प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के खिलाफ दो अक्टूबर से एक ‘नया जन-आंदोलन’ शुरू करने का रविवार को आह्वान किया। उन्होंने ‘मन की बात’ में कहा कि जब देश राष्ट्रपति की 150वीं जयंती मना रहा है, तब ऐसे में ‘हम प्लास्टिक के खिलाफ एक नया जन-आंदोलन आरंभ करेंगे।’ प्लास्टिक प्रदूषण वर्तमान में एक वैश्विक समस्या बनी हुई है। प्लास्टिक की वजह से पर्यावरण को हो रहा नुकसान वर्षों से अंतरराष्ट्रीय शोध और सरकारी रिपोर्टों का विषय रहा है। इनसे पता चलता है कि दुनियाभर में बनने वाले प्लास्टिक का 75 फीसद इसका कचरा बन जाता है और लगभग 87 फीसद हिस्सा पर्यावरण में मिल जाता है।
हर व्यक्ति औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा
ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकैसल द्वारा किया गया अध्ययन इस वर्ष वल्र्ड वाइल्डलाइफ फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि एक सप्ताह में एक व्यक्ति औसतन पांच ग्राम प्लास्टिक निगल रहा है। यानी किसी न किसी माध्यम से यह नुकसानदेह चीज उसके शरीर में पहुंच रही है। अध्ययन के अनुसार प्लास्टिक कचरे का एक तिहाई से अधिक हिस्सा प्रकृति में मिल जाता है, विशेष रूप से पानी में जो शरीर में प्लास्टिक पहुंचाने का सबसे बड़ा स्रोत है। अध्ययन के मुताबिक, नल के पानी में प्लास्टिक फाइबर पाए जाने के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है। यहां 82.4 फीसद तक प्लास्टिक फाइबर पाया जाता है। मतलब प्रति 500 मिली में चार प्लास्टिक फाइबर।
सीपीसीबी की चौंकाने वाली रिपोर्ट
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के पालन का आकलन करने वाले केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट अंतिम बार 2017-18 के लिए प्रकाशित की गई थी। 2018 में इसके नियमों में संशोधन किया गया था। 2017-18 में केवल 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट सीपीसीबी को सौंपी थी। इन 14 में से उत्तर प्रदेश में हर साल 2.06 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ। यहां पर प्लास्टिक निर्माण और रिसाइकिल की 16 अपंजीकृत इकाइयां भी थीं। वहीं गुजरात में 2.69 लाख टन प्रति वर्ष प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ।