योगेंद्र यादव इस समय किसान नेता के रोल में हैं, वह स्वयं को समझते हैं और यह चाहते भी हैं कि लोग उन्हें किसान नेता मानें। यद्यपि वह पूर्व में चुनाव विश्लेषक के रोल में रह चुके हैं। आम आदमी पार्टी के नेता भी रहे हैं और अब अपनी स्वराज पार्टी के सुप्रीमो हैं। यह बात अलग है कि स्वराज पार्टी के अन्य पदाधिकारियों के बारे में, उसकी कार्यकारिणी के बारे में शायद ही कोई जानता हो। और हां, उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी खुद को पालिटिशयन ही बताया है।
फिर भी यदि आप उन्हें किसान नेता नहीं मानते हैं तो यह तो मानना ही पड़ेगा कि वह केद्र सरकार की तरफ से लाएगा तीनों कृषि सुधार कानूनों के विरोधी हैं हीं। इन कानूनों के विरोध में जो आंदोलन चल रहा है, उसके प्रमुख नेताओं में हैं। आंदोलन के संचालन के लिए जो संयुक्त किसान मोर्चा बना है, उसकी नौ सदस्यीय समिति के सदस्य तो हैं ही। लेकिन अभी तक इस आंदोलन में शामिल हरियाणा के किसान संगठनों का आरोप है कि आंदोलन में अलगाववादी विचारधारा के लोग प्रभावी भूमिका में हैं और योगेंद्र यादव इस आरोप को पुष्ट कर रहे हैं।
यादव ने अपने फेसबुक पेज पर दिल्ली दंगों के आरोपितों में से एक उमर खालिद को जन्मदिन की बधाई देते हुए अपने पेज पर पोस्ट करते हुए सवाल उठाया कि तीन सौ दिन बीत जाने के बाद भी उसे जमानत नहीं दी जा रही है, जबकि अश्विनी उपाध्याय को एक दिन में ही जमानत मिल गई। अब योगेंद्र ने यह सवाल सरकार पर उठाया है कि न्यायपालिका पर, यह तो वही जानें, लेकिन उन्होंने कभी आंदोलन में अलगाववादी नारेबाजी करने वालों के विरोध में मौन साधे रखा।
यह भी दिलचस्प बात है कि हरियाणा के किसान संगठन जो आरोप लगा रहे हैं, उसका जवाब देना तो दूर योगेंद्र यादव उनपर कार्रवाई किए जाने की बात कह चुके हैं। लेकिन कैसी कार्रवाई, जब हरियाणा के किसान संगठन यह स्पष्ट कर चुके हैं कि वह संयुक्त किसान मोर्चे से खुद ही अलग हो रहे हैं तो यादव या संयुक्त किसान मोर्चा कार्रवाई क्या करेगा? एक बात और इस समय संयुक्त किसान मोर्चे में इस बात को लेकर रार मची है कि राजनीति की बात करने वाले, चुनाव लड़ने की बात करने वाले मोर्चे में नहीं रहेंगे।
खास तौर से पंजाब के संगठन राजनीति अथवा चुनाव लड़ने से परहेज करने की बात कह रहे हैं। केवल हरियाणा के गुरनाम सिंह चढूनी ही ऐसे हैं जो मिशन पंजाब के तहत वहां चुनाव लड़ने की पैरोकारी कर रहे हैं। उनके साथ भी पंजाब के कुछ संगठन हैं, लेकिन वे उतने प्रभावी नहीं हैं। राकेश टिकैत भी कह रहे हैं कि चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह बात अलग है कि वह हरियाणा के वयोवृद्ध नेता चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जो इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो भी हैं, उनकी अगुआनी करते हैं। लेकिन न तो राकेश टिकैत के खिलाफ कार्रवाई होती है न योगेंद्र यादव के खिलाफ। केवल चढूनी ही साफ्ट टारगेट हैं।
यह बात अलग है कि अलगाववादी तत्वों के खिलाफ चढ़ूनी भी नहीं बोलते। हालांकि चढ़ूनी अलगाववादी तत्वों की तरफदारी भी नहीं करते, जैसी योगेंद्र यादव करते हैं। इसके बावजूद चढ़ूनी संयुक्त किसान मोर्चा से निलंबित हो जाते हैं और यादव बने रहते हैं। एक बात और। संयुक्त किसान मोर्चे के नेता, जिनमें योगेंद्र यादव भी शामिल हैं, पंजाब के किसान नेता रुलदू सिंह मानसा को पंद्रह दिन के लिए निलंबित कर इस बात की पुष्टि पहले भी कर चुके हैं कि वे अलगाववादी तत्वों के प्रति साफ्ट कार्नर रखते हैं। मानसा खालिस्तान समर्थकों की आलोचना के कारण निलंबित किए गए थे।