Bihar Politics: बिहार में शुरू हुई राजभवन की दौड़, क्या फिर दोहराया जाएगा इतिहास?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजभवन जाना और उनके पीछे-पीछे बीजेपी सुशील मोदी के पहुंचने के बाद राज्य में सियासी हलचल एक बार फिर से बढ़ गई है. कहीं ऐसा तो नहीं है कि नीतीश कुमार 2024 की सियासी हवा को भांप गए हैं.

बिहार की सियासत में नीतीश कुमार दो दशक से सत्ता के धुरी बने हुए हैं. वो जब चाहते हैं तब एनडीए के साथ हो जाते हैं और जब चाहते हैं महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं. आरजेडी नेता और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव विदेश में हैं, इस बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अचानक राजभवन पहुंचकर राज्यपाल से मिलना और उनके पीछे-पीछे बीजेपी के दिग्गज नेता सुशील मोदी का राजभवन जाना, सियासी हलचल को बढ़ा रहा है. इतना ही नहीं जेडीयू अपने कोटे के मंत्रियों से लेकर विधायकों तक के साथ मंथन कर रही है, तो क्या बिहार में सियासी इतिहास दोहराने की पटकथा तो नहीं लिखी जा रही है?

बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए से नाता तोड़कर नीतीश कुमार को महागठबंधन में एंट्री किए एक साल होने जा रहा है. पिछले साल अप्रैल के महीने से बीजेपी के साथ जेडीयू रिश्ते छत्तीस के हो गए थे और मोदी सरकार की बैठकों से नीतीश कुमार ने खुद को दूर कर लिया था. अगस्त आते-आते नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ सरकार बना ली, लेकिन अचानक बिहार की राजनीति में एक बार फिर से उसी तर्ज पर नीतीश कुमार की सियासत देखी जा रही है.

2022 की तरह ही सियासी हलचल राज्य में हो रही है, जिसके चलते कई तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. 2017 में भी ऐसी ही हलचल के बाद वह महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल हो गए थे और उससे पहले बीजेपी ने पीएम पद के लिए नरेंद्र मोदी को चेहरा बनाया था तो 2013 में भी उन्होंने ऐसे ही कदम उठाया था और एनडीए से नाता तोड़ लिया था. यही वजह है कि बिहार की सियासत त्रिकोणीय बनी हुई है, जिसमें नीतीश की भूमिका अहम हो जाती है.

राजभवन जाना संयोग या कोई सियासत?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुधवार को अचानक राजभवन पहुंचे तो उनके पीछे बीजेपी नेता सुशील मोदी भी वहां पहुंच गए. नीतीश कुमार-सुशील मोदी का आगे-पीछे राजभवन पहुंचना और उनके बीच हुई मुलाकात, सिर्फ एक संयोग था या फिर किसी तरह की कोई सियासत छिपी है. इसे लेकर बिहार में तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं. सुशील मोदी ने इसे सिर्फ संयोग बताया, लेकिन नीतीश कुमार की तरफ से कोई सफाई या टिप्पणी नहीं आई.

हालांकि, छह साल पहले में भी बिहार में इसी तरह कवायद हुई थी. 2017 में नीतीश महागठबंधन से नाता तोड़कर एनडीए में दोबारा से आए थे तो उसकी पटकथा राजभवन में ही लिखी गई थी. उस समय सुशील मोदी और नीतीश एक साथ राजभवन पहुंचे थे, जहां नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद एनडीए के साथ सरकार बना ली थी. सुशील मोदी के साथ नीतीश के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं और दोनों के राजभवन जाने ने नीतीश के पाला बदलने वाली छवि को फिर से हवा दे दी.

विधायकों के साथ मंथन का क्या मतलब?
सीएम नीतीश कुमार ने जेडीयू विधायकों को मिलने के लिए बुलाया है, वह एक-एक विधायक से सीधे बात करेंगे. जेडीयू के सभी विधेयकों को 10-10 मिनट का सीएम से मुलाकात का समय दिया गया है. वह जेडीयू विधायकों के साथ एमएलसी से भी मिलेंगे. विधायकों के साथ बैठक और मंथन नीतीश कुमार क्यों कर रहे हैं और वह क्या बातचीत करना चाहते हैं? जेडीयू में एक धड़ा शुरू से ही आरजेडी के साथ सरकार बनाने के समर्थन में नहीं रहा है, जिसे लेकर समय-समय पर पार्टी में आवाज उठती रही है. ऐसे में नीतीश के विधायकों के साथ मंथन करने के सियासी मायने निकाले जाने लगे हैं, क्योंकि पिछले साल भी उन्होंने ऐसे ही विधायक से बारी-बारी बुलाकर मुलाकात की थी और फिर बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था.

तेजस्वी और ललन सिंह विदेश में दौरे पर
बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव अपने परिवार से साथ विदेश दौरे पर हैं, तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी विदेश में हैं. तेजस्वी अपनी पत्नी और बेटी के साथ मलेशिया, इंडोनेशिया के दौर पर हैं. ऐसे में उनके विदेश रहते हुए नीतीश कुमार अपने विधायकों से मिल रहे हैं और राजभवन जा रहे हैं, जहां सुशील मोदी से मिल रहे हैं. इसीलिए सियासी कयास लगाए जाने लगे हैं, क्योंकि नीतीश कुमार ऐसे ही कुछ नहीं करते बल्कि उसके पीछे सोची-समझी रणनीति होती है. पिछले साल नीतीश ने जब पाला बदला था तो शाहनवाज हुसैन दिल्ली में थे और उन्होंने कहा कि जब फ्लाइट में बैठा तो मंत्री था और फ्लाइट से उतरा तो सरकार ही गिर गई.

कांग्रेस-आरजेडी का क्या बढ़ रहा दबाव
नीतीश कुमार ने पिछले साल महाठबंधन के साथ सरकार बनाई थी, उसके बाद आरजेडी के साथ बेहतर तालमेल नहीं बन पा रहा है. उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू से अलग होकर अपनी पार्टी बना ली है तो जीतनराम मांझी की पार्टी ने भी खुद को महागंठबंधन से अलग कर लिया है. आरजेडी नेताओं की कोशिश नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में भेजने की है, जिसे लेकर कई बार सार्वजनिक रूप से बयान दिया जा चुका है.हालांकि, नीतीश कुमार साफ कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद की रेस में वो शामिल नहीं है. इसके बावजूद आरजेडी नेता नीतीश को क्यों दिल्ली की सियासत में भेजना चाहते हैं ताकि बिहार में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सके.

2024 की सियासी हवा तो नहीं भांप गए
नीतीश कुमार ने चंद रोज पहले बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता के लिए पटना में बैठक की थी, लेकिन उसके बाद ही विपक्षी नेताओं के बीच जुबानी जंग जारी है. आम आदमी पार्टी ने खुद को अलग कर लिया है तो ममता बनर्जी बंगाल में लेफ्ट को लेने के पक्ष में नहीं है. पीएम मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव का एजेंडा सेट करना शुरू कर दिया है.बीजेपी यूसीसी लेकर राम मंदिर तक का दांव चल रही है, जिसे दम पर तीसरी बार सत्ता में उसकी वापसी की उम्मीदें भी बन रही हैं. ऐसे में क्या नीतीश कुमार 2024 के लोकसभा चुनाव की हवा को भांप गए हैं, जिसके चलते ही उनकी सियासी बेचैनी बढ़ गई है और फिर से एक बार सियासी इतिहास दोहराना तो नहीं चाहते हैं?

बिहार के इन 2 हजार लोगों का धर्म क्या है? विश्व का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड कौन सा है? दंतेवाड़ा एक बार फिर नक्सली हमले से दहल उठा SATISH KAUSHIK PASSES AWAY: हंसाते हंसाते रुला गए सतीश, हृदयगति रुकने से हुआ निधन India beat new Zealand 3-0. भारत ने किया कीवियों का सूपड़ा साफ, बने नम्बर 1