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पर्यावरण के अनुकूल नहीं दुनिया में जीवन जीने का तरीका- संघ प्रमुख मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पर्यावरण गतिविधि विभाग एवं हिंदू आध्यात्मिक एवं सेवा फाउंडेशन की ओर से रविवार को आयोजित प्रकृति वंदन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में अभी जो जीवन जीने का तरीका प्रचलित है, वह पर्यावरण के अनुकूल नहीं है। यह तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्य को जीना सिखाता है। जबकि हमें प्रकृति का पोषण करना है, शोषण नहीं। भारत में यह तरीका 2000 वर्षों से प्रचलित है।

इस तरह के कार्यक्रम के माध्यम से उस संस्कार को जीवन में पुनर्जीवित करना है और आने वाली पीढ़ी भी यह सीखे, यह ध्यान रखना है। उन्‍होंने कहा कि अभी पर्यावरण शब्द बहुत सुनने को मिलता है। मनाने का दिन भी तय है। यह सब इसलिए करना पङ रहा है कि हम इस सोच के साथ जी रहे हैं कि प्रकृति का दायित्व मनुष्य पर नहीं है।

ची संघ कार्यालय में आरएसएस क्षेत्र संपर्क प्रमुख अनिल ठाकुर, क्षेत्र सेवा प्रमुख अजय कुमार, प्रांत के अधिकारी विजय घोष प्रकृति वंदन करते हुए।

मनुष्य का पूरा अधिकार प्रकृति पर है। पिछले 300 वर्षों से इसी सोच के साथ जी रहे हैं जिसका दुष्परिणाम सबके सामने है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो न हमलोग बचेंगे और न ही सृष्टि बचेगी। इसलिए जब विश्व के लोगों का ध्यान इस ओर गया तो पर्यावरण दिवस मनाने लगें, मनाया जाना भी चाहिए। पर्यावरण का संरक्षण कैसे हो, इसपर सभी को सोचना चाहिए।

संघ प्रमुख ने कहा कि भारत में जीने का तरीका अलग है। हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व के सत्य को पहचान लिया था। हम भी प्रकृति के अंग हैं, यह भाव शुरू से है। जिस तरह शरीर का सब अंग काम करता है तो शरीर चलता है, और शरीर में प्राण नहीं रहता है तो शरीर का सभी अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देता है। उसी तरह प्रकृति और मनुष्य का संबंध है। उन्‍होंने कहा कि पेङ में भी प्राण है, यह शुरू से भारत के लोग जानते हैं। शाम में पेड़ को नहीं छुआ जाता था। अपने यहां घरों में सबका पोषण करने का भाव शुरू से रहा है।


चींटी, गौ, कुत्ता व जरूरतमंद आदि को भोजन घरों में कराया जाता रहा है। अपने जीवन जीने के तरीक़े में क्या करना है और क्या नहीं करना है, यह तय है, लेकिन भटके हुए तरीक़े के प्रभाव में आकर सब भूल गए। इसलिए अब पर्यावरण दिवस के रूप में मनाकर स्मरण कराना पड़ रहा है, करना भी चाहिए। परंतु जिस तरह आज 30 अगस्त को इसे मना रहे हैं, उसी तरह दूसरे दिनों में इसे मनाते हुए आने वाली पीढ़ी में प्रकृति को जीवंत रखने का भाव जगाना है। ऐसा करेंगे, तब 350 वर्षों में जो क्षति हुई है, उसे अगले 200 वर्षों में ठीक कर सकते हैं।


संघ प्रमुख ने कहा कि सृष्टि सुरक्षित रहेगी तभी मानव जाति सुरक्षित रहेगा। इस बात को हमें अपने आचरण में उतारना होगा। संपूर्ण सृष्टि के पोषण के लिए अपने जीवन को सुंदर बनाना होगा। सबकी उन्नति के लिए काम करने का भाव रखते हुए आगे बढ़ना होगा।

प्रकृति वंदन कार्यक्रम में 60 लाख से अधिक लोगों ने भाग लिया। ऑनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम में प्रारंभ में गुणवंत सिंह कोठारी ने प्रस्तावना रखी। फिर संघ प्रमुख के संबोधन के बाद लोगों ने अपने-अपने घरों में वृक्ष की पूजा की। आरती हुई। फिर संत के आशीर्वचन के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ।

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