झारखंड राज्य गठन के बाद से ही पिछड़े वर्ग को 27 फीसद आरक्षण देने की राजनीति होती आई है। खूब हो हल्ला मचा लेकिन इसकी मांग तब कुछ खास तबके और राजनीतिक दल तक ही सीमित थी। अब फिर झारखंड विधानसभा चुनाव-2019 की घोषणा के साथ ही सभी विपक्षी दलों ने पिछड़े वर्ग को न सिर्फ साधना शुरू कर दिया, बल्कि इसे अपने चुनावी घोषणापत्र के प्रमुख एजेंडों में प्रमुखता से जगह भी दी है। बहरहाल इस राजनीति में BJP और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ बड़े और छोटे क्षेत्रीय दल भी शामिल हो चुके हैं।
राज्य में अब नए सिरे से पिछड़े वर्ग की गणना की कवायद की जा रही है। 2011 की सामाजिक, आर्थिक जातीय जनगणना के आधार पर तैयार की गई रिपोर्ट में इनकी आबादी लगभग 1.32 करोड़ बताई गई थी, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 40% है। आंकड़े पंचायत व निकाय चुनाव को ध्यान में रखकर आरक्षण की प्रक्रिया निर्धारित करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग ने तैयार किए थे। गिरिडीह, देवघर, पलामू, सरायकेला, चतरा, धनबाद, रांची, खूंटी आदि क्षेत्रों में इसकी बहुलता है।
झारखंड में फ़िलहाल अनुसूचित जनजातियों के लिए 26, अनुसूचित जातियों के लिए 10, जबकि पिछड़े वर्ग के लिए 14% आरक्षण का प्रावधान है। राज्य गठन के बाद यहां की सरकार ने STके लिए 32, SC के लिए 14 तथा पिछड़े वर्ग के लिए 27% आरक्षण की तैयारी कर रखी थी। अब आरक्षण की सीमा 50% से अधिक होने पर हाइकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। रघुवर दास की मौजूदा BJP सरकार में शामिल आजसू इसका बड़ा पक्षधर रहा है।
पिछड़ों को लुभाने के पीछे का मकसद:- 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में पिछड़े वर्ग की आबादी लगभग 1.32 करोड़ है, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 40% है। गिरिडीह, देवघर, पलामू, सरायकेला, चतरा, धनबाद, रांची, खूंटी में बहुलता।
फिलहाल आरक्षण की सीमा है:- अनुसूचित जनजातियों के लिए 26%, अनुसूचित जातियों के लिए 10%, जबकि पिछड़े वर्ग के लिए 14% आरक्षण का प्रावधान झारखंड में है।