भारत में लगभग 2 महीने से अधिक समय तक सख्त लॉकडाउन (LOCKDOWN) रहने के बावजूद CORONAVIRUS के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और इससे संक्रमितों की संख्या 3 लाख के पार पहुंच चुकी है। इसके साथ ही, यह दुनिया में COVID-19 से प्रभावित देशों की सूची में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। खासकर, देश की राजधानी दिल्ली और औद्योगिक राजधानी मुंबई में कोरोना अपने चरम पर है। ऐसे में क्या निकट भविष्य में दिल्ली और मुंबई का हाल अमेरिका के न्यूयॉर्क जैसा हो जाएगा? इस विषाणु पर लगातार शोध और सर्वे करने वाले विशेषज्ञ तो फिलहाल यही कह रहे हैं।
कुल मिलाकर देखें, तो कोरोना वायरस पर काबू पाने को लेकर भारत का प्रदर्शन उतना बुरा नहीं है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 3 लाख पार कर गयी है और वह दुनिया में सर्वाधिक प्रभावित देशों की सूची में अमेरिका, ब्राजील और रूस के बाद चौथे नंबर पर है। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर कौशिक बासु का कहना है कि भारत प्रति व्यक्ति संक्रमण के हिसाब से दुनिया में 143वें स्थान पर है।
मीडिया में आ रही रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायरस की बढ़ने की दर कम हुई है और संक्रमण के दोगुना होने का समय बढ़ा है, लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद जैसे सबसे अधिक प्रभावित शहरों में मामले तेजी बढ़ रहे हैं और लोगों के अस्पताल में भर्ती होने और मृत्यु दर भी बढ़ रही है। COVID-19 के मरीजों का इलाज कर रहे एक फिजिशियन ने कहा कि अगर इसी तरह संक्रमण बढ़ता रहा, तो इन शहरों की हालत न्यूयॉर्क जैसी हो जाएगी।
भारत के मुंबई, दिल्ली और अहमदाबाद से भयावह रिपोर्टें आ रही हैं।अस्पतालों में मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा और वे दम तोड़ रहे हैं। एक मामले में तो मरीज के टॉयलेट में मरने की भी खबर आयी है। लैबोरेटरीज में क्षमता से ज्यादा नमूने आ रहे हैं, जिससे टेस्ट में देरी हो रही है या टेस्ट पेंडिंग हैं। हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के निदेशक आशीष झा ने कहा कि मैं भारत में बढ़ रहे मामलों से चिंतित हूं। ऐसा नहीं है कि कोरोना चरम पर पहुंचने के बाद खुद-ब-खुद कम हो जाएगा। उसके लिए आपको कदम उठाने होंगे। झा ने कहा कि भारत हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने के लिए 60% आबादी के संक्रमित होने का इंतजार नहीं कर सकता। इससे लाखों लोगों की मौत होगी और यह कोई स्वीकार्य हल नहीं है। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में बायोस्टैटिक्स के प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी कहती हैं कि भारत में अभी कोरोना की कर्व में गिरावट नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि हमें चिंता करनी चाहिए, लेकिन यह चिंता घबराहट में नहीं बदलनी चाहिए।
भारत का केस फैटेलिटी रेट (CFR) यानी कोविड पॉजिटिव मरीजों की मौत का अनुपात करीब 2.8% है, लेकिन संक्रमण के आंकड़ों के साथ-साथ इसमें भी स्पष्टता नहीं है। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन में गणितज्ञ एडम कुचारस्की का कहना है कि कुल मामलों और कुल मौतों में संबंध निकालने से पूरी तस्वीर साफ नहीं होती है। इसमें अनरिपोर्टेड केस शामिल नहीं हैं।
मीडिया में आ रही विशेषज्ञों की राय के अनुसार, महामारी के इस चरण में सीएफआर (CFR) देखने से सरकारों को आत्ममुग्धता हो सकती है। मुखर्जी ने कहा सीएफआर एक भ्रम है। अगर मैं रिपोर्टेड केस और मृतकों की संख्या पर विश्वास कर भी लूं और अगर हम क्लोज मामलों को मृतकों की संख्या से डिवाइड करें, तो मृत्यु दर का प्रतिशतता बहुत अधिक आएगा।
भारत को इसे पैचवर्क पेनडेमिक की तरह देखना चाहिए। यानी कि जब संक्रमण देश में फैलता है, तो यह विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग ढंग से प्रभावित करता है। अटलांटिक मैगजीन में साइंस राइटर एड यंग के अनुसार, किसी महामारी में कई फैक्टर काम करते हैं। जैसे सोशल डिस्टेंसिंग, टेस्टिंग क्षमता, जनसंख्या घनत्व, आयु संरचना आदि।
भारत में लाखों प्रवासियों ने देश के कोने-कोने में कोरोना संक्रमण फैलाया। ओड़िशा में 80% मामलों के लिए प्रवासी कामगार ही जिम्मेदार हैं। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल के वस्कुलर सर्जन अंबरीश सात्विक ने कहते हैं कि भारत में इस महामारी को अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग ढंग से देखने की जरूरत है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत ने शुरुआत में ही लॉकडाउन करके अच्छा काम किया। डॉ आशीष झा ने कहा कि किसी भी देश ने इतनी जल्दी लॉकडाउन नहीं किया। इससे सरकार को कोरोना के खिलाफ जंग के लिए उपाय करने का समय मिल गया। इससे कई मौतों को टाला जा सका है, लेकिन यह चार घंटे के नोटिस पर हुआ और इससे प्रवासियों में घर जाने की होड़ लग गयी।
यह बहस का मुद्दा है कि सरकारों ने लॉकडाउन के दौरान अपनी तैयारियों को दुरुस्त किया या नहीं, लेकिन केरल और कर्नाटक ने गुजरात, महाराष्ट्र और दिल्ली से बेहतर काम किया। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत ने अच्छी तैयारी की होती, तो मुंबई, अहमदाबाद और दिल्ली में ऐसी हालत नहीं होती।
देश में अब भी कोरोना वायरस की जांच के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, अब देश में अब रोज 1.5 लाख टेस्ट हो रहे हैं, लेकिन इस मामले में भारत अब भी बाकी देशों से काफी पीछे है। कई लोगों का मानना है कि भारत को पहले ही अपनी टेस्टिंग क्षमता बढ़ा देनी चाहिए थी, क्योंकि देश में पहला मामला 30 जनवरी को ही आ गया था।
विशेषज्ञों की मानें, तो दिल्ली में आने वाले दिनों में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है। इसे देखते हुए सरकार ने निजी अस्पतालों को COVID-19 के मरीजों के लिए ज्यादा बेड की व्यवस्था करने को कहा है, लेकिन विशेषज्ञों को इसमें संदेह है। डॉ सात्विक ने कहा कि आपको नया इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए। आपको क्षमता बढ़ाने की जरूरत है। विशेषज्ञों का कहना है कि महज अफसरों को इधर-उधर करने और काम चलाऊ नीति से कोरोना संकट से निपटने में मदद नहीं मिलेगी।