किस्तान के अफगानिस्तान की सीमा से सटे प्रांत खैबर पख्तूनख्वा (केपी) में शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच हालिया हिंसक झड़पों के चलते 300 से ज्यादा परिवारों को अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है। दोनों समुदायों की हिंसा में कम से कम 150 लोग मारे गए हैं, जिनमें 32 मौतें सिर्फ शनिवार को हुई हिंसा में हुई हैं। शनिवार को मारे गए 32 लोगों में 14 सुन्नी और 18 शिया थे। हिंसा की घटनाएं ना सिर्फ सरकारों की नाकामी को दिखाती हैं बल्कि क्षेत्र में वर्षों से जारी तनाव की ओर भी इशारा करती हैं, जो फिर से उभर आया है।
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान में शिया-सुन्नी के बीच विवाद नया नहीं है लेकिन हालिया हिंसा की वजह 21 नवंबर की घटना है। 21 नवंबर को खैबर पख्तूनख्वा के कुर्रम इलाके में शिया समुदाय के बड़े काफिले निशाना बनाकर किए गए हमले में 43 लोगों को मार डाला गया था। घात लगाकर बैठे हमलावरों ने काफिले को चारों तरफ से घेरकर गोलियां चलाईं। ये हमला मंडोरी चरखेल इलाके में हुआ, जहां पहले से ही सांप्रदायिक तनाव रहा है। इसके बाद शियाओं की ओर से भी सुन्नियों को निशाना बनाकर हमले किए गए।
अफगान सीमा से सटा है ये इलाका
पाकिस्तान का केपी प्रांत अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ है। ये इलाका आतंकवाद, कबायली झगड़े और सांप्रदायिक तनाव से जूझता रहा है। खासतौर से कुर्रम जिला अफगानिस्तान से नजदीकी और आतंकवादी समूहों की मौजूदगी की वजह से बेहद संवेदनशील है। कुर्रम एक कबायली इलाका है, जो अपनी जटिल सामाजिक-राजनीतिक बनावट के लिए जाना जाता है। शिया और सुन्नी दोनों की यहां अच्छी आबादी है।
ये इलाका शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक तनाव का एक पुराना केंद्र रहा है। इस इलाके में कबीलों के बीच जमीन विवाद में भी गोलियां चलती रही हैं। जमीन का विवाद भी अकसर यहां सांप्रदायिक रंग ले लेता है। सरकार और पुलिस इस इलाके में सिर्फ नाम के लिए है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पाकिस्तान और केपी की सरकार क्षेत्र के आम लोगों को सुरक्षा देने में पूरी तरह फेल रही है।
सरकार की नीतियां भी जिम्मेदार
स्थानीय लोगों का कहना है कि कुर्रम में संघर्ष जनरल जिया उल हक के दौर में लागू की गई नीतियों का नतीजा है। उन्होंने धर्म के नाम पर नफरत को बढ़ावा दिया। इसके नतीजे में बीते दो-तीन दशक में यहां शिया और सुन्नी विवाद काफी ज्यादा बढ़ा है। पिछले वर्षों में शिया और सुन्नी गुटों के बीच कई समझौते भी हुए लेकिन सरकार समझौतों को लागू करने में लगातार नाकाम रही। ऐसे में ये इलाका पूरी तरह से अराजकता का शिकार है।
इस क्षेत्र में हिंसा की एक बड़ी वजह लोग सरकार, आतंकी गुटों और स्थानीय प्लेयर्स का गठजोड़ भी मानते हैं। अफगान और पाकिस्तान के बीच अवैध हथियार, ड्रग और दूसरे धंधों की वजह से यहां बहुत से गुट सक्रिय हैं। इन गुटों में अकसर हिंसा होती है, जो कई बार सांप्रदायिक रंग भी ले लेती है। ड्रग्स और हथियारों के अवैध तस्कर भी अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए इन विवादों को हवा देते हैं।
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केपी में हिंसा ने पाकिस्तान सरकार की कमजोरी को जाहिर किया है। स्थिति से निपटने के लिए पाक सरकार के पास कोई रणनीति नहीं दिखी है। पाकिस्तान सरकार हमलों की निंदा कर पल्ला झाड़ लेती है। उन वजहों को जानने की कोई कोशिश नहीं की जाती है, जिनके चलते टीटीपी और दूसरे आतंकवादी समूह फिर से उभरे हैं और हिंसा बढ़ रही है।