल्लंघन है। उसने इंटरनेट की उपलब्धता को अभिव्यक्ति की आजादी का एक माध्यम बताते हुए कहा कि इस पर लंबे समय तक रोक नहीं लगायी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन से कहा कि वह उन सभी आदेशों को पब्लिक डोमेन में डाले, जिनके तहत दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 लगायी गयी थी, ताकि लोग उसके खिलाफ कोर्ट जा सकें।