कमजोर हुईं गठबंधन की गांठें, क्यों अखिलेश की साइकिल से उतरने लगे सहयोगी दलों के नेता?

समाजवादी पार्टी गठबंधन में चल रहा घमासान कम होने का नाम नहीं ले रहा है. विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से ही पार्टी के अंदर से बगावती सुर उठने लगे थे. गठबंधन की गांठें कमजोर पड़नी शुरू हो गई थीं,लेकिन अब राज्यसभा और विधान परिषद के प्रत्याशियों की घोषणा के बाद से ये उठापठक सतह पर आ गई है. दरारें इतनी बड़ी हो गई हैं कि सभी अपना अलग अलग रास्ता चुनने लगे हैं. अखिलेश यादव ने रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजा तो ओम प्रकाश राजभर भी चाहते थे कि उनका बेटा राज्यसभा जाए, मगर ऐसा नहीं हो पाया. अखिलेश ने आजम खान की नाराजगी दूर करने के लिए कपिल सिब्बल और जावेद खां को राज्यसभा भेज दिया. विधान परिषद के चार नामों की घोषणा के बाद से अंदरूनी कलह बाहर निकल कर आ गई और अन्य छोटे घटक दल धीरे धीरे अखिलेश से नाराज होकर उनसे अलग होने लगे.

सुभासपा प्रमुख के बेटे अरुण राजभर ने बातचीत में कहा कि परिवार के बड़े सदस्य को बड़ा दिल भी रखना होता है मगर अखिलेश के तौर तरीके ऐसे नहीं हैं. उन्हें गठबंधन दलों की राजनीति नहीं आती. जिनको वो अपना दोस्त समझ रहे हैं वही समय आने पर उनका साथ छोड़ेगें. आजमगढ़ चुनाव में सुभासपा सपा के साथ मंच साझा नहीं करेगी. गठबंधन में रहेंगे या नहीं, इसके जवाब में अरूण कहते हैं कि अपने लोगों से बातचीत करके राष्ट्रीय अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर इस पर फैसला लेंगे. 15 जून के बाद लखनऊ में बैठक होगी.

सीपी राय समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं, वे कहते हैं कि समाजवादी पार्टी में लोकतंत्र पूरी तरह खत्म हो चुका है. हर कार्यकर्ता दुखी है. सैफई राजघराने के लोग ही सत्ता में क्यूं बैठेगें? मैं आजमगढ़ का ही रहने वाला हूं. वहां चुनाव के दौरान ‘लोकल बनाम विदेशी’ का नारा काफी प्रचलित हो रहा है. 10 विधायक होने के बाद भी सपा नेतृत्व के निर्णयों को लेकर पार्टी के लोग ही नहीं सपोर्ट कर रहे. सपा के तमाम ऐसे नेता हैं जो पार्टी के तौर तरीकों से खुश नहीं हैं. एक वरिष्ठ नेता कहते हैं कि कमजोर सेनापति लड़ाई का निर्णय नहीं कर पा रहा है. आजमगढ़ जो अखिलेश की सीट थी उसपर फैसला नामांकन के आखिरी दिन होना, ये जाहिर करता है कि नेतृत्व में निर्णय लेने की क्षमता नहीं है. सेना अकेले दिशाहीन होकर कैसे भाजपा जैसी विशाल पार्टी का सामना कर पाएगी.

महान दल के नेता, केशव मौर्या का कहना है कि सिर्फ एक जाति और एक धर्म के भरोसे राजनीति नहीं की जा सकती. सभी जातियों को जोड़ कर चलना होता है, मगर अखिलेश यादव की राजनीति समझ से परे है. वादाखिलाफी करने के बाद अब उनसे बात करने का भी कोई मतलब नहीं रह जाता. विधान परिषद में गठबंधन दल का कोई भी उम्मीदवार नहीं बनाए जाने के बाद से महान दल, जनवादी सोशलिस्ट पार्टी और सुभासपा नाखुश हैं और 2024 के चुनाव के मद्देनजर अपनी नई राजनीतिक राह तलाश रहे हैं. शिवपाल यादव पहले ही भतीजे से नाराज हैं और समाजवादी पार्टी के नाराज नेताओं से मुलाकात करके उन्हें अपनी तरफ कर रहे हैं.

शिवपाल यादव से बातचीत पर उनका कहना था कि अखिलेश के अंदर नेताजी जैसी राजनीतिक समझ नहीं है. गठबंधन चलाना उनके बस का नहीं है. हमारे साथ जो आएगा उसका स्वागत है. एक दर्जन सपा विधायक अखिलेश के फैसलों से नाराज हैं जिनसे मेरी बात हो रही है. भाजपा का मुकाबला इस सोच के साथ तो नहीं हो सकता.

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