चीन ने फिर दी धमकी, अब क्या करेगा भारत?

लद्दाख के पैंगोंग इलाके में मात खाने के बाद चीन की सरकारी मीडिया भारत पर भड़की हुई है। जिनपिंग की पिठ्ठू ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में भारत को धमकाते हुए लिखा है कि भारतीय सेना चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) से खुद की रक्षा नहीं कर सकती है। इतना ही नहीं, डींगे हांकते हुए ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि अगर भारत चीन के साथ युद्ध करता है तो अमेरिका भी उसकी सहायता नहीं करेगा।

ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा कि चीन की सेना के पास देश की हर इंच की सुरक्षा के लिए पर्याप्त शक्ति मौजूद है। इसलिए, अभी नई दिल्ली को एक मजबूत चीन का सामना करना पड़ रहा है। उसने यह भी कहा कि चीनी लोगों ने भारतीय उकसावे को लेकर सरकार के प्रति अपना समर्थन दर्शाया है। इसलिए चीन के क्षेत्र में अतिक्रमण की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

सरकारी मीडिया ने आगे लिखा कि चीन भारत से कई गुना ज्यादा मजबूत है। भारत का चीन के लिए कोई मुकाबला नहीं है। हमें किसी भी भारतीय का भ्रम तोड़ना है कि वह अमेरिका जैसे अन्य शक्तियों के साथ मिलकर चीन के साथ टकराव कर निपट सकता है। ऐसा पहली बार नहीं है जब चीन ने भारत को धमकी दी है। गलवान में झड़प के दौरान भी चीनी मीडिया ने भारत के खिलाफ खूब जहर उगला था।

29-30 अगस्‍त की रात को भारतीय सेना ने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ की कोशिश कर रहे चीनी सैनिकों को मार भगाया। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, 15 जून को गलवान घाटी में हुई झड़प के बाद से ही लद्दाख से लगी सीमा पर भारतीय सेना सतर्क थी। इस दौरान 29-30 अगस्‍त की रात को पैंगोंग झील इलाके में चीनी सेना 200 सैनिकों और गोला बारूद के साथ पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर घुसपैठ करने की कोशिश की थी। लेकिन LAC पर मुस्तैद भारतीय जवानों ने दुश्मन की सेना को पीछे धकेल दिया। चीनी सेना की तैयारियों को लेकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि वे इस इलाके में घुसपैठ कर लंबे समय तक कब्जा बनाए रखने की फिराक में थे।

भारत में अमेरिकी राजदूत रह चुके रिचर्ड वर्मा से बात करते हुए बिगन ने कहा कि ट्रंप ने चीनी अर्थव्यवस्था के अनुचित और दमनकारी तौर-तरीकों के खिलाफ कार्रवाई की है। अमेरिका का पहले चरण का व्यापार समझौता इस दिशा में बस पहला कदम है। आने वाले वर्षों में अमेरिका-चीन आर्थिक संबंधों में संतुलन लाने के लिए ढेर सारे कदम उठाए जाएंगे। बहुत लंबे समय से चीन को विशेष विशेषाधिकार और लाभ मिलते रहे हैं। इसको चीन ने बखूबी भुनाया है।

बिगन ने कहा कि बीस साल पहले जब चीन को विश्व व्यापार संगठन में लाने के लिए पहल की गई तो नीति निर्माताओं को मानना था कि चीन जिन संस्थानों से जुड़ रहा है उससे उसकी राजनीतिक प्रणाली और चीनी हितों में बदलाव होगा और वह अधिक नियम आधारित व्यवस्था बनेगा। लेकिन, दुर्भाग्य से अमेरिकी प्रशासन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि सभी मोर्चो पर यह प्रयोग असफल रहा है और मैं यह उल्लेख करना चाहता हूं कि हम चीन को दोबारा पीछे धकेलेंगे।

यह सबसे असफल धारणा रही कि चीन के संस्थानों से जुड़ने से अंतत: चीन बदल जाएगा। अमेरिका ने पाया कि इस शताब्दी में चीन ने तेजी से विकास किया और इन संस्थानों में अपने प्रभाव का इस्तेमाल इन संस्थानों में चीन के हितों में बदलाव के लिए कर रहा है। यह अमेरिका के नजरिये से अस्वीकार्य है और WHO या विश्व बौद्धिक संपदा संगठन जैसे संस्थानों में हम उसे पीछे धकेल रहे हैं। हम जोरदार धक्का दे रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि ये संगठन अपने मूल सिद्धांतों का पालन करें या हम स्पष्ट कर देंगे कि हम उन कोशिशों का हिस्सा नहीं बनेंगे, लेकिन यहां सरकार की पूरी कोशिश पुरानी स्थिति पर लाने की है।

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