सुकून में है प्रकृति, 30 साल बाद दिखा धौलाधर पर्वत

धौलाधर पर्वत श्रृंखला बीते 30 सालों में पहली बार जालंधर से देखी जा सकती है, नंगी आंखों से। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि 30 सालों से जो धौलाधर की पर्वत श्रेणी आंखों से ओझल थी वो अचानक दिखने लग पड़ी। इसका कारण Coronavirus के फैलते संक्रमण की वजह से देश भर में लगाया गया लॉकडाउन है। लॉकडाउन मतलब कि सबकुछ बंद। गाड़ियां बंद। रेलगाड़ियां बंद। फ्लाइट्स बंद, मॉल, सिनेमाहाल सबकुछ बंद। फैक्ट्रियां भी बंद। और लोग, वे भी अपने-अपने घरों में बंद।

दो सप्ताह हो गये। लॉकडाउन जारी है। अब जब सबकुछ बंद है अचानक से प्रदूषण में गिरावट आई है। बहुत ज्यादा गिरावट। हवा साफ है।फैक्ट्रियों का गंदा पानी नदियों में नहीं गिर रहा। नदियां भी साफ हैं। आसमान नितांत नीला दिखाई पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि जैसे प्रकृति खुद सुकून का सांस ले रही है। गहरी और लंबी। और पहाड़-पर्वत, नदियां आकाश सब मुस्कुरा रहे हैं। स्वच्छ होकर। ना तो सड़कों पर गाड़ियों का शोर है और ना ही लोगों की भीड़। ना तो दम घोंटु धूल है और ना जानलेवा धुआं। बस शांति है चारों ओर।

इसी का परिणाम है कि पंजाब में जालंधर से 200 किलोमीटर दूर हिमाचल में बसा धौलाधर दिखाई पड़ा। नंगी आंखों से। ये इस बात का सबूत है कि हमने प्रकृति के साथ कितना गलत किया हुआ था। सालों से। जरूर मानव जाति संकट में है, लेकिन प्रकृति को मुस्कुराने का मौका मिला है। शायद हम सीख लें। आगे जीवनदायी प्रकृति की इज्जत करें। उसके निर्देशों को समझें। धौलाधर वाली बात को तो खुद पूर्व क्रिकेटर हरभजन सिंह ने भी ट्वीट किया है। आप समझ सकते हैं कि ये कितना महत्वपूर्ण है। केवल धौलाधर पर्वत श्रृंखला का दिखना ही सुखद नहीं है। बल्कि कई और बातें भी आश्चर्यचकित करने वाली है। विलुप्त होने की कगार पर खड़ी गौरेया दोबारा घरों के मुंडेर पर दिखने लगी है। बहुत सालों बाद लोगों को आर्टिफिशियल अलार्म की जरूरत नहीं पड़ रही।

दिल्ली सहित कई शहरों की हवा भी गजब साफ हुई है। एयर क्वालिटी इंडेक्स 24 से 40 के बीच ही घूम रहा है। याद कीजिये। बीते कुछ महीने पहले ये 400 के पार था। आंखों में जलन थी। दम घुटता था। अगर हमारे पास विवेक है तो समझ सकते हैं कि, हमने कितना गलत किया है अतीत में। अभी बीते कुछ महीने पहले तक। सड़क पर बेतरतीब गाड़ियां। फैक्ट्रियों से निकलता काला धुआं और नदियों में गिरता जहरीला पानी।

हर विपदा कुछ सिखा के जाती है। मानव जाति जरूर संकट में है। लेकिन हालात हमें बहुत बड़ी सीख दे रहे हैं। हमें प्रकृति को समझना होगा। हमारे लिये जरुरी है कि इज्जत करें जीवन में प्रकृति के योगदान की। सम्मान करें उसने जो दिया है उन संसाधनों की। जीयें प्रकृति के निर्देशों पर। ताकि धौलाधर दिखाई देता रहे। चिड़ियों का चहकना जारी रहे। नदियों की निर्झरता बनी रहे। हवा जहरीला ना हो बल्कि चले तो लगे कि कोई गुनगुनाया है। आसमान इतना नीला लगे कि, जैसे आदि है ना अंत। हो सकता है कि हम समझेंगे।

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