क्या ममता के सुझाव पर अमल करेगा INDIA गठबंधन? किस दल के क्या हैं तेवर

उत्तर भारत में कांग्रेस की पराजय को देखते हुए संभवतः पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता को PM चेहरा बनाये जाने का प्रस्ताव रखा. ममता बनर्जी ने PM चेहरे के लिए जब मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव रखा तब अखिलेश यादव चुप रहे थे.

हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी हार से विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A अब उससे किनारा करने लगा है. कांग्रेस और गांधी परिवार अब उसके लिए बोझ बनता दिख रहा है. यही वजह है कि इंडिया गठबंधन के नेता अब कांग्रेस को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हैं. गठबंधन के सभी नेता कांग्रेस में नेहरू- गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता पर दांव लगाने की जुगत में हैं. गठबंधन की नेता ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को विपक्षी दलों की तरफ़ से PM पद का उम्मीदवार बनाये जाने का प्रस्ताव रखा है. तत्काल अरविंद केजरीवाल ने इस प्रस्ताव का समर्थन कर दिया.

विपक्षी गठबंधन इंडिया की मंगलवार को दिल्ली के अशोका होटल में बैठक हुई थी. बैठक में राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव, जदयू नेता नीतीश कुमार, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल समेत 28 दलों के नेता शामिल हुए थे.

संसद को विपक्ष विहीन बनाने की कवायद

विपक्ष के गठबंधन की यह चौथी बैठक थी. इस बैठक को इसलिए भी बुलाया गया क्योंकि सांसद से विपक्ष के 141 सदस्य निलंबित कर दिये गए हैं. विपक्ष का आरोप है कि यह कार्रवाई एक तरह से संसद को विपक्ष विहीन बनाने की कवायद है. इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में सांसदों का निलंबन कभी नहीं हुआ है. इसके लिए इंडिया गठबंधन 22 दिसंबर को विरोध मार्च निकालेगा. विपक्षी गठबंधन की इस चौथी बैठक में सभी 28 दल शामिल टा थे.

इसके पहले इंडिया गठबंधन की तीन बैठकें हो चुकी हैं. पटना, बंगलौर और मुंबई के बाद 19 दिसंबर को दिल्ली में इंडिया गठबंधन के दलों के नेता मिले. हालांकि इस गठबंधन के नेताओं में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के दौरान दरारें आई थीं. ख़ासकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच मतभेद बढ़े थे.

ममता बनर्जी ने अखिलेश यादव से की मुलाकात

इस गठबंधन की सूत्रधार ममता बनर्जी ने इसीलिए दिल्ली बैठक के पहले सपा नेता अखिलेश यादव से मुलाक़ात की. उन्होंने अखिलेश यादव से मिल कर उनका हाल-चाल लिया. विधानसभाओं के चुनाव के दौरान कांग्रेस के कुछ नेताओं ने अखिलेश यादव को बुरा-भला कहा था.

ख़ासकर मध्यप्रदेश में कांग्रेस के CM फेस कमल नाथ और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने. इस वजह से अखिलेश इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के रवैये से ख़फ़ा हो गये थे.

सपा का कांग्रेस से रूठा रहना नुकसानदेह

ममता बनर्जी अच्छी तरह समझती हैं कि 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सबसे बड़े विपक्षी दल सपा का कांग्रेस से रूठा रहना नुकसानदेह है. वहां पर ममता बनर्जी की टीएमसी या गठबंधन के अन्य किसी भी दल का कोई आधार नहीं है. सिर्फ़ कांग्रेस का ही वहाँ कुछ वोट बैंक है. उधर भाजपा ने मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर यह संकेत दिया है कि उसके पास भी यादव नेता हैं.

लोकसभा चुनाव की रणनीति

2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने के मकसद से कांग्रेस ने अलग से एक 5 सदस्यीय नेशनल एलायंस कमेटी भी बनायी है. इस कमेटी में अशोक गहलोत, सलमान ख़ुर्शीद, भूपेश बघेल और मोहन प्रकाश को रखा गया है. संयोजक मुकुल वासनिक को बनाया गया है. कांग्रेस हिंदी बेल्ट के राज्यों में फिसड्डी ज़रूर साबित हुई हो पर वह जनाधार से शून्य नहीं है. इसीलिए इंडिया गठबंधन के नेताओं को पता है कि बगैर कांग्रेस की मदद के विपक्ष परस्पर जुड़ नहीं सकता.

मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव

उत्तर भारत में कांग्रेस की पराजय को देखते हुए संभवतः ममता बनर्जी ने परिवार के बाहर के किसी नेता को PM चेहरा बनाये जाने का प्रस्ताव रखा. ममता बनर्जी ने PM चेहरे के लिए जब मल्लिकार्जुन खरगे के नाम का प्रस्ताव रखा तब अखिलेश यादव चुप रहे थे. मल्लिकार्जुन खरगे ने अपने नाम का प्रस्ताव होने पर कहा, पहले चुनाव होने दो, जब बहुमत मिलेगा, तब यह फ़ैसला किया जाएगा.

राज्यवार सीट शेयरिंग का मसला

अखिलेश यादव ने कहा कि राज्यवार सीट शेयरिंग का मसला पूरा हो जाने के बाद हम भाजपा को हराने के लिए जुट जाएंगे. मगर मुद्दा यह है कि सीट शेयरिंग आसान नहीं है. कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में एक लोकसभा सदस्य है और विधानसभा में मात्र दो लोग. ऐसे में किस आधार पर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में सीट मांगेगी. यदि उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन के दल एकजुट रहे तो सबसे अधिक लाभ सपा को मिलेगा. क्योंकि गैर भाजपा चेहरे के तौर पर अकेले सपा होगी.

वहीं बसपा अब पिछले चुनाव की तुलना में बहुत अधिक कमजोर हुई है. दानिश अली को पार्टी से निकाल देने की वजह से उसका मुसलमानों के बीच आधार और कम हुआ है. दलितों में भी अब चंद्रशेखर रावण की हैसियत बढ़ी है, ख़ासकर पश्चिम में. इसलिए संभवतः 2024 के लोकसभा चुनाव में आमने-सामने की लड़ाई में भाजपा के समक्ष सपा ही होगी.

PM के चेहरे पर अखिलेश यादव की चुप्पी

इसीलिए PM के चेहरे पर अखिलेश यादव चुप्पी साध गये. उधर भाकपा (CPI) के महासचिव डी. राजा ने भी कहा है, कि PM चेहरे पर चर्चा करने का यह समय नहीं है. पहले हमें सदन की चिंता करनी है. सदन से 141 सदस्य निलंबित हैं. इस बात का भारी विरोध होना चाहिए. उन्होंने कहा कि पूरे देश में इस कार्रवाई के विरोध में प्रदर्शन किया जाएगा. इसलिए इंडिया गठबंधन की बैठक में PM चेहरे को लेकर कोई भी अहम बात नहीं हुई.

माकपा (CPM) सचिव सीताराम येचुरी ने बताया है कि बैठक में EVM का मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया और चुनाव आयोग के समक्ष इसे रखा जाएगा. EVM से छेड़छाड़ और इतनी बड़ी संख्या में सांसदों का निलंबन बहुत बड़े मुद्दे हैं. इसलिए मीटिंग में यही दोनों मुद्दे छाये रहे. अलबत्ता लोकसभा चुनाव जिस तरह करीब आ रहे हैं, उसके मद्देनज़र 31 दिसंबर तक सीट शेयरिंग का मुद्दा भी हल कर लेने की योजना बनी है.

इंडिया के कुनबे में फिर से दरार

ममता बनर्जी द्वारा खरगे का नाम PM चेहरे के लिए आगे लाने के चलते इंडिया के कुनबे में फिर से दरार पड़ती नज़र आ रही है. अखिलेश यादव चुप हैं और जदयू ने बैठक से पहले ही नीतीश कुमार का नाम PM पद के लिए प्रस्तावित करने का फ़ैसला किया था. लालू यादव भी नीतीश कुमार को बिहार से बाहर करने के लिए जोर मार रहे हैं. जब नीतीश का नाम PM पद के लिए आएगा, तब ही उनके बेटे बिहार में राज कर पाएंगे. इसलिए PM पद के लिए इंडिया गठबंधन का चेहरा बहुत महत्त्व का है.

कांग्रेस के अंदर भी सिर फुटौव्वल

खुद कांग्रेस के अंदर भी सिर फुटौव्वल शुरू हो जाएगी. परिवार समर्थक तो विरोध में होंगे ही अन्य प्रतिद्वंदी भी आगे आएंगे. मल्लिकार्जुन खरगे की स्थिति वही हो जाएगी, जो 1946 में मौलाना आज़ाद की थी. आज़ाद कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ना नहीं चाहते थे. उधर गांधी जी चाहते थे नेहरू अध्यक्ष बनें. क्योंकि जो अध्यक्ष बनता उसी को अंग्रेज वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन शासन की कमान सौंपते. कुछ वैसा ही महौल है. किसको पोस्टर ब्वॉय बनाया जाएगा.

राहुल के इंतजार का धैर्य

दूसरी तरफ़ राहुल गांधी भी 53 के हो चुके हैं. जिस तरह कांग्रेस रेस में पिछड़ रही है, उससे नहीं लगता कि राहुल अब और इंतजार करने का धैर्य रखेंगे. वैसे भी 2009 का मौका वे गंवा चुके हैं. ऐसे में यदि 2024 में भी 2009 का मौका वे गंवा चुके हैं. ऐसे में यदि 2024 में भी कांग्रेस को सीटें कम आईं तो भविष्य में इंडिया की तर्ज़ पर किसी भी विपक्षी गठबंधन के बन पाने की संभावना भी कम है. अतः नहीं लग पा रहा, कि वे और उनके समर्थक खरगे को चेहरा स्वीकार कर लेंगे!

खरगे के नाम पर सहमति

ममता बनर्जी को अपना बंगाल बचाना है और अरविंद केजरीवाल के ऊपर ED का ख़तरा भी मंडरा रहा है, साथ ही दिल्ली को बचाये रखना भी उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है. इसलिए सिवाय TMC और AAP के और कोई भी दल इस खरगे के नाम पर सहमति देता नहीं दिख रहा है.

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