ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख को रावण की जन्मस्थली माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ अष्टभुजाधारी शिवलिंग की स्थापना रावण के पिता ऋषि विश्रवा ने की थी। इसका उल्लेख पुराणों में भी है। इसी शिवलिंग के पास बैठकर उन्होंने घोर तपस्या की थी। इसके बाद ही रावण का जन्म हुआ। ऋषि विश्रवा के नाम पर ही गांव का नाम बिसरख पड़ा।
मंदिर के पुजारी का दावा है कि ऐसा शिवलिंग हरिद्वार तक किसी मंदिर में नहीं है। चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने 1984 में मंदिर की खुदाई कराई थी। बीस फीट तक खुदाई के बाद भी शिवलिंग का छोर नहीं मिला था। खुदाई के दौरान चंद्रास्वामी को 24 मुख का शंख मिला था। इसे वह अपने साथ ले गया था। मंदिर के पास ही एक सुरंग मिली थी, जो थोड़ी दूर खंडरों में जाकर समाप्त हो गई। अब भी यह सुरंग मंदिर के पास बनी हुई है। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी एक बार शिव मंदिर पर आकर पूजा अर्चना कर चुके हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर पर पूजा अर्चना करता है, उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है।
बिसरख गांव को लंकापति रावण की जन्मस्थली माना जाता है। गांव में पहले रामलीला का मंचन नहीं होता था। रावण के पुतले का कभी दहन नहीं हुआ। पूर्व में जब भी ग्रामीणों ने रावण के पुतले का दहन किया तो अपशकुन हो जाता था। हालाँकि गांव के लोग भगवान राम को अपना आदर्श मानकर उनकी पूजा करते हैं, लेकिन वे रावण को गलत नहीं मानते थे। यही कारण था कि बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक विजयदशमी का त्योहार भी गांव में हर्षाेल्लास से नहीं मनाया जाता था।
यह अलग बात है कि विजयदशमी के मौके पर गांव में पहले मातम जैसा माहौल रहता था। समय के साथ अब लोगों की सोच में बदलाव आया है। लोगों को न तो अब रामलीला के मंचन से परहेज हैं और न रावण दहन से। देश दुनिया में रावण को लेकर जो अवधारणा लोगों में है, वही अब बिसरख क्षेत्र के लोगों की भी सोच है। विजयदशमी का त्योहार भी लोग धूमधाम से मनाने लगे हैं।