धनतेरस के पांचवे दिन अर्थात भाई दूज के दिन कायस्थ समाज अपने इष्टदेव श्री चित्रगुप्त जी महाराज की पूजा-अर्चना भी करते हैं। व्यापारियों के लिए यह नए साल की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन कलम-दवात की पूजा की जाती है। मान्यता है कि चित्रगुप्त जी की पूजा करने से साहस, शौर्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है, क्योंकि चित्रगुप्त जी को ज्ञान का देवता भी माना जाता है।
चित्रगुप्त जी की पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में सौदास नामक एक राजा थे। अपने राज्य में वह किसी को भी किसी भी देवता का पूजा-अर्चना, हवन, यज्ञ, धार्मिक समारोह आदि नहीं करने देता था। ऐसा करते कोई पकड़ा जाता तो उसे कठिन दण्ड दिया जाता था। इससे प्रजा बहुत दुःखी थी। प्रजा को निरंतर कष्ट देने के कारण बहुत जल्दी राजा सौदास भी पागल होकर राज पाट छोड़कर इधर-उधर भटकने लगा। एक बार यम द्वितिया के दिन सभी लोग चित्रगुप्त जी की पूजा के लिए मंदिर जा रहे थे। तभी पागल राजा वहां आ धमका। उसे देख सभी लोग वहां से भागने लगे। इस वजह से उनके पूजा की सारी सामग्री वहीं छूट गयी थी।
राजा ने पागलपन में ही पूजा की सारी सामग्री श्रीचित्रगुप्त जी पर चढ़ा दी। इसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु के पश्चात जब राजा के कर्मों का लेखा जोखा किया गया, तो चित्रगुप्त पूजा के अलावा उसने कोई शुभ कर्म ही नहीं किया था। लेकिन राजा ने जो अनजाने में श्रीचित्रगुप्त जी की पूजा-अर्चना की थी, यह देख श्रीचित्रगुप्त जी ने यमदूतों से कहा कि इसे ले जाकर विष्णुलोक में छोड़ दो। उन्होंने राजा को विष्णुलोक भेज दिया।
ऐसे करें चित्रगुप्त की उपासना…
- प्रातः काल पूर्व दिशा में चौक बनाएं।
- इस पर चित्रगुप्त भगवान के विग्रह की स्थापना करें।
- उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं, पुष्प और मिष्ठान्न अर्पित करें।
- उन्हें एक कलम भी अर्पित करें।
- इसके बाद एक सफ़ेद कागज पर हल्दी लगाकर उस पर “श्री गणेशाय नमः” लिखें।
- फिर “ॐ चित्रगुप्ताय नमः” 11 बार लिखें।
- भगवान चित्रगुप्त से विद्या,बुद्धि और लेखन का वरदान मांगें।
- अर्पित की हुई कलम को सुरक्षित रखें और वर्ष भर प्रयोग करें।