होली का Festival रंगों का त्योहार है। उत्तर भारत में इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर गले मिलते हैं। हांलाकि कुछ लोगों का शौक अलग-अलग जगहों के त्योहारों को देखने का होता है। जैसे मथुरा और वृंदावन की होली पूरे देश में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। यहां पर लठ्ठमार होली से लेकर फूलों की होली खेली जाती है। जिसे देखने और शामिल होने दूर-दूर से लोग आते हैं। ऐसे ही दक्षिण भारत की भी कुछ जगहों पर शानदार होली खेली जाती है। इस बार की Holi 10 मार्च को मनाई जाएगी। होली की तैयारी अभी से शुरू हो गई है जंहा, होलिका दहन की भी तैयारी जोरो सोरो से चल रही है।

होलिका दहन…
शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन की परंपरा भक्त और भगवान के संबंध का अनोखा एहसास है। कथानक के अनुसार भारत में असुरराज हिरण्यकश्यप राज करता था। उनका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था, लेकिन हिरण्यकश्यप विष्णु द्रोही था।
हिरण्यकश्यप ने पृथ्वी पर घोषणा कर दी थी कि कोई देवताओं की पूजा नहीं करेगा। केवल उसी की पूजा होगी, लेकिन भक्त प्रहलाद ने पिता की आज्ञा पालन नहीं किया और भगवान की भक्ति में लीन रहा। हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद की हत्या कराने की कई बार कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया तो उसने योजना बनाई। इस योजना के तहत उसने बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को वरदान मिला था, वह अग्नि से जलेगी नहीं। योजना के तहत होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई, लेकिन भगवान ने भक्त प्रहलाद की सहायता की। इस आग में होलिका तो जल गई और भक्त प्रहलाद सही सलामत आग से बाहर आ गए। तब से होलिका दहन की परंपरा है। होलिका में सभी द्वेष भाव और पापों को जलाने का संदेश दिया जाता है।