राजधानी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने लछ्मण झूला पार्क स्थित छठ पूजा स्थल और कुड़िया घाट स्थित पूजा स्थल का किया निरीक्षण, निरीक्षण में अपर जिलाधिकारी पूर्वी वैभव मिश्रा, अपर जिलाधिकारी पश्चिमी संतोष वैश्य, अपर नगर मजिस्ट्रेट प्रथम, अपर नगर मजिस्ट्रेट द्वितीय, नगर निगम, सिचाई विभाग व अन्य सम्बंधित विभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।
1 नवंबर को खरना: इस दिन व्रती दिन में एक बार खाना खाना होता है। इसके लिए कद्दू या सीताफल की सब्जी और पूरी व खीर ही खाई जाती है। खरना में जो प्रसाद तैयार किया जाता है उसके लिए नया चूल्हा या साफ सुथरी रसोई का ही इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग आम की लकड़ी से ही खाना पकाते हैं। खरना के दिन से ही व्रत शुरू होता है।
2 नवंबर को सायंकालीन सूर्य को अर्घ्य: दो नवंबर को पूरा दिन व्रत रखने के बाद व्रती शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और रात भर जागकर सूर्य देवता के जल्दी उदय होने की कामना करते हैं। व्रती को सूर्योदय तक पानी तक नहीं पीना होता। इसीलिए इस व्रत को काफी कठिन व्रत माना जाता है।
3 नवंबर को उगते सूर्य को अर्घ्य: व्रत के आखिरी दिन 3 नवंबर को जब उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद ही व्रती पारण करता है और प्रसाद ग्रहण करता है। इस अवसर पर छठी मइया यानी भगवान सूर्य से आशीर्वाद के लिए बहुत से लोग सपरिवार व्रत रखते हैं।
छठ पूजा सामग्री की सूची
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा/धोती और अंगरखा।
चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
सुथनी और शकरकंदी।
हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
इसके साथ ही ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा