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World Environment Day 2021: प्रकृति से मेल, जीवन का खेल; वृक्ष से मिलते हैं हमारे जीवन के लिए उपयोगी नौ सूत्र

World Environment Day

फिलाडेल्फिया के एक अस्‍पताल में पर्यावरण मनोविज्ञान को लेकर एक शोध हुआ था, जिसमें कुछ ऐसे रोगियों को लिया गया जिन्‍हें पित्‍ताशय की बीमारी थी। सभी की ए‍क सी स्थिति थी लेकिन एक समूह के रोगियों के कमरे की खिड़की से हरियाली दिखाई देती थी और दूसरे कमरे की खिड़की से लाल ईंटों की दीवार दिखाई देती थी। शोध में कुछ समय बाद पाया गया कि जिन मरीजों ने हरियाली देखी वे बहुत तेजी से ठीक हुए। उन्‍हें दवाइयां कम देनी पड़ीं। उनका रोग जल्‍दी ठीक हुआ, उसमें जटिलताएं कम आईं। उन्‍हें अस्‍पताल में कम समय तक रहना पड़ा। World Environment Day

उधर, ईंट की दीवार देखने वालों की तबियत देर तक खराब रही। इससे यह पता चला कि हरियाली देखने मात्र से ‘हीलिंग प्रॉसेस’ बढि़या रहा। पर्यावरणीय मनोविज्ञान को लेकर किया गया यह छोटा-सा प्रयोग मानव जीवन पर पड़ने वाले पर्यावरण के महत्‍वपूर्ण प्रभाव को दिखाता है। इस वैज्ञानिक शोध से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि अगर हम अपने घर और दफ्तर, फैक्‍ट्री आदि के बाहर अपने ही स्‍तर पर हरियाली सुनिश्चित कर लें तो इससे स्‍वस्‍थ और सुरक्षित रहने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। World Environment Day

खूबसूरत पलों को जीना है: कई बार मैं लाल बत्‍ती पर भीख मांगने वाले लड़कों को देखता हूं तो सोचता हूं कि वे बत्‍ती हरी होते ही चौराहे के पास बनी हरी घास की लॉन पर चले जाते हैं और छोटे-छोटे खेल खेलने लगते हैं। इसी प्रकार से अच्‍छे घर में रहने वाले बच्‍चे भी बरसात आने पर भीगना चाहते हैं, पानी में छप-छप करना चाहते हैं। अपने हाथ फैलाकर उन बूंदों को महसूस करना चाहते हैं। बारिश से भरे पानी में नाव बनाकर तैराना चाहते हैं। हम बचपन में कितने प्राकृतिक होते हैं, उस पल को जीते हैं, अपने अंदर की ऊर्जा को महसूस करते हैं और प्रकृति से तालमेल बनाकर उसका आनंद लेते हैं। लेकिन धीरे-धीरे हम में समाज की चुनौतियां भर दी जाती हैं और हम सफलता व असफलता के जाल में फंसते चले जाते हैं। जब करियर के प्रति जुनून बढ़ता जाता है तो अपनी दुनिया में खो जाते हैं। नतीजा यह होता है कि प्रकृति के इस आनंद से वंचित रहकर अपने सुकून को समझ नहीं पाते। World Environment Day

आभार है इस कायनात का: हमें प्रकृति में रचे-बसे जीवन को समझना होगा। भौंरा किस खूबसूरती से काम करता है। फूलों का परागण कर निकल जाता है। तितलियां फूलों पर मंडरा कर अपना कर्तव्‍य पूरा कर लेती हैं। हवा में पेड़ों से सफेद रुई जैसे बीज उड़कर एक-जगह से दूसरी जगह जाकर बिखर जाते हैं और मानसून आने पर जब उनको जल मिलता है तो बीज पनप कर पौधे का रूप ले लेते हैं। प्रकृति की यह व्‍यवस्‍था सदियों से चली आ रही है। मैं इस खूबसूरती को देख पाता हूं, सोच पाता हूं क्‍योंकि मैं जीवित हूं। इस जीवन में जिसकी जो भूमिका है वह उसे अदा करे तो सब व्‍यवस्थित रहेगा। हमें भी अपने जीवन में इन चीजों का महत्‍व समझना होगा। जीने के लिए जरूरी है पानी, आक्‍सीजन और भोजन, जो प्रकृति से मिल जाता है लेकिन हम स्‍वयं में उलझ कर कायनात के उद्धार व आभार को समझ नहीं पाते। प्रकृति ने, धरती मां ने सभी के सुखी व शांत जीवन के भरपूर स्रोत दिए हैं। जब चीजें व्‍यवस्थित चल रही होती हैं तो हम उसे हल्‍के में ले लेते हैं। जैसे जब तक घुटने में दर्द नहीं हो रहा हो, तब तक उस दर्द का एहसास नहीं होता है लेकिन जब घुटने में दर्द हो जाता है तो उस दर्द से कठिनाई महसूस करते हैं हम। आखिर हम उस चरम तक क्‍यों पहुंचें कि हमारे पास से हमारी कोई चीज चली जाए। World Environment Day

वृक्ष से मिलते है हमारे जीवन के लिए उपयोगी नौ सूत्र

  1. जीवन हमेशा चलता रहता है। यदि उसे जड़ से उखाड़ें, तभी वह मृत होता है। मैंने कई बार सोचा कि पेड़ों में पत्तियां कब आ जाती हैं पता ही नहीं चलता। खामोशी के साथ हौले से, सूक्ष्‍मता से पत्तियों के आवरण से ढक जाता है। इससे संदेश मिलता है कि जीवन की ऊर्जा को भूलकर जब हमारा मन व शरीर रास्‍ते से भटक जाते हैं तो पेड़ से निरंतर काम करते रहने की सीख ली जा सकती है।
  2. अपना स्‍वभाव कभी नहीं बदलना। तेज हवा के झोंके में पेड़ बुरी तरह से हिल जाता है, झुक जाता है लेकिन आंधी के गुजर जाने के बाद पेड़ सीधा हो जाता है। इसी तरह हमें भी किसी भी परिस्थिति में अपना स्‍वभाव नहीं बदलना चाहिए। चाहे विषम परिस्थितियां हों या गहन संकट। अपने अंदर के शांति के भाव को हमें उसी तरह से बनाए रखना चाहिए। अपना स्‍वभाव ही हमें श्रेष्‍ठ बनाता है। जैसे को तैसे की भावना को अपने मन में नहीं रखना चाहिए।
  3. जितनी हमारी जरूरतें हैं उतना ही उपभोग करें हम। पेड़ को जितनी जरूरत होती है उतना ही पानी और लवण लेता है वह। पानी ज्‍यादा होने पर या मिट्टी में किसी विशेष अवयव के ज्‍यादा होने पर वह गल जाता है या सूख जाता है। हम भी अपने हिसाब से तय करें कि हमारी जरूरतें कितनी हैं।
  4. आपसी सहयोग का उदाहरण हमें बीज के वितरण और उसके पनपने से मिलता है। हम इस आपसी सहयोग को सीख सकते हैं कि विश्‍व में हर तरह की प्रगति आपसी सहयोग से हुई है और यह आम जीवन में भी संभव है।
  5. लेने से ज्‍यादा देना। आप देखिए कि पेड़ सूरज की किरणें और थोड़ा पानी लेते हैं और फल-फूल सहित हमें इतना कुछ देते हैं कि हम इसकी व्‍याख्‍या नहीं कर सकते। इनसे अनेक जीव-जंतु व इंसान का भरण-पोषण होता है। उनकी भूख मिटती है। बड़ा वही होता है जो देता ज्‍यादा है।
  6. कितनी विविधता समाई है इनमें। प्रकृति कितनी सुंदरता से विविधता में एकता का नमूना पेश करती है।कितनी तरह की वनस्‍पतियां, जीव-जंतु हैं लेकिन सब प्रकृति के नियमों का पालन कर अपना काम करते हैं। इस सिद्धांत को हमें हमें अपने परिवार और संस्‍थान में भी अपनाना चाहिए।
  7. रचनात्‍मकता भरी है इनमें। पेड़ हरा होता है लेकिन जब उसमें फूल खिलते हैं तो कितने रंगों का समागम होता है। इतनी रचनात्‍मकता की हम कल्‍पना भी नहीं कर सकते। हम भी जो कार्य करें, उसमें फूल की तरह हमारी रचनात्‍मकता संसार को दिखाई दे तो जीवन सफल है।
  8. अपने आप निरंतर प्रगति करना। कई बार हम हीन भावना में फंस जाते हैं। मन में तुलनात्‍मक भाव आ जाता है। हमारा अभिमान और अहंकार हमें उलझा देता और हम ईर्ष्‍या करने लगते हैं। यह सब मिलकर हमारे जीवन को झकझोर देते हैं लेकिन पेड़ को देखिए वह बिना किसी से तुलना करते हुए अपना काम निरंतर करते रहता है। अपनी क्षमता के अनुसार लंबा होता है, अपनी शाखाओं को बढ़ाता रहता है और अपनी मस्‍ती में बढ़ता है। अगर ऐसा हो जाए तो संसार कितना खूबसूरत हो जाएगा।
  9. वृक्ष पुराने और नये का संगम है। पेड़ जानता है कि हर चीज की एक सीमा होती है, एक आयु होती है। कैसे वह अपनी पत्तियां छोड़ता है और नयी पत्तियों का जन्‍म होता है। हम मनुष्‍य पुरानी बातों को पकड़े रहते हैं, नये विचारों को अपने भीतर आने नहीं देते। किसी के लिए जो सोच बना लेते हैं उसे बदलने के लिए राजी नहीं होते। अरे, यह सोच क्‍या चीज है, हमें इस क्षण को जीना है बस। पेड़ जैसा बनने पर हम हमेशा सुख का अनुभव करेंगे।

प्रकृति की जरूरत समझें हम : पद्मश्री नृत्‍यांगना डा. शोवना नारायण ने बताया कि अगर मैं हिंदू पौराणिक कथाओं की बात करूं तो उसमें हमें प्रकृति के साथ जुड़ने का संदेश दिया गया है। हमें एक-दूसरे का सम्‍मान करना चाहिए। प्रकृति में शामिल हर एक चीज की हमें जरूरत है। पानी के नीचे के जीवन की जितनी जरूरत है, उतनी ही पानी के ऊपर के जीवन की भी है। आकाश की अपनी जरूरत है। हमें इनकी रक्षा करनी चाहिए लेकिन अगर कोई रक्षक ही भक्षक हो जाए तो क्‍या किया जाए? जानवर का जब पेट खाली रहता है तब वह अपनी भूख मिटाने के लिए शिकार करता है लेकिन हम वैसे भी नहीं हैं। अगर हमारा पेट भरा हो तो भी हम प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं। हमारी भूख जाती ही नहीं है। हमें इस जरूरत को गंभीरता से समझना होगा। प्रकृति में सभी तत्‍वों का अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान है और हर चीज की बराबर आवश्‍यकता है। हमें इन सबके बीच संतुलन बनाना चाहिए था लेकिन हमने इस संतुलन को बिगाड़ा है।

आज हम सब इसका परिणाम भुगत रहे हैं। कोरोना महामारी आई है। तूफान आ रहे हैं। प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गई हैं। प्रकृति हमें बार-बार चेतावनी भी देती है कि जितना आप संतुलन बनाएंगे, सुखी रहेंगे। एक कविता है द्रौपदी चीर हरण की, जिसमें दुशासन को संबोधित किया गया है और कहा गया है दुशासन द्रौपदी का चीर हरण मत करो। आज के दुशासन हम सब लोग हैं और द्रौपदी धरती है। यहां प्रश्‍न एक-दूसरे के प्रति सद्भावना का है। प्रकृति संवेदनशीलता मांगती है। धरती को हम मां कहते हैं लेकिन उस मां को कितनी क्षति पहुंचाते हैं, हमने कभी सोचा है। फिर भी वह बहुत धैर्य से हमें समेटे हुए है। हमें संकल्‍प लेना होगा कि हम प्रकृति के प्रति सद्भावना रखें। सागर कहता है कि गंभीर मन और गहराई से सोचा जाए। धरती धैर्य व संयम की प्रतीक है, आकाश बढ़े मन और उदारता का उदाहरण पेश करता है। लेकिन हमने कुछ तो गलतियां की हैं तभी यह आपदा आई है।

रंग लाएंगी छोटी-छोटी कोशिशें : पर्यावरणविद, लेखक, कार्टूनिस्‍ट व चित्रकार आबिद सुरती ने बताया कि पहले हमारे संस्‍कारों में ही प्रकृति का सम्‍मान था। प्रकृति को बचाने की हर छोटी कोशिश परंपरा थी हमारे घरों की। अपनी ही एक मिसाल देता हूं। घर पर कोई मेहमान आता था तो मेरी अम्‍मी बाहर से आए मेहमानों को पहले ट्रे लाकर खाली ग्‍लास देतीं और फिर जग में पीने का पानी लातीं और जिसको जितना चाहिए उतना पानी दे देतीं ताकि एक बूंद भी बेकार न जाए। अब मुझे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि भरे पानी का ग्‍लास फेंक दिया जाता हैं। यहां तक कि मैं पानी बचाओ के सम्‍मेलन में जाता हूं तो वहां हमें बोतल बंद पानी दिया जाता है। सम्‍मेलन के बाद यह देखकर मुझे बहुत दुख होता हैं कि जिन्‍होंने पानी और पर्यावरण बचाने के लिए इतने बड़े-बड़े भाषण दिए, उन्‍होंने एक घूंट पानी पीकर बाकी पानी और बोतल फेंक दी होती है। वे अंदर पानी बचाने की बात करके आते हैं और बाहर पानी बर्बाद कर देते हैं। तो सिर्फ बातें करने से कुछ नहीं होगा। खुद के स्‍तर पर भी कोशिश करनी होगी। मैं घर-घर जाकर पानी बचाता हूं इससे लोग प्रभावित होते हैं।

दरअसल, पर्यावरण को हमने तवज्‍जो नहीं दी। आज हम आक्‍सीजन, आक्‍सीजन कर रहे हैं लेकिन जो पेड़ हमें आक्‍सीजन देते हैं उनको हमने काट डाला। अाक्‍सीजन के लिए हम दस गुना पैसे दे रहे हैं। हमारे ‘ड्रॉप डैड फाउंडेशन’ के पानी बचाओ अभियान की कोशिशों से यह तो फायदा हुआ कि आज यह अभियान सिर्फ भारत में नहीं, पूरी दुनिया में पहुंच गया है। टि्वटर पर संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के सचिव ने दो बार मेरे काम को आगे बढ़ाने की अपील की है। मेरे कहने का आशय यह है कि सिर्फ सवाल करने का कोई औचित्‍य नहीं है, बल्कि यह देखें कि आप क्‍या कर रहे हैं? कम से कम एक पौधा ही लगाइए। पौधा नहीं लगा सकते, तो चिडि़यों को दाने तो डाल सकते हैं?

आइए प्रकृति से प्‍यार का संकल्‍प लें : समाजसेवी व पर्यावरण कार्यकर्ता डा. गौरव ग्रोवर ने बताया कि हमें प्‍लास्टिक का प्रयोग भी कम करना चाहिए। सिंगल यूज प्‍लास्टिक से पर्यावरण को बचाना चाहिए। बाजार में अपने थैले लेकर जाएं। बैंबू के टूथब्रश और पानी के लिए तांबे की बोतलों का प्रयोग करें। समुद्र में प्‍लास्टिक जाता है, जिसे समुद्री जीव निगल लेते हैं और इसके जहरीले अवयव पानी को प्रदूषित करते हैं। कई लोग घर के लुक के लिए पेड़ हटा देते हैं। जितनी हरियाली होगी, उतना ही प्रदूषण कम होगा और हवा में आक्‍सीजन मिलेगी। प्रकृति के साथ प्‍यार का संकल्‍प करने की जरूरत है।

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